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BIHAR में 100 में 6 बच्चे मोबाइल के कारण हो रहे आंख के टेढ़ेपन का शिकार, इलाज संभव

पटना : अगर आप का बच्चा पांच साल से कम उम्र का है और उसे मोबाइल फोन की लत लग गयी है तो आप सावधान हो जाएं. क्योंकि, बच्चे की आंखें या तो टेढ़ी हो सकती है या फिर आंखों की रोशनी कम हो सकती है. इससे निकलने वाली रोशनी की किरणें बच्चों की कॉर्निया […]

पटना : अगर आप का बच्चा पांच साल से कम उम्र का है और उसे मोबाइल फोन की लत लग गयी है तो आप सावधान हो जाएं. क्योंकि, बच्चे की आंखें या तो टेढ़ी हो सकती है या फिर आंखों की रोशनी कम हो सकती है. इससे निकलने वाली रोशनी की किरणें बच्चों की कॉर्निया पर असर डाल रहा है. नतीजा बच्चों की आंखें तिरछी हो रही हैं.
उक्त बातें इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में आयोजित कॉर्निया एंड आई बैंकिंग कॉन्फ्रेंस में नेत्र रोग विशेषज्ञों ने कहीं. आइजीआइएमएस के नेत्र रोग विभाग के एचओडी डॉ विभूति प्रसाद सिन्हा के नेतृत्व में हुए दो दिवसीय इस कॉन्फ्रेंस में कॉर्निया, आई बैंक आदि के बारे में चर्चा हुई. इसका समापन रविवार को हो गया.
नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ सुनील सिंह ने कहा कि प्रदेश में 100 में से छह बच्चे आंखों के टेढ़ेपन के शिकार हैं. पांच साल तक के बच्चों की कॉर्निया पूरी तरह से सेट नहीं हो पाती है. ऐसे में उस पर किसी तरह का असर पड़ता है तो वह जगह छोड़ देती है. पांच साल के बाद कार्निया अपनी जगह सेट कर जाती है. बच्चों में देर समय तक टीवी देखना, कंप्यूटर चलाना, वीडियो गेम्स खेलना आदि के कारण आंखों में टेढ़ापन के मामले बढ़ रहे हैं.
ये हैं टेढ़ेपन के लक्षण
1. बच्चों के सिर में दर्द रहना
2.नजर कमजोर और बार-बार आंख फड़फड़ाना
3.चिड़चिड़ापन
4.पढ़ाई में ध्यान न रहना
5.आंखों में पानी आना
6.आंखों में बार-बार इंफेक्शन होना
स्मार्ट फोन व टैबलेट अधिक खतरनाक
बेंगलुरु से आये नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ एमके कृष्णा ने कहा कि बच्चों के लिए स्मार्ट फोन व टैबलेट अधिक खतरनाक है. क्योंकि इनमें कई तरह की रोशनी होती है और इस रोशनी से कई हानिकारक किरणें निकलती हैं, जो सीधे कार्निया यानी आंख की पुतली पर असर दिखाती है. इस विषय पर ब्रिटेन सहित कई देशों में अनेक रिसर्च हुए हैं. जिससे यह पता चला है कि टेक्नोलॉजी हमारे बच्चों को फायदा पहुंचाने की बजाय लांग टर्म में नुकसान पहुंचा रहा है.
टेढ़ेपन का इलाज संभव
समय पर आंखों के तिरछेपन की बीमारी का उपचार हो जाये तो यह ठीक हो सकता है. तिरछेपन का इलाज बचपन में ही कराना चाहिए. क्योंकि बचपन में इलाज कराने से तिरछापन भी ठीक हो जाता है. आंखों की रोशनी भी बढ़ती है.
डॉ निलेश मोहन, नेत्र रोग विशेषज्ञ
Prabhat Khabar Digital Desk
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