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जातीय गोलबंदी पर सबकी नजर

अब एक म्यान में दो तलवार! नवादा नवादा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में एक ही जाति के दो क्षत्रप आमने सामने रहे हैं. दोनों एक-दूसरे की जीत-हार का कारण भी बनते हैं. पर, हाल में सूबे में हुए राजनीतिक बदलाव (जद यू व राजद के बीच तालमेल) के कारण कौशल यादव और राजबल्लभ प्रसाद फिलहाल […]

अब एक म्यान में दो तलवार!
नवादा
नवादा विधानसभा क्षेत्र की राजनीति में एक ही जाति के दो क्षत्रप आमने सामने रहे हैं. दोनों एक-दूसरे की जीत-हार का कारण भी बनते हैं. पर, हाल में सूबे में हुए राजनीतिक बदलाव (जद यू व राजद के बीच तालमेल) के कारण कौशल यादव और राजबल्लभ प्रसाद फिलहाल एक ही ध्रुव पर खड़े दिख रहे हैं. हाल ही में संपन्न हुए बिहार विधान परिषद के चुनाव में राजबल्लभ प्रसाद ने गंठबंधन धर्म का पालन करते हुए लालू प्रसाद के कहने पर हाथ मिलाया था. लेकिन, विधानसभा चुनाव में यह मेल-मिलाप किस हद तक कायम रहता है, यह देखने वाली बात होगी. महागंठबंधन में उम्मीदवारी तो किसी एक ही होगी. ऐसे में दूसरा खेमा क्या करेगा़? यह सवाल अभी भी सतह पर है. उधर, जदयू से अलग हो चुकी भाजपा इस सीट पर अपना प्रत्याशी चाहेगी. हालांकि, उसकी सहयोगी लोजपा ऐसा नहीं चाहेगी, यह कहना भी अभी कठिन है.
अब तक
सभी प्रमुख पार्टियों के नेता अपने-अपने दल में स्थिर बने हुए हैं, मौके की ताक में हैं और बन-बिगड़ रहे समीकरणों पर नजर रख रहे हैं.
इन दिनों
यहां जदयू की तरफ से घर-घर दस्तक कार्यक्रम चल रहा है. बाकी दल भी अपने-अपने हिसाब से छोटी-छोटी बैठकें कर रहे हैं. भाजपा भी.
स्थानीय मुद्दों का असर नहीं
रजौली
राजनीति में पहली बार सक्रिय कन्हैया कुमार ने भाजपा-जदयू गंठबंधन के उम्मीदवार के रूप में भाजपा की टिकट पर पिछले विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी. पारंपरिक रूप से यह सीट वामपंथियों व समाजवादियों के प्रभाव में रही है. सुरक्षित भी रही है. इस कारण आमतौर पर यहां वाम मोरचा और राजद का दबदबा रहा है. यह सीट इन दलों के खाते में जाती भी रही थी, पर जदयू-भाजपा गंठबंधन ने यहां के पुराने समीकरण को उलट-पुलट कर सीट अपने नाम कर ली. नक्सल प्रभावित इलाका होने के कारण अब तक इस विधानसभा क्षेत्र का समुचित विकास नहीं हो पाया है. चुनावों में विकास की बातें होती हैं, जिन्हें कुछ दिन बीतते ही हारने-जीतनेवाले भूल जाते हैं. अक्सर इस विधानसभा क्षेत्र को राज्यस्तरीय चुनावी लहर प्रभावित करती है न कि यहां के स्थानीय मुद्दे. स्थानीय राजनीति की जानकारी रखनेवालों के मुताबिक, इस बार भी ऐसा नहीं होगा, यह सोचने की फिलहाल कोई वजह नहीं दिख रही.
अब तक
करीब सभी दलों के नेता अपनी-अपनी जगह रह कर ही मौके तलाश रहे हैं. भाजपा की अंदरूनी लड़ाई पर अधिकतर नेताओं की नजर है.
इन दिनों
जदयू घर-घर दस्तक कार्यक्रम चला रहा है. पर्चा पर चर्चा भी. भाजपा समेत दूसरे दल भी बैठकें कर कार्यकर्ताओं को तैयार कर रहे हैं.
वोटर बदले, परिणाम नहीं
हिसुआ
हिसुआ विधानसभा क्षेत्र में सवर्ण वोटों की बहुलता के कारण आजादी के बाद से ही इस सीट पर एक खास जाति के उम्मीदवार बार-बार विजयी होते रहे हैं. वोटों के आंकड़ों में उलट-फेर को लेकर वर्ष 2010 में नारदीगंज और मेसकौर के कुछ गांवों को हटा कर अकबरपुर प्रखंड को जोड़ा गया था. इस प्रकार वोटर तो बदल गये, पर परिणाम बेअसर ही रहा. पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से भाजपा के अनिल सिंह ने लोजपा के अनिल मेहता को हराया था. एनडीए में यह सीट भाजपा के खाते में जायेगी, यह तो तय है. महागंठबंधन में यह सीट किस दल के खाते में जायेगा और कौन उम्मीदवार होगा, यह तय होना बाकी है. यहां से कभी कांग्रेस के विधायक आदित्य सिंह भी हुआ करते थे. दिवंगत आदित्य सिंह तथा उनके पुत्र व पुत्रवधुओं की भी इस सीट पर नजर है.
अब तक
यहां के बड़े व प्रमुख नेताओं व प्रतिद्वंद्वियों के राजनीतिक स्टैंड में कोई बड़ा बदलाव नहीं आया है. सभी फिलहाल अपने-अपने दल में बने हुए हैं.
इन दिनों
जदयू की तरफ से घर-घर दस्तक कार्यक्रम चल रहा है. भाजपा भी अपने कार्यकर्ताओं की जहां-तहां बैठकें कर रही है. दूसरे दल भी ऐसा ही कर रहे हैं.
मां के बाद बेटे के कब्जे में
गोविंदपुर
गोविंदपुर जदयू विधायक कौशल यादव की पारिवारिक सीट मानी जाती है. लंबे समय तक इनकी माता और मंत्री रह चुकीं गायत्री देवी इसका प्रतिनिधित्व करती रहीं हैं. पर, कौशल ने बतौर निर्दलीय प्रत्याशी अपनी मां को ही हरा कर इस सीट पर कब्जा किया था. पिछले चुनाव में उन्होंने लोजपा प्रत्याशी को पराजित किया था. एक बार फिर उनकी उम्मीदवारी पक्की है. पर, यहां इनके ही शार्गिदों ने विरोध की दुदुंभी भी बजा रखी है. अलग-अलग पार्टियों में दिख रहे इनके प्रबल विरोधी कभी इनके साथ थे. ऐसे में लड़ाई गुरु-चेलों के बीच होने के आसार हैं. टिकट नहीं मिलने पर भी इनके विरोधी इनके खिलाफ काम करेंगे. राजद के साथ आने पर जदयू के पक्ष में समीकरण है. पर, नक्सली गतिविधियों के साथ ही विकास कार्यो को लेकर भी सवालों के जवाब विधायक को देने पड़ सकते हैं. एनडीए की ओर से प्रत्याशी की घोषणा के बाद तसवीर साफ होगी.
अब तक
अभी कोई बड़ा चेहरा इधर से उधर नहीं हुआ है. पर, चुनाव नजदीक आने पर दल-बदल की संभावना खारिज भी नहीं की जा सकती.
इन दिनों
जदयू की ओर से घर-घर दस्तक देने का कार्यक्रम चल रहा है. विरोधी दल भी अपने-अपने कार्यकर्ताओं की जहां-तहां छोटी-छोटी बैठकें कर रहे हैं.
जातीय राजनीति हावी
वारिसलीगंज
वारिसलीगंज का इलाका कभी जातीय नरसंहारों का गवाह रहा है. एक दशक पहले तक हिंसा-प्रतिहिंसा की आग में यह इलाका जल रहा था. जदयू-भाजपा गठबंधन की राजनीति ने इस हालात से मुक्ति तो दिलायी, पर चुनाव आने के साथ ही एक बार फिर से लोग चिंतित होने लगे हैं. यहां से जो भी विधायक बनता है, बाहुबली ही कहलाता है. हर चुनाव में मनी पावर व मसलपावर का भरपूर उपयोग भी होता रहा है. जातीय गोलबंदी के आगे विकास की राजनीति गौण पड़ जाती है. चीनी मिल चालू नहीं हो पाया. किसाों के समक्ष सिंचाई सबसे बड़ी समस्या है. चुनाव के पहले तक इस पर खूब बातें होती हैं, लेकिन मतदान आते-आते सभी जातीय समीकरण को दुरुस्त करने में जुट जाते हैं. जदयू के प्रदीप कुमार पिछले दो टर्म से विधायक हैं. पिछले चुनाव में उन्होंने कांग्रेस की अरुणा देवी को पराजित किया था, जो अब लोजपा में हैं. एनडीए यहां से किसे अपना प्रत्याशी बनाती है, यह मायने रखता है.
अब तक
पूर्व विधायक अरुणा देवी ने अपना पाला बदल लिया है. अब वह कांग्रेस छोड़ लोजपा में शामिल हो गयी हैं. अर्थात् एनडीए के साथ.
इन दिनों
जदयू के लोग पर्चा पर चर्चा में व्यस्त रहे हैं. घर-घर दस्तक कार्यक्रम भी चला रहे हैं. भाजपा भी जहां-तहां छोटी-छोटी बैठकें कर रही है.
दो बार से है जद यू का कब्जा
बरबीघा
बरबीघा विधानसभा क्षेत्र में 1952 से लेकर 2000 तक 13 बार कांग्रेस ने जीत का परचम लहराया़ हालांकि विधानसभा के सातवें चुनाव में राजो सिंह ने निर्दलीय परचम लहराया था़ 2005 से बरबीघा की राजनीतिक समीकरण में बदलाव आया और 2010 के चुनाव में भी लगातार दूसरी बार एनडीए गंठबंधन में जदयू की जीत हुई़ 2005 में बरबीघा से डॉ आरआर कनौजिया जदयू से पहली बार विधायक बने. 2010 में गजानंद उर्फ मुन्ना शाही भी पहली बार जदयू से विधायक बऩे इस बार एनडीए से अलग जदयू राजद कांग्रेस के साथ महागंठबंधन में है़ भाजपा से अलग होने पर इसका प्रारंभिक परिणाम लोकसभा चुनाव में विधानसभा से भाजपा को बढ़त मिली है. हालांकि एनडीए के ही रालोसपा भी बरबीघा सीट के लिए अपना दावा ठोक रहा है़
अब तक
13 बार कांग्रेस ने परचम लहराया, जबकि मात्र एक बार निर्दलीय और दो बार जदयू ने जीत हासिल की.कांग्रेस विधायक अशोक चौधरी राज्यमंत्री भी बऩे.
इन दिनों
जदयू का परचा पर चर्चा व घर-घर दस्तक कार्यक्रम,तो भाजपा की ओर गांव-गांव में परिवर्तन रथ को घुमाया जा रहा है.इन दिनों भाजपा का परिवर्तन रथ हर बूथ पर अपना चुनावी अभियान चला रही है़

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