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मंझवे में दर्जनों आवास खाली

1988 में हुआ था निर्माण पर नहीं रहता है कोई हिसुआ : हिसुआ की तुंगी पंचायत में कहीं इंदिरा आवास से लाभुक वंचित हैं, तो कहीं सालों पहले बना इंदिरा आवास खाली और बेकार पड़ा हुआ है. मंझवे पहाड़ी के पास दर्जनों इंदिरा आवास सालों से यूं ही बेकार पड़े हैं, जिसपर न तो प्रशासन […]

1988 में हुआ था निर्माण पर नहीं रहता है कोई
हिसुआ : हिसुआ की तुंगी पंचायत में कहीं इंदिरा आवास से लाभुक वंचित हैं, तो कहीं सालों पहले बना इंदिरा आवास खाली और बेकार पड़ा हुआ है. मंझवे पहाड़ी के पास दर्जनों इंदिरा आवास सालों से यूं ही बेकार पड़े हैं, जिसपर न तो प्रशासन का संज्ञान है और न जनप्रतिनिधियों का. आवास में नहीं रहने की वजह से आवास की हालत भी बदहाल हो रही है. कोई देखने वाला नहीं है. पूर्व मुखिया, वर्तमान मुखिया, बीडीओ सभी इस पर कोई ठोस जबाव नहीं दे पाते हैं और न तो कोई पहल है.
आवास लाभुकों को एलाउट किये जाने की बातें कही जाती है, पर उसका कोई रेकाॅर्ड खोजने की जहमत नहीं होती. यह किस-किस लाभुकों को मिला था और वे यहां क्यों नहीं रह रहे हैं. हालांकि इसी से कुछ दूरी पर पहाड़ के तराई में ही दलित बस्ती बसा हुआ है. वहां और इंदिरा आवास का निर्माण भी हुआ है, लेकिन यह स्थल वीरान है. इसी स्थल पर और इंदिरा आवास बनवाने की पहल 1988 के बाद क्यों नहीं हुई. इस तरह के कई सवाल आम लोगों में है. गौरतलब है कि 1988 में इंदिरा गृह निर्माण के नाम पर यहां 12 आवास बनाये गये थे. कार्यक्रम कर तत्कालीन मगध प्रमंडल के आयुक्त के हाथों इसे लाभुकों को सौंपा गया था. तुंगी के पूर्व मुखिया विनोद कुमार बताते हैं कि इसमें लाभुक रह भी रहे थे, लेकिन असुरक्षित महसूस करने की स्थिति में दलित वहां रहना छोड़ दिया. लेकिन ऐसी असुरक्षा की बातें क्यों?
यही बात थी तो ऐसे स्थल को आवास निर्माण के लिए क्यों चुना गया और सरकारी राशि को बरबाद किया गया? और यदि आवास बना तो इसके बाद यहां और आवास बना कर इसे बसाने का प्रयास क्यों नहीं हुआ? इधर इस आवास को देख-देख कर मंझवे के ही दलित कहते हैं कि किसी को आवास नहीं मिलता है, तो कहीं बना आवास बेकार है.

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