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संपूर्ण क्रांति के 50 साल: निरंकुश सत्ता से लड़ने का मिला हौसला, बोले शिवानंद तिवारी- जनसंघ को सर्टिफिकेट देना भूल थी

50th anniversary of samporn kranti : आज से 50 साल पहले 18 मार्च 1974 को पटना में कांग्रेस की हुकूमत के खिलाफ छात्र-युवाओं का आक्रोश फूट पड़ा था. केंद्र सरकार के खिलाफ फूटे इस आंदोलन के दौरान जेपी ने संपूर्ण क्रांति का नारा देते हुए सत्ता नहीं, व्यवस्था में आमूल बदलाव का आह्वान किया था. संपूर्ण क्रांति की पचासवीं वर्षगांठ पर प्रभात खबर की ओर से राजदेव पांडेय ने इस आंदालन में शामिल शिवानंद तिवारी से बात की है. प्रस्तुत है उसके अंश...

50th anniversary of samporn kranti : संपूर्ण क्रांति के 50 वर्ष पूरे होने पर आंदोलन को याद करते हुए पूर्व मंत्री शिवानंद तिवारी ने कहा कि मैं गर्वित हूं कि मैं भी उस महान आंदोलन का हिस्सा रहा हूं. निस्संदेह उस आंदोलन की याद हमलोगों के जेहन में हमेशा ताजा रहेगी. सही मायने में इस आंदोलन ने देश में लोकतंत्र बचाया था. मेरी याददाश्त में उस समय की सबसे बड़ी घटनाओं में तब का ऐतिहासिक बिहार बंद सबसे अहम घटनाक्रम था. मैं उस समय भभुआ से बिहियां सड़क मार्ग से आ रहा था. मुझे जीटी रोड पर चिड़िया भी दिखायी नहीं दी. सही मायने में वह आंदोलन तानाशाही के खिलाफ जनता का महान संघर्ष था. एक और घटना पटना के डाकबंगला चौराहे की है. जहां जेपी खुद मौजूद थे. बैरिकेड के पास वह एक पुलिस अफसर से बात कर रहे थे. अचानक उन्होंने अपना कंधा बैरिकेड से ही रगड़ दिया. बस फिर क्या था? युवाओं ने बैरिकेड तोड़ दिये. खूब लाठियां खायीं. यह घटना बताती है कि उनके समर्थकों में जेपी के प्रति कितना सम्मान था.

जनसंघ को सर्टिफिकेट देना भूल थी

मैं मानता हूं कि जनसंघ के प्रति लोकनायक जय प्रकाश जी का रवैया बेहद उदार था. एक बार जब जनसंघ के उस आंदोलन में शामिल होने को लेकर इंदिरा गांधी उनके सहयोगी नेताओं ने टिप्पणी दी थी कि उस आंदोलन में फासिस्ट (जनसंघ/ आरएसएस) भी शामिल हैं. इस पर जेपी ने प्रति उत्तर देते हुए कहा था कि अगर वे लोग फासिस्ट हैं, तो मैं भी फासिस्ट हूं. जनसंघ को उन्हें ऐसा प्रमाण पत्र नहीं देना चाहिए था.

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विद्यार्थी परिषद का रहा अहम योगदान

निस्संदेह आपातकाल में कई युवा नेता सामने थे. दरअसल, हम सब व्यक्तिवादी उभार माने जायेंगे. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के पास संगठन की ताकत थी.

जनसंघी ही नहीं कॉमरेड भी शामिल हुए आंदोलन में

जनता पार्टी और जनसंघ के अलावा कई प्रतिष्ठित कॉमरेड भी शामिल हुए. इनमें एक प्रमुख नेता कॉमरेड एके राय थे. मेरी मध्यस्थता में जेपी से उनकी मुलाकात हुई. वे विधानसभा से इस्तीफा देकर इस आंदोलन में कूदे.

रघुराय के फोटो ने आंदोलन को दी एक खास दिशा

मेरी नजर मे जाने-माने फोटोग्राफर रघुराय का उस समय खींचा गया वह फोटो सबसे अहम रहा, जिसमें जेपी पर लाठियां बरसायी जा रही थीं. उस फोटो के आधार पर ही इंदिरा गांधी पर आरोप लगा कि उन्होंने जेपी को पिटवाया. बस फिर क्या था, पूरी दुनिया के बड़े बुद्धिजीवी उस आंदोलन के साथ हो गये.

आंदोलन की सबसे बड़ी ताकत उसका नैतिक बल

इस आंदोलन की बड़ी महत्ता थी उसका नैतिक बल. एक तो यह कि कितनी भी बड़ी ताकत या सत्ता को हटाया जा सकता है. उसकी मनमानी पर नकेल कसी जा सकती है. इस आंदोलन के बाद नयी सरकार बनी. उसके बाद के चुनाव में कांग्रेस का एकाधिकार टूटा.

अब कोई समाजवादी नहीं

सच बताऊं, तो अब देश में कोई समाजवादी नहीं है. आदर्शों की बात करना भी अब बेमानी है. इसकी बात अब कोई नहीं कहता है. आदर्शवाद को सबने कंधे से उतार दिया है.

जेपी का व्यक्तित्व विराट था

जयप्रकाश जी का व्यक्तित्व विराट था. उनकी सादगी और उदारता उन्हें और महान बनाती है. उदाहरण के लिए मैं उस आंदोलन की एक समन्वय समिति में शामिल हुआ. पहले तो उन्होंने मुझे अनदेखा किया था. इसके बाद वह हम लोगों की मीटिंग में भाग लेने आये, तो उन्होंने भोजपुरी में ही संबोधित करते हुए कहा कि मैं शिवानंद से माफी मांगता हूं. मुझे इनके बारे में कुछ गलतफहमी हो गयी थी. उनकी बात सुन कर मैं पानी-पानी हो गया. सच बताऊं, तो उनसा कोई नहीं हो सकता है. उनके व्यापक नजरिये और सूझबूझ के भारत के सभी नेता कायल थे. वे राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं , भारत के पक्ष में अंतरराष्ट्रीय राय बनाने वाले नेता भी थे. यही वजह है कि इस आंदोलन को व्यापक समर्थन मिला.

Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने के लिए प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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