वारिसलीगंज : सरकार द्वारा स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए चलायी जा रही मध्याह्न् भोजन (मिड-डे मील) योजना को सफल बनाने के लिए चाहे लाख दावे किये जायें. लेकिन, इसमें विभाग व सरकार की नीतियां ही सबसे बड़ी बाधा है. इसका खामियाजा आये दिन किसी न किसी रूप में भुगतना पड़ता है.
स्कूलों में बच्चों को मिड-डे मील के तहत खाना बनाने के लिए रसोइया की बहाली सरकार द्वारा की गयी है, लेकिन आज तक किसी ने यह भी ध्यान नहीं दिया कि मात्र 49 पैसे प्रति बच्चे की दर से खाना खिला पाना कितना मुश्किल होगा. इसकी गुणवत्ता की कितनी गारंटी होगी या फिर एक हजार रुपये प्रति माह की खर्च पर सैकड़ों बच्चों के खाना बनाने और साफ-साफाई की क्या स्थिति होगी.
भोजन से बच्चों का लगाव नहीं
पिछले वर्ष लापरवाही व अदनेखी के कारण ही सारण जिले में ऐसी घटना हो गयी जिसमें कई बच्चों की मौत हो गयी. उस घटना के बाद भी कोई योजना में कोई बदलाव नहीं किया गया. हालांकि, इस योजना से बच्चों व अभिभावकों का लगाव लगभग न के बराबर दिखता है. फिर भी प्राथमिक व मध्य विद्यालयों में इस योजना का लाभ विद्यार्थियों को मिला रहा है. अभिभावक पवन कुमार, उमा शंकर कुमार, विजय शर्मा, जितेंद्र ठाकुर, कैलाश महतो आदि ने बताया कि सरकार शिक्षा की अच्छी व्यवस्था पर ध्यान दें. बच्चों की उपस्थिति बढ़ाने के लिए शुरू की गयी योजना यदि उनके लिए काल बन जाय तो, ऐसे में उनको स्कूल नहीं ही भेजना सही है.
सजग रहे बच्चे व अभिभावक
स्कूलों में बच्चों को दी जाने वाली मिड-डे मील में सारण की घटना के बाद से ही बच्चे व अभिभावक काफी सजग दिख रहे हैं. कई अभिभावक तो भोजन की जांच, रसोइया को बेहतर भोजन बनाने के लिए प्रेरित करना व प्राचार्य भी किसी प्रकार की अनहोनी न हो इसके लिए तत्पर दिखते हैं.
एक हजार रुपये में साफ-सफाई
रसोइया को प्रति माह एक हजार रुपये दिये जाते हैं. इसमें मध्याह्न् भोजन बनान भी, बरतन की साफ-सफाई व विद्यालय को साफ सुथरा रखना भी शामिल है. ऐसी स्थिति में गुणवत्तापूर्ण भोजन बनाना व साफ-सफाई का भरोसा रखना कहा तक सही होगा.