पटना : महागठबंधन टूटने का बड़ा प्रभाव बिहार में किसी पार्टी पर पड़ा है, तो वह कांग्रेस है. बिहार विधानसभा चुनाव में 27 सीटें जीतकर महागठबंधन में दावेदार रही पार्टी इन दिनों अंदरूनी कलह से दो-चार हो रही है. इस कलह के कारणों की समीक्षा करने पर, बीस वैसे बड़े कारण सामने आये हैं, जिसकी वजह से कांग्रेस बिखर रही है.
-बिहार प्रदेश कांग्रेस में कई गुट बन गये हैं. इनमें से कम संख्या वाला गुट वर्तमान अध्यक्ष अशोक चौधरी के पक्ष में है, वहीं बड़ा गुट किसी सवर्ण को अध्यक्ष बनाने की फिराक में है.
– अशोक चौधरी से नाराज गुट आलाकमान को पार्टी के अंदर खाने की स्थिति से अवगत करा चुका है और फैसले का इंतजार कर रहा है. अशोक चौधरी के विरोधी गुट ने केंद्रीय नेतृत्व को बताया है कि अशोक चौधरी बिहार में खुलकर भाजपा और नीतीश के गठबंधन वाली सरकार को सपोर्ट कर रहे हैं.
– प्रदेश कांग्रेस में किसी प्रकार का पार्टी सिद्धांत और नियम लागू नहीं रह गया है, जिसे मन कर रहा है, वह मीडिया के सामने अध्यक्ष पद की दावेदारी कर रहा है. इसी क्रम में कांग्रेस के बक्सर सदर विधायक मुन्ना तिवारी और विधान पार्षद दिलीप चौधरी ने अपने आपको अध्यक्ष पद का दावेदार बताया है.
-डॉ. अशोक चौधरी ने एक कदम आगे बढ़कर मीडिया से हाल में कहा कि जो कोशिश आज कांग्रेस के विधायकों को बचाने के लिए की जा रही है वह गठबंधन को बचाने के लिए क्यों नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि विधायकों का एक्सपाइरी डेट 2020 है लेकिन कांग्रेस का नहीं. बिहार कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि लालू प्रसाद यादव कांग्रेस नेताओं को ‘चिरकुट’ कह रहे हैं. आलाकमान को सोचना चाहिए कि बिहार में कांग्रेस को कितनी गंभीरता से लिया जा जा रहा है.
-लेकिन जब उनसे पूछा गया कि आलाकमान ने तो साफ कह दिया है कि बिहार में कांग्रेस लालू प्रसाद यादव के साथ रहेगी तो उनका जवाब था कि उन्होंने अपनी बात और भावनायें पार्टी को नेतृत्व को जता दिया है. उन्होंने कहा कि उनके पद में बने रहने और हटने को लेकर तरह-तरह की अटकलें जतायी जा रही हैं. अनिश्चितता के माहौल में काम नहीं हो पा रहा है. अब पार्टी आलाकमान को उनके भविष्य का फैसला करना चाहिए.
-सूत्रों की मानें, तो बिखरने की कवायद उस समय शुरू हुई, जब बिहार सरकार ने 28 अगस्त को पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव के बंगले को क्रमशः उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी और बाकी वर्तमान मंत्रियों को आवंटित कर दिया. सवाल यह उठाया जा रहा है कि पूर्व शिक्षा मंत्री और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अशोक चौधरी के बंगले को आवंटित नहीं किया गया है. उसके बाद से ही पार्टी में टूट की बात सामने आयी.
– कहा जा रहा है कि डॉ. अशोक चौधरी से बंगला खाली नहीं करवाकर नीतीश कुमार कांग्रेस नेताओं के एक गुट को लुभा रहे हैं. वैसे भी जदयू के विधान पार्षद संजय सिंह ने खुलकर कह दिया है कि जदयू में कांग्रेस नेताओं का स्वागत है.
-महागठबंधन से सत्ता में भागीदारी मिली पार्टी के नेताओं को बहुत रास आयी थी, लेकिन अचानक सत्ता से हट जाने के बाद कांग्रेस के कई विधायक यहबर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं. बताया जा रहा है कि सदानंद सिंह गुट के कुछ विधायक और अशोक चौधरी गुट के विधायक लगातार जदयू के संपर्क में बने हुए हैं.
-बिना फैसला किये राहुल गांधी का विदेश दौरा भी पार्टी के लिए सही साबित नहीं हुआ, उनके आने के इंतजार से पहले कई विधायकों ने जदयू में अपनी संभावनाओं को टटोल लिया है. सूत्रों की मानें तो एक साथ नहीं तो एक-एक कर कई विधायक जदयू में शामिल हो सकते हैं.
– महागठबंधन भंग हो जाने के बाद से कांग्रेस और राजद के रिश्ते में भी दूरी आयी है. लालू के चिरकुट वाले बयान से पहले लालू की रैली में कांग्रेस विधायकों को नहीं बुलाये जाने को लेकर एक विधायक ने तल्ख टिप्पणी की थी. बताया जा रहा है कि उसके बाद से ही यह कयास लगाया जा रहा है कि कुछ विधायक आर-पार के मूड में हैं.
– काफी अरसे के बाद बिहार में बेहतर स्थिति में पहुंची पार्टी के नेताओं में सत्ता सुख की लालसा पूरी तरह जोर मार रही है. महागठबंधन में थोड़े ही दिनों के सत्ता सुख ने उन्हें काफी सुकून दिया था.
– लालू यादव के प्रति पार्टी का सॉफ्ट कार्नर भी नेताओं को टूट की ओर धकेल रहा है. महागठबंधन में उपजे संकट के बाद नीतीश कुमार बार-बार कांग्रेस की दुहाई दे रहे थे कि उन्होंने बीच-बचाव कुछ नहीं किया और इसमें अपनी भूमिका बिल्कुल नगण्य कर दी. बहुत जल्द ही पार्टी में उथल-पुथल मच सकती है. लालू अपने तरीके से कांग्रेस को हांकते हैं, यह बात स्थानीय नेताओं को पता है, वह चाहते हैं कि जदयू में मिल जाने से उनका भविष्य और राजनीतिक कैरियर दोनों संवर जायेगा.
– पार्टी ने 2015 के विधानसभा चुनाव में 41 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 27 पर जीत कर आयी थी. पार्टी के कई नेता मंत्री भी बने थे. कांग्रेसी अरसे बाद सत्ता सुख का भोग कर रहे थे. अचानक जदयू के भाजपा के साथ चले जाने से इनके सत्ता सुख का सपना चकनाचूर हो चुका है.
– नीतीश कुमार के एहसान तले दबे ऐसे 10 विधायक लगातार जदयू के संपर्क में बने हुए हैं, वह कभी भी पार्टी से अलग रास्ता अपना सकते हैं. उनकी बातों को कांग्रेस का प्रदेश नेतृत्व भी नहीं समझ रहा है. महागठबंधन टूटने के बाद से इस बात को लेकर चर्चा हो रही है कि कांग्रेस के विधायक जदयू का दामन थाम सकते हैं. पार्टी नेतृत्व काफी देर कर चुका है.
– सीताराम केसरी के जमाने से लालू का साथ दे रही कांग्रेस, लालू को छोड़ने के मूड में नहीं है. यह कारण भी विधायकों के मोहभंग होने का कारण है.
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