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पदोन्नति में आरक्षण : बिहार सरकार लायेगी कानून

विनय तिवारी नयी दिल्ली : पदोन्नति में आरक्षण को लेकर कई राज्यों द्वारा दायर की गयी याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इसमें बिहार सरकार की याचिका भी शामिल है. बिहार सरकार कर्नाटक के तर्ज पर कानून लाने पर विचार कर रही है. पदोन्नति में आरक्षण से जुड़े सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट ने जनरैल […]

विनय तिवारी
नयी दिल्ली : पदोन्नति में आरक्षण को लेकर कई राज्यों द्वारा दायर की गयी याचिका सुप्रीम कोर्ट में लंबित है. इसमें बिहार सरकार की याचिका भी शामिल है.
बिहार सरकार कर्नाटक के तर्ज पर कानून लाने पर विचार कर रही है. पदोन्नति में आरक्षण से जुड़े सभी मामलों को सुप्रीम कोर्ट ने जनरैल सिंह मामले के साथ सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया है. लेकिन 15 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाये रखने का आदेश जारी कर दिया.
पटना हाइकोर्ट ने बिहार में पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगाते हुए एक अप्रैल को बिहार सरकार के रवैये पर हैरानी जताते हुए अदालत की अवमानना की कार्रवाई करने का आदेश दिया. बिहार सरकार ने हाइकोर्ट के फैसले के मद्देनजर 11 अप्रैल को आदेश जारी कर पदोन्नति में आरक्षण पर रोक लगा दी. बिहार सरकार ने एक अप्रैल को हाइकोर्ट के अवमानना चलाने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की.
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए 7 मई को नोटिस जारी करते हुए अवमानना की कार्रवाई पर रोग लगाने का आदेश जारी किया. इसके बाद बिहार सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में आवेदन दिया कि उसे 11 अप्रैल का आदेश वापस लेने की अनुमति दी जाये. लेकिन अभी यह मामला अदालत में लंबित है. बिहार सरकार प्रयास कर रही है कि मामले की जल्द से जल्द सुनवाई हो.
सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार के फैसले को सही ठहराया था
सूत्रों का कहना है कि बिहार सरकार पदोन्नति में आरक्षण देने के कर्नाटक सरकार के कानून का अध्ययन कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार की पदोन्नति में आरक्षण के फैसले को सही ठहराने का फैसला दिया है.
बिहार सरकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले का अध्ययन और कानूनी विशेषज्ञों से सलाह लेकर पदोन्नति में आरक्षण को लेकर कानून लाने पर विचार कर रही है. गौरतलब है कि 11 मई 2019 को कर्नाटक सरकार के पदोन्नति में आरक्षण देने के फैसले को सही ठहराते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि मेरिट को सिर्फ परीक्षा में बेहतर प्रदर्शन के संकुचित दायरे में ही नहीं देखा जाना चाहिए.
इसका बड़ा सामाजिक उद्देश्य समाज के पिछड़े हिस्से के लिए समानता सुनिश्चित करना भी है. कर्नाटक से पहले कई अन्य राज्यों ने भी अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग को प्रोन्नति में आरक्षण का कानून बनाया, लेकिन अदालत से मंजूरी नहीं मिल सकी थी.

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