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ज्यादा हालात बिगड़े तो गुजरात व बिहार की इकोनॉमी को लगेगा झटका
राजदेव पांडेय पटना : गुजरात से बिहार के लोगों का पलायन जारी रहा, तो दोनों की अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है. जानकार अंदेशा व्यक्त कर रहे हैं कि बिहारी मजदूरों का पलायन दोनों राज्यों की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख देगा. सस्ते श्रम की दम पर विकसित राज्यों की पहली पंक्ति में खड़े गुजरात […]
राजदेव पांडेय
पटना : गुजरात से बिहार के लोगों का पलायन जारी रहा, तो दोनों की अर्थव्यवस्था को झटका लग सकता है. जानकार अंदेशा व्यक्त कर रहे हैं कि बिहारी मजदूरों का पलायन दोनों राज्यों की अर्थव्यवस्था को हिला कर रख देगा. सस्ते श्रम की दम पर विकसित राज्यों की पहली पंक्ति में खड़े गुजरात में औद्योगिक उत्पादन की लागत कई गुना बढ़ जायेगी. वहीं, बिहार जो कई दशकों से डिस्ट्रेस माइग्रेशन (कष्ट प्रद/मजबूरी में पलायन) को झेल रहा है, उसकी प्रति व्यक्ति आय घट जायेगी. प्रदेश में बाहरी आय का प्रवाह रुक जायेगा.
70 लाख मजदूर गैर गुजराती
एसोचेम के जानकार बताते हैं कि गुजरात में करीब एक करोड़ से अधिक कारखानों में मजदूर काम कर रहे हैं. इसके अलावा कई असंगठित क्षेत्रों में काम कर रहे हैं. इसमें 70 लाख मजदूर गैर गुजराती हैं.
इनमें करीब पचास लाख मजदूर बिहार और पूर्वोत्तर के हैं. विश्लेषकों के मुताबिक इनमें से बिहार के मजदूरों की संख्या तीस लाख अनुमानित है. अगर इन मजदूरों में प्रति मजदूर अपने मूल घर बिहार के लिए पांच हजार रुपये प्रतिमाह भी भेजता होगा, तब भी हर माह करीब 15 अरब रुपये बिहार आते हैं. जानकारों के मुताबिक ये रकम ही वर्तमान में बिहार की इकोनॉमी और बाजार की रौनक को बहाल रखे हुए हैं. अगर गुजरात में पलायन नहीं रुका, तो खेती पर भी बोझ बढ़ सकता है. क्योंकि, पलायनकर्ता खेती से हारे हुए लोग ही हैं. ये सभी लोग मजबूरी में पलायन करते हैं.
एक्सपर्ट व्यू
मजदूरों के पलायन का सीधा असर दोनों राज्यों पर पड़ेगा. गुजरात के उद्योग धंधों की रफ्तार घटनी तय है. दरअसल बिहार के सस्ते श्रम की दम पर उसकी इकोनॉमी टिकी है. बिहारी मजदूर घर लौटकर सुरक्षित महसूस कर रहे हो. लेकिन सच्चाई तो यह है कि उसके सामने अपने परिवार को चलाने को काम चाहिए. ऐसे में हमारी सरकार को भी इंडस्ट्रियल इन्फ्रा को सुधारना चाहिए.
डाॅ आशा सिंह, अर्थशास्त्री, रिटायर्ड हेड ऑफ डिपार्टमेंट, पीयू
दोनों राज्यों की अर्थव्यवस्था का अपने-अपने तरीके से कचूमर निकलेगा. इस घटनाक्रम से बिहार काे सबक लेना चाहिए. उसे अपने लोगों की आर्थिक बेहतरी के लिए अपने यहां के मानव श्रम को सर्विस सेक्टरों में खपाने की रणनीति बनानी चाहिए. इसके लिए उन्हें धरातल पर स्किल प्रोग्राम चलाने चाहिए. क्योंकि, हमारी खेती ओवरलोडेड है. -डाॅ कुमुदनी सिन्हा, अर्थशास्त्री,रिटायर्ड हेड ऑफ डिपार्टमेंट, पीयू
इधर अशांति के बीच अब भी रोजी-रोटी के लिए जा रहे गुजरात के उधना
खगौल : इसे बेबसी कहें या हिम्मत, बिहार से रोजी-रोटी की तलाश में अब भी काफी लोग गुजरात जा रहे हैं. वहां वे अपने मिल मालिकों से बात करके जा रहे हैं. उनका कहना है कि हम ऐसे जिलों में काम करते हैं, जहां अशांति की आग भड़की नहीं है. गुजरात में गैर गुजरातियों पर बढ़ रहे हमले के बाद गुजरात जाने के ट्रेंड का पता लगाने के प्रयास के क्रम में प्रभात खबर प्रतिनिधि ने दानापुर से उधना जाने वाली अप 19,063 उधना एक्सप्रेस पर सवार यात्रियों से बातचीत की.
कोई खतरा नहीं : गुजरात जा रहे राजगीर के रहने वाले मो जावेद व मो अली रजा ने बताया कि हम लोग उधना में रहते हैं, रेडीमेड कपड़े बनाने का काम करते हैं. दोनों ने बताया कि सूचना है कि बिहार व यूपी से मजदूर जो यहां किराया पर रहते हैं. उन्ही लोगों के साथ मारपीट की घटना हो रही है. हम लोग फैक्टरी परिसर के आसपास ही रहते हैं.
इसलिए कोई खतरा नहीं है. कोच संख्या एस वन में सीट संख्या एक पर सफर कर रहे साहेबगंज निवासी अर्जुन कुमार व सोनू कुमार ने बताया कि साबरकांठा, अहमदाबाद, गांधीनगर, मेहसाणा आदि जिलों मे यूपी-बिहार के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है.
इससे हमें कोई खतरा नहीं है. साधारण बोगी में सफर कर रहे गया निवासी टुनु पांडेय ने बताया मैं उधना में रहता हूं, वहां पर वाटर जेड मशीन चलता हूं. वहां पर हम लोगों को कोई परेशानी नहीं होने वाली है. मधेपुरा निवासी नीतीश कुमार ने बताया कि सूरत में इंबोडरी का काम करता हूं. हमारी बात मिल सुपरवाइजर और दूसरे लोगों से हुई है, हमें सुरक्षा का आश्वासन दिया गया है.
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