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ध्वनि प्रदूषण बड़ी समस्या, प्रशासन और जनता दोनों जिम्मेदार

ध्वनि प्रदूषण बना बड़ी समस्या, प्रशासन व जनता दोनों जिम्मेदार

सड़कों पर प्रेशर हॉर्न, डीजे और लाउडस्पीकर से बढ़ रहा शोर, स्वास्थ्य पर पड़ रहा गंभीर असर फ़ोटो कैप्शन- बाजार में जाम के समय हार्न बजाते

प्रतिनिधि, नवादा नगर.

नवादा जिले में ध्वनि प्रदूषण एक गंभीर समस्या का रूप ले चुका है. शहर की सड़कों से लेकर मोहल्लों तक हर जगह कान फाड़ने वाली आवाज़ें सुनाई देती हैं. लेकिन दुख की बात यह है कि इस दिशा में न तो आम लोग सजग हैं और न ही प्रशासन की ओर से पर्याप्त सख्ती दिखाई देती है. जिले के शहरी इलाकों, खासकर मुख्य सड़कों, अस्पतालों, स्कूलों और बाजारों में वाहनों में प्रेशर हॉर्न का धड़ल्ले से उपयोग किया जा रहा है. जबकि, यह पूरी तरह प्रतिबंधित है. प्रेशर हॉर्न से निकलने वाली आवाज़ 100 डेसिबल से अधिक होती है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक है. वैज्ञानिक शोध बताते हैं कि 60 डेसिबल से अधिक की ध्वनि हमारे तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है, जिससे मानसिक तनाव, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप और स्थायी रूप से बहरापन तक हो सकता है. डॉ रविश कुमार के अनुसार, अत्यधिक शोर न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है. लगातार तेज आवाज़ों में रहने वाले लोगों में चिड़चिड़ापन, थकान और चिंता बढ़ जाती है. गर्भवती महिलाओं पर इसका प्रभाव और भी घातक होता है. उनमें मानसिक तनाव, उच्च रक्तचाप और गर्भपात की संभावना तक बढ़ जाती है.

डीजे, लाउडस्पीकर और आतिशबाजी भी बने कारण

शादी समारोह, त्योहार, राजनीतिक रैलियां और धार्मिक आयोजनों में लाउडस्पीकर, डीजे और पटाखों का अत्यधिक उपयोग भी ध्वनि प्रदूषण का एक प्रमुख कारण है. इन कार्यक्रमों में ध्वनि का स्तर अक्सर 90 से 120 डेसिबल तक पहुंच जाता है. धरना-प्रदर्शन और रैलियों के दौरान नारेबाजी और भीड़ का शोर भी स्थिति को और भयावह बना देता है.

जानवरों और पर्यावरण पर भी असर

तेज ध्वनि केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं, पशुओं और पक्षियों के लिए भी नुकसानदायक है. वैज्ञानिकों के अनुसार, लगातार तेज आवाज से उनका नर्वस सिस्टम प्रभावित होता है, जिससे वे हिंसक या असामान्य व्यवहार करने लगते हैं. पक्षी अपने घोंसले छोड़ देते हैं और जानवरों का प्रजनन चक्र भी प्रभावित होता है.

सड़क दुर्घटनाओं का खतरा भी बढ़ा

तेज आवाज वाले हॉर्न न केवल कानों को नुकसान पहुंचाते हैं बल्कि सड़क दुर्घटनाओं का भी कारण बनते हैं. अचानक आने वाली तेज आवाज से वाहन चालक घबरा जाते हैं और नियंत्रण खो बैठते हैं. कई मामलों में यह जानलेवा हादसों में तब्दील हो जाता है.

क्या कहता है कानून

मोटर वाहन अधिनियम के तहत प्रेशर हॉर्न या अत्यधिक ध्वनि उत्पन्न करने वाले उपकरणों का उपयोग करना अपराध है. नियमों के अनुसार, 10 हजार रुपये तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. परिवहन विभाग ऐसे वाहनों का चालान कर सकता है और जरूरत पड़ने पर हॉर्न जब्त या हटाने का भी अधिकार रखता है. इसी तरह, लाउडस्पीकर या डीजे का अनुचित उपयोग करने वालों पर भी प्रशासन कार्रवाई कर सकता है. ऐसे मामलों में एफआईआर दर्ज कर उपकरण जब्त किए जाते हैं.

प्रशासन की सख्त चेतावनी, पर ध्यान नहीं

सदर एसडीओ अमित अनुराग ने कहा है कि जिले में ध्वनि प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जायेगी. उन्होंने बताया कि प्रेशर हॉर्न का उपयोग करने वाले वाहनों पर एफआईआर दर्ज कर जुर्माना वसूला जायेगा. चुनाव के बाद डीटीओ को विशेष अभियान चलाने के निर्देश दिये जायेंगे

जन-जागरूकता ही समाधान

ध्वनि प्रदूषण पर नियंत्रण केवल प्रशासनिक कार्रवाई से संभव नहीं है. जन जागरूकता और जिम्मेदारी की भावना भी जरूरी है. यदि लोग स्वयं इस समस्या की गंभीरता समझें और नियमों का पालन करें, तो इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है. जब तक जनता और प्रशासन मिलकर काम नहीं करेंगे, तब तक ध्वनि प्रदूषण की यह समस्या नवादा में विकराल रूप धारण करती रहेगी.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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