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कुप्रथा : लड़कियों से ज्यादा लड़के बाल विवाह से पीडि़त

10 साल में पीडि़त लड़कियों में एक तिहाई की कमी पुष्यमित्र पटना : आम तौर पर यह माना जाता है कि बाल विवाह की शिकार अमूमन लड़कियां होती हैं, इसलिए बाल विवाह के खिलाफ चलने वाले अभियान में सरकार से लेकर संस्थाओं तक का फोकस लड़कियों पर ही रहता है. और यह वाजिब भी है, […]

10 साल में पीडि़त लड़कियों में एक तिहाई की कमी
पुष्यमित्र
पटना : आम तौर पर यह माना जाता है कि बाल विवाह की शिकार अमूमन लड़कियां होती हैं, इसलिए बाल विवाह के खिलाफ चलने वाले अभियान में सरकार से लेकर संस्थाओं तक का फोकस लड़कियों पर ही रहता है.
और यह वाजिब भी है, क्योंकि बाल विवाह से लड़कियों को शारिरिक और मानसिक दोनों तरह के नुकसान उठाने पड़ते हैं. मगर आंकड़े गवाह हैं कि बिहार में लड़के अधिक संख्या में बाल विवाह के शिकार हो रहे हैं. पिछले 10 साल में जहां बाल विवाह के खिलाफ चले अभियान और जागरुकता की वजह से बाल विवाह की पीड़ित लड़कियों की संख्या में भारी कमी आयी है, वहीं लड़कों की संख्या बढ़ गयी है.
विशेषज्ञों का कहना है कि इसका मुख्य कारण ग्रामीण क्षेत्रों में ड्रॉपआउट और कम उम्र में पलायन से लड़कों पर कम उम्र में पारिवारिक जिम्मेदारियों का आना भी है. राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ सर्वेक्षण-4 के आंकड़ों के मुताबिक राज्य में जहां 39.1% लड़कियां बाल विवाह की शिकार हैं, वहीं इस मामले में लड़कों की संख्या 40% है, जो लड़कियों से 0.9% अधिक है. जबकि 2005-6 में आये राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ सर्वेक्षण-3 के आंकड़ों के मुताबिक बाल विवाह का शिकार होने वाले लड़कों की संख्या 39.1% थी, जबकि लड़कियों की संख्या 60.3% थी.
इन आंकड़ों से जाहिर है कि पिछले 10 सालों में जहां बाल विवाह के मामले में लड़कियों की संख्या में 21.2% की भारी गिरावट आयी, वहीं लड़कों की संख्या 0.9% बढ़ गयी. सामाजिक कार्यकर्ता और किशोरियों के साथ लगातार काम करने वाली शाहिना परवीन कहती हैं कि इसकी एक बड़ी वजह यह है कि सरकार और संस्थाओं ने बाल विवाह के मुद्दे पर सिर्फ लड़कियों पर फोकस करके काम किया, लड़के उनके एजेंडे में नहीं थे. एक तो पीड़ित लड़कों का आंकड़ा भी तब कम था और लड़कियों को इससे बचाना बहुत जरूरी था.
शाहिना कहती हैं कि अब जब 10 साल की मेहनत रंग लायी और एक तिहाई लड़कियां बाल विवाह के भंवर से निकल गयीं, तो आज पीड़ितों की संख्या में लड़कों की हिस्सेदारी बढ़ गयी है. और ये आंकड़े आंखें खोलने वाले हैं कि हम बाल विवाह के मुद्दे को स्त्री केंद्रित मान कर नहीं चल सकते. हमें पुरुषों की समस्या पर भी उतना ही ध्यान देना होगा.
लंबे समय से ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने वाली शाहिना कहती हैं कि यही वजह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आज युवा लड़के बहुत कम नजर आते हैं.
क्योंकि कम उम्र में शादी करने से बहुत जल्द उन पर पारिवारिक जिम्मेदारी आ जाती है. ऐसे में उन्हें पढ़ाई छोड़ कर रोजगार की तलाश में बाहर निकलना पड़ता है. ग्रामीण क्षेत्रों में पलायन और ड्राॅपआउट की यह एक बड़ी वजह है. शाहिना कहती हैं कि अगर सरकार बाल विवाह की समस्या का सचमुच समाधान चाहती हैं, तो उसे लड़कों के मसलों को भी इसमें शामिल करना होगा. वरना यह लड़ाई आधी-अधूरी ही रह जायेगी.
बाल विवाह का शिकार
वर्ष लड़कियां लड़के
2015-16 39.1% 40%
2005-06 60.3% 39.1%

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