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पुण्यतिथि पर विशेष: बिहार से मिट गयी उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की आखिरी निशानी!

मुरली मनोहर श्रीवास्तव उस्ताद को गुजरे हुए अभी एक युग भी नहीं हुए कि डुमरांव स्थित उनकी पैतृक भूमि को ही उनके परिजनों ने बेच दिया. बिहार के बक्सर जिले में 21 मार्च, 1916 को डुमरांव में शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म हुआ था. 10 साल की उम्र में मामा अली बख्श के […]

मुरली मनोहर श्रीवास्तव
उस्ताद को गुजरे हुए अभी एक युग भी नहीं हुए कि डुमरांव स्थित उनकी पैतृक भूमि को ही उनके परिजनों ने बेच दिया. बिहार के बक्सर जिले में 21 मार्च, 1916 को डुमरांव में शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां का जन्म हुआ था.
10 साल की उम्र में मामा अली बख्श के साथ वाराणसी चले गये. भोजपुरी और मिर्जापुरी गीतों पर अपनी शहनाई की धून छेड़ते हुए देश ही नहीं, दुनिया के कोने-कोने में उस्ताद की शहनाई छा गयी. लेकिन यह कैसी बेवफाई कि उनकी पैतृक भूमि, जहां लोग गाहे-बगाहे उन्हें याद करने आ जाया करते थे, अब वह भी निशानी खत्म हो गयी. अगर ऐसा नहीं तो 20 अप्रैल, 1994 को तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद ने डुमरांव में टाउन हॉल का शिलान्यास रखा था.
बनना तो दूर शिलापट्टिका भी गायब हो गयी है. सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि उस्ताद का बिहार से पूरी तरह से नाता टूट गया. अब उनके नाम पर कुछ भी नहीं रहा. सब कुछ इतिहास के पन्नों तक सिमटकर रह गया. उस्ताद पर पिछले 25 वर्षों या यों कहें कि उनके जीवनकाल से लेकर आज तक मैं उस्ताद की स्मृतियों संरक्षित करने के लिए लगातार काम करता आ रहा हूं.
इनकी जीवनी ‘शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां’ लिखी. उस्ताद को चाहने वाले लोगों का मानना है कि उन्हें जो सम्मान मिलना चाहिए था,उसे किसी ने नहीं दिया. उस्ताद यानी बिहार का इकलौता संगीतज्ञ, जिसे भारतरत्न से नवाजा गया, आज उस शहनाई के पीर को ही बिहार की मिट्टी से हमेशा-हमेशा के लिए मिटा दिया गया. (लेखक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पर शोध कर रहे हैं.)

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