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मांझी के नैया कितने पानी में?

राहुल सिंह बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बिहार ही नहीं देश की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया. भारत की राजनीति में कोई राजनेता अपने संरक्षक द्वारा खुद को सत्ता शीर्ष पर पहुंचाये जाने के बाद महज सात महीने में अबतक इतने तीखे अंदाज में बागी नहीं हुआ होगा. डॉ मनमोहन सिंह […]

राहुल सिंह
बिहार के मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने बिहार ही नहीं देश की राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ दिया. भारत की राजनीति में कोई राजनेता अपने संरक्षक द्वारा खुद को सत्ता शीर्ष पर पहुंचाये जाने के बाद महज सात महीने में अबतक इतने तीखे अंदाज में बागी नहीं हुआ होगा. डॉ मनमोहन सिंह अपनी संरक्षक सोनिया गांधी द्वारा स्वयं को सत्ता शीर्ष पर पहुंचाये जाने के बाद तमाम सम्मान-अपमान को सहते हुए दस साल तक शासन करते रहे. तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ओ पन्नीरसेवलम अपनी राजनीतिक आका व संरक्षक जे जयललिता की भरत शैली में खड़ांऊ रख कर शासन करने के लिए जाने जाते हैं. वे ऐसे दुर्लभ राजनेता हैं, जो अपने शपथ ग्रहण में खुशी के आंसू नहीं दुख के आंसू बहाते नजर आये, क्योंकि उनकी अम्मा को जेल जाना पड़ा.
शालीन मांझी के चुभने वाले बोल
जीतन राम मांझी ने भारतीय राजनीति की इस परंपरा को बदल दिया है और एक ऐसे राजनेता साबित हुए हैं, जिसके इतने तीखे अंदाज का अहसास छह-सात महीने पहले तो किसी ने नहीं लगाया था, लेकिन पिछले डेढ़-दो महीने से वह यह संकेत बार-बार देते रहे कि उनके दिल में क्या है? उन्होंने रविवार को राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में अपने नये राजनीतिक संरक्षक व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने के बाद अपने प्रेस कान्फ्रेंस में अपने पूर्व राजनीतिक संरक्षक नीतीश कुमार पर शालीन लेकिन चुभने वाले राजनीतिक बाण चलाये. मांझी ने कहा कि उन्हें यह सोच कर सीएम बनाया गया था कि यह दलित है, कुछ बोलेगा नहीं, लेकिन ऐसा है नहीं. बिहार की राजनीति के चाणक्य जैसे मीडिया प्रदत्त संबोधन से चर्चित नीतीश कुमार ने शायद मांझी के इस रूप की कल्पना भी नहीं की होगी.
गैर भरोसमंद चेहरा या दलित चेतना का प्रतीक!
बहरहाल, अब जब मांझी बागी हो चुके हैं, तो उनको लेकर दो तरह की बातें कही जा रही है. एक तबका उन्हें गैर भरोसेमंद और किसी के यकीन के काबिल नहीं बता रहा है, तो दूसरा तबका उन्हें बिहार की दलित चेतना का नया प्रतीक बता रहा है. मांझी बार-बार खुद को दलित का बेटा होने की बात कह रहे हैं और न्याय व अन्याय जैसे जुमले का उपयोग कर रहे हैं. वे विरोधी खेमे के पास बाहुबली होने की भी बात कहते हैं और खुद को एक निरीह, निदरेष पर दलितों व गरीबों के हक के लिए हर कीमत चुकाने वाले शख्स के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं.
किसके हाथ हैं मांझी के नाव की पतवार
110 विधायकों वाले जदयू के 13 विधायक ही ऐसे हैं जो शरद यादव द्वारा बुलायी गयी बैठक में शामिल नहीं हुए थे. यानी इसे ही खेमेबाजी का आधार माना जाये तो 97 विधायक नीतीश के साथ हैं और 13 मांझी के. महज 13 विधायकों के खुले समर्थन से वर्तमान में 233 सदस्यों वाली बिहार विधानसभा में मांझी कैसे अपना बहुमत साबित करेंगे, यह बड़ा सवाल है. मांझी को उम्मीद है कि नीतीश खेमे के कुछ और विधायक उनके साथ आ सकते हैं. इसलिए उन्होंने गुप्त मतदान की मांग राज्यपाल से की है. पर, उसके बावजूद उनके पास बहुमत की जादुई संख्या 117 खुद की बदौलत नहीं होगी. मांझी के खास सलाहकार राज्य के कृषिमंत्री नरेंद्र सिंह के दावे पर अगर यकीन करें तो उन्हें भाजपा का समर्थन हासिल है. भाजपा के पास विधानसभा में 88 विधायक हैं. यानी जदयू के एक गुट व भाजपा के समर्थन के साथ ही मांझी विधानसभा के पटल पर बहुमत साबित करने की ताल ठोक रहे हैं. यानी मांझी के नाव की पतवार अब भाजपा के हाथ में हैं, जिसके संकेत जीतन राम मांझी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व केंद्र सरकार के प्रति अपना खुला प्रेम छलका कर पिछले दो ढाई महीने से बार-बार देते रहे हैं. लेकिन, लाख टके का सवाल यह है कि जीतन राम मांझी भाजपा का उपयोग करेंगे या भाजपा उनका उपयोग करेगी? हालांकि इतिहास यही बताता है कि कुटिल और बारीक राजनीति में पारंगत भाजपा तो अबतक दूसरों का उपयोग करती ही रही है.
Prabhat Khabar Digital Desk
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