पटना: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार की धरती को दूसरी हरित क्रांति का उद्गम स्थल बताते हुए शनिवार को कहा कि चतुस (चार) क्रांति के बदौलत ही दूसरी हरित क्रांति का आगाज होगा. राजधानी स्थित श्रीकृष्ण मेमोरियल हॉल में आइसीएआर (इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च) के 87वें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि चतुस क्रांति की रूपरेखा देश के झंडे में मौजूद चारों रंगों से तय की गयी है. दूसरी हरित क्रांति के लिए कृषि को उन्नत तकनीक और नये प्रयोगों से जोड़ने की जरूरत है.
प्रधानमंत्री ने इसके लिए कृषि वैज्ञानिकों को सुझाव देते हुए कहा कि किसानों की खेतों को प्रयोगशाला बनायें. उन्होंने कहा कि अगर प्रयोगशाला में चीकू को नारियल के बराबर बना दिया, तो यह किसी काम नहीं आता. इसका सही लाभ तभी मिलेगा, जब यह धरती पर उपजे. किसानों के मन तक नये प्रयोगों का विस्तार होना चाहिए. उन्होंने बिहार में बिजली की कमी को भगवा क्रांति से दूर करने की बात कही. नीली क्रांति (मछली पालन) में पिछड़े पन की बात का उल्लेख करते हुए कहा कि इतना पानी होने के बाद भी आंध्रप्रदेश से सालाना 400 करोड़ की मछली मंगवाकर यहां के लोग खाते हैं.
इस दौरान प्रधानमंत्री ने देशभर में कृषि के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए कृषि विश्वविद्यालय, संस्थानों, वैज्ञानिकों, किसानों और पत्रकारों को सम्मानित किया. साथ ही कृषि के क्षेत्र में पांच नयी योजनाओं की शुरुआत की. उन्होंने कहा कि पूसा का जन्म बिहार की धरती पर 90 साल पहले हुआ था. मैंने इसे फिर से तराशने का काम शुरू किया है. पीएम ने कहा कि भगवा क्रांति का मतलब बहुत लोग अलग अर्थ लगाते हैं, लेकिन यहां इसका मतलब ऊर्जा क्रांति से है. बिहार इतना बड़ा प्रदेश है, लेकिन बिजली का उत्पाद महज 250-300 मेगावॉट होता है. उन्होंने कहा कि हाल में भूटान में पनबिजली उत्पादन का काफी बड़ी योजना शुरू की गयी है. इससे अधिकांश बिजली बिहार को ही मिलेगी. आधुनिक उपकरणों की सहायता से उन्नत खेती के लिए बिजली की जरूरत सबसे ज्यादा है.