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प्राकृतिक आपदाएं हर साल झेलने के बाद भी बिहार में हो रहा विकास : सुशील मोदी

पटना : बिहार में हर साल प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, इसे झेलने के बावजूद यहां विकास हो रहा है. पिछले 14 सालों में से 11-12 साल यहां बाढ़ व सूखा आया.साल 2017 में आयी बाढ़ से बहुत नुकसान हुआ. बाढ़पीड़ितों की मदद के लिए सरकार ने बजट से निकालकर पांच हजार करोड़ रुपये खर्च किया. […]

पटना : बिहार में हर साल प्राकृतिक आपदाएं आती हैं, इसे झेलने के बावजूद यहां विकास हो रहा है. पिछले 14 सालों में से 11-12 साल यहां बाढ़ व सूखा आया.साल 2017 में आयी बाढ़ से बहुत नुकसान हुआ. बाढ़पीड़ितों की मदद के लिए सरकार ने बजट से निकालकर पांच हजार करोड़ रुपये खर्च किया. इसके साथ ही हर साल आने वाली बाढ़ से यहां सड़कें, पुलिया, नहरें आदि टूट जाती हैं और फसलों व मवेशियों का भी नुकसान होता है.
उक्त बातें उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने शुक्रवार को कृषि विभाग के कार्यक्रम बिहार में कृषि विकास की क्षमता के स्रोत एवं संभावनाओं के दौरान कहीं. उपमुख्यमंत्री ने कहा कि बिहार में जनसंख्या घनत्व अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक है. यहां सामान्य रूप से एक वर्ग किमी में 1200 लोग रहते हैं, वहीं दरभंगा और मधुबनी में एक वर्ग किमी में 1500 से 1600 लोग रहते हैं.
इंडियन काउंसिल फॉर इंटरनेशनल इकोनोमिक रिलेशन्स की रिपोर्ट में वर्ष 2005-06 से 2014-15 के बीच बिहार में कृषि विकास की दर राष्ट्रीय औसत से अधिक रही. इस अवधि में बिहार की कृषि विकास दर 4.7 प्रतिशत थी, जबकि राष्ट्रीय औसत 3.6 प्रतिशत था. इस रिपोर्ट में कृषि क्षेत्र के विकास के लिए बिजली, सड़क और मार्केटिंग की आधारभूत संरचना के विकास की आवश्यकता बतायी गयी है.
मोदी ने कहा कि विकास कार्यक्रमों का फलाफल यह हुआ है कि राज्य में वर्ष 2016-17 में 185 लाख मीट्रिक टन रिकॉर्ड खाद्यान्न उत्पादन हुआ है. वर्ष 2005-06 में चावल का उत्पादकता स्तर 1.1 टन प्रति हेक्टेयर था जो वर्ष 2016-17 में बढ़कर 2.5 टन प्रति हेक्टेयर हो गया. वर्ष 2005-06 में मक्का की उत्पादकता 2.0 टन प्रति हेक्टेयर थी, 2016-17 में बढ़कर 5.3 टन प्रति हेक्टेयर हो गयी. कृषि मंत्री डॉ प्रेम कुमार ने कहा कि 2008 से 2012 तक पहले, वर्ष 2012 से 2017 तक दूसरे कृषि रोडमैप को लागू किया गया है. अगले पांच वर्षों के लिए तीसरे कृषि रोडमैप पर करीब 1.54 लाख करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे.
दो साल में डीजल मुक्त होगी सिंचाई व्यवस्था
ऊर्जा मंत्री बिजेन्द्र प्रसाद यादव ने कहा है कि बिहार में कृषि के लिए अलग से फीडर की व्यवस्था की जा रही है. आने वाले दो वर्षों में राज्य में सिंचाई बिजली आधारित होगी. इस प्रकार यहां की सिंचाई व्यवस्था डीजल मुक्त हो जायेगी. उन्होंने कहा कि प्रथम और द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं में ग्रामीण क्षेत्रों में बजट का प्रावधान ज्यादा किया गया था, लेकिन बाद में घटा दिया गया. शुरुआत से ही बिहार को पंचवर्षीय योजनाओं में उतनी वित्तीय सहायता नहीं मिली, जितनी अन्य राज्यों को मिली. उन्होंने कहा कि खाद्य सुरक्षा अधिनियम में बिहार के परिवेश में स्वामीनाथन समिति की रिपोर्ट सराहनीय है.
धान खरीद के लिए नयी योजना
मोदी ने कहा कि बिहार में इस समय आठ हजार धान खरीद सेंटर काम कर रहे हैं. इसकी खरीद 15 जनवरी के बाद ही शुरू होती है. तब तक किसान सरकारी क्रय केंद्रों पर धान बेचने के लिए नहीं रुक सकता और वह बाजार में इसे बेच देता है. उन्होंने कहा कि इसके समाधान के लिए सभी सरकारी क्रय केंद्रों पर ड्रायर लगाने की योजना है.
सब्जी खरीद के लिए को-ऑपरेटिव सोसाइटी
मोदी ने कहा कि सुधा की तर्ज पर किसानों से सब्जी खरीद के लिए को-ऑपरेटिव सोसाइटी बनेगी. इसका मकसद सब्जी उत्पादक किसानों को बाजार व उचित मूल्य उपलब्ध करवाना है. सौर ऊर्जा का इस्तेमाल होने से किसानों को प्रति हेक्टेयर सिंचाई खर्च में 1200 से 1400 रुपये की बचत होगी. गंगा किनारे ऑर्गेनिक कॉरीडोर बनाये जायेंगे.
52 लाख हेक्टेयर में सिंचाई क्षमता
जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह उर्फ ललन सिंह ने कहा कि राज्य में करीब 52 लाख हेक्टेयर में सिचाई की क्षमता है. इसमें 29.69 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में सिचाई क्षमता सृजित की गयी है.
पिछले वित्तीय वर्ष में तीन लाख हेक्टेयर क्षेत्र में अतिरिक्त सिंचाई क्षमता का विकास किया गया है. इस वित्तीय वर्ष में भी तीन लाख हेक्टेयर में सिचाई क्षमता विकसित की जायेगी. बिहार में बाढ़ प्रबंधन बड़ी चुनौती है. यहां मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, उतराखंड और नेपाल में अधिक बारिश का दुष्प्रभाव राज्य को झेलना पड़ता है.

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