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पटना : 84 पंचायतें हुईं विलीन, नगर निकाय का हिस्सा बनीं तो नदारद हुईं सुविधाएं

ग्रामीण क्षेत्रों का विलय कर नगर निकायों का बना दिया गया हिस्सा पटना : शहरीकरण के रास्ते में सरकार द्वारा वर्ष 2001 से अब तक राज्य की कुल 84 पंचायतें आगे बढ़ायी गयीं. ग्रामीण क्षेत्रों का विलय कर ये पंचायतें नगर निकायों का हिस्सा बना दी गयीं. करीब दो लाख से अधिक आबादी शहर का […]

ग्रामीण क्षेत्रों का विलय कर नगर निकायों का बना दिया गया हिस्सा
पटना : शहरीकरण के रास्ते में सरकार द्वारा वर्ष 2001 से अब तक राज्य की कुल 84 पंचायतें आगे बढ़ायी गयीं. ग्रामीण क्षेत्रों का विलय कर ये पंचायतें नगर निकायों का हिस्सा बना दी गयीं. करीब दो लाख से अधिक आबादी शहर का हिस्सा तो बन गयी, पर यहां की नागरिक और पंचायतों की मिलने वाली सुविधाएं समाप्त हो गयीं.
राज्य के 84 नगर निकायों के नागरिकों की पीड़ा है कि नगर निकायों के अंग बनने के कारण सभी टैक्स के दायरे में चले आये हैं. ताजा उदाहरण पटना नगर निगम क्षेत्र में विलीन की गयीं पंचायतों में पश्चिमी दीघा, पूर्वी दीघा, उत्तरी मैनपुरा, पश्चिमी मैनपुरा, पूर्वी मैनपुरा शामिल हैं.
नगर निगम क्षेत्र के कारण उन्होंने कई सरकारी योजनाएं का लाभ खो दिया. इसके अलावा सीतामढ़ी जिला का नगर पंचायत सुरसंड और कटिहार जिला का नगर पंचायत बारसोई में तो सिस्टम ही तैयार नहीं हुआ है.
पंचायतों के नगर निकायों में शामिल होने के बाद उनको स्वच्छ पेयजलापूर्ति, बेहतर सड़क, नाली व गली, बिजली कनेक्शन, सड़कों पर स्ट्रीट लाइट, जल और मल निकासी की व्यवस्था
करना, ठोस कचरा प्रबंधन का काम, पर्यावरण की सुरक्षा, सार्वजनिक स्नानागार की व्यवस्था करना और अन्य विकास संबंधी सुविधाएं उपलब्ध कराना है. अब तक दर्जनों ऐसी नगर पंचायतें हैं जिनका प्रशासनिक भवन भी तैयार नहीं हुआ है.
सुरसंड नगर पंचायत का अपना भवन नहीं
यह एक बानगी है कि सीतामढ़ी जिला में नवगठित सुरसंड नगर पंचायत के पास अब तक अपना भवन भी नहीं है. यहां पर एक महिला कार्यपालक पदाधिकारी को संयुक्त प्रभार में जिम्मेदारी सौंपी गयी थी. फिलहाल उन्हें वहां से वापस हटा लिया गया. सुरसंड नगर पंचायत बिना कार्यपालक पदाधिकारी के संचालित हो रहा है. अधिकारियों व कर्मचारियों की कमी है के कारण सरकारी योजनाओं को जमीन पर नहीं उतारा जा सका है. इस तरह की स्थिति अन्य निकायों में भी बनी हुई है. इन नगर निकायों में सिर्फ जनप्रतिनिधियों का निर्वाचन ही हो सका है.
नगर पंचायतों ने क्या खोया
ग्रामीण क्षेत्र की पंचायत से नगर पंचायतों में परिवर्तित होने से नागरिकों की सुविधा तो नहीं मिली, पर अन्य सुविधाओं से उनको वंचित होना पड़ा. जब ग्रामीण क्षेत्र में थे तो वहां के गरीबों को रहने के लिए प्रधानमंत्री आवास की सुविधा मिलती थी. मौसम और बेरोजगारी की मार से बचाने के लिए मनरेगा के तहत रोजगार की गारंटी थी. बीपीएल में शामिल होने पर उनको मुफ्त गैस का कनेक्शन मिलता था.
मकान बनाने के लिए कहीं नक्शा पास कराने की जरूरत नहीं थी. खाली जमीन पर काम करने के लिए कोई टैक्स नहीं देना पड़ता था. जो सुविधाएं गांवों में उनको मुफ्त मिलती थी. शहर का अंग बनने के बाद सुविधाओं में तो इजाफा नहीं हुआ. उनके हिस्से में आया बिना सुविधाओं का कर का बोझ.
विलीन
हुईं पंचायतें
वर्ष पंचायत
2001 8471
2006 8463
2011 8442
2012 8410
2013 8406
2016 8392
2017 8387
स्थिति में होगा सुधार
नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा का कहना है कि पूर्व से गठित नगर पंचायतों में सभी सुविधाएं उपलब्ध हो चुकी हैं. उन्होंने बताया कि नवगठित नगर पंचायतों में दिसंबर तक प्रशासनिक भवन और स्टाफ की कमी को दूर कर दिया जायेगा. उन्होंने बताया कि नगर पंचायतों में नागरिक सुविधाएं बहाल करने के लिए राशि दी जा रही है.
प्रशासनिक भवन के लिए, सड़क निर्माण, आवास के लिए, रोजगार के लिए महिला समूहों का गठन और वेंडरों को लोन दिलाया जा रहा है. उन्होंने कहा कि नगर पंचायतों में रहने वाली आबादी को गांवों से अधिक सुविधाएं मिल रही हैं. इसमें और सुधार के लिए प्रयास किया जा रहा है.

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