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Bihar News: मजदूर के बाद अब बिहार से अनाज का ‘पलायन’, इस विभाग की लापरवाही से पंजाब-हरियाणा हो रहे मालामाल

Bihar News: मुजफ्फरपुर के धान किसान इस समय गंभीर आर्थिक संकट से जूझ रहे हैं. सरकारी तंत्र की सुस्ती और सहकारिता विभाग की लापरवाही के कारण समर्थन मूल्य पर खरीद शुरू नहीं हो पा रही है, जिससे किसान अपनी उपज औने-पौने दाम पर बेचने को मजबूर हैं. पंजाब और हरियाणा के बिचौलिए प्रतिदिन धान यहां से खरीदकर अपने राज्यों में दोगुने भाव पर बेच रहे हैं.

Bihar News: मुजफ्फरपुर, सुनील कुमार सिंह. सरकारी तंत्र की घोर लापरवाही और सहकारिता विभाग के लचर रवैये के कारण जिले के धान किसान गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं. जिस धान को उगाने में उन्होंने खून-पसीना एक किया, उसके मुनाफे और सम्मान का लाभ पंजाब और हरियाणा के चालाक बिचौलिए उठा रहे हैं. सरकार द्वारा निर्धारित समर्थन मूल्य पर खरीदारी में देरी और हीला-हवाली के चलते जिले के किसान औने-पौने दाम पर अपनी उपज बेचने को मजबूर हैं. जिला सहकारिता पदाधिकारी प्रशांत कुमार ने कहा कि सीएमआर की राशि के मिलने से विलंब के कारण यह समस्या उत्पन्न हुई है. सरकार ने राशि उपलब्ध करा दी है. अब धान खरीदारी में तेजी लाने के लिये 270 समितियों का चयन किया गया है. इस वर्ष पिछले वर्ष नवंबर माह में मात्र 40 समितियों ने 1030 एमटी धान की ही खरीदारी की थी. इस वर्ष वर्तमान में 71 समिति एक्टिव है और अभी तक 1567 एमटी धान की खरीदारी हो चुकी है. इस वर्ष अधिक से अधिक धान की खरीदारी होगी.

प्रतिदिन 160 टन धान का ‘पलायन’

आलम यह है कि पंजाब और हरियाणा के बिचौलिए मुजफ्फरपुर से प्रतिदिन 160 टन से अधिक धान खरीदकर अपने राज्यों में ले जा रहे हैं. ये बिचौलिए यहां के किसानों से धान 1200 से 1400 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीद रहे हैं, जबकि अपने राज्यों की सरकार से इसे 3000 रुपये प्रति क्विंटल के समर्थन मूल्य पर बेचकर दुगुना मुनाफा कमा रहे हैं. यह स्थिति न केवल इस जिले के किसानों को आर्थिक रूप से कमजोर कर रही है, बल्कि बिचौलिए इस धान को अपने खेत की उपज साबित कर अपने राज्यों की सरकारों से सम्मान और प्रोत्साहन भी पा रहे हैं. स्थानीय किसानों की मेहनत से कमाया गया 50 प्रतिशत से अधिक का मुनाफा सीधे बिचौलियों की जेब में जा रहा है.

सरकार की लापरवाही

  • कंगाल हो रहे बिहार के किसान
  • प्रतिदिन 160 टन धान जा रहा बाहर
  • सिर्फ 175 किसानों से हुई खरीद
  • सीएमआर राशि में विलंब बना बड़ी बाधा
  • समितियां ठप, भुगतान भी अधूरा

2,500 में से सिर्फ 175 किसानों से हुई खरीद

इस जिले में करीब तीन लाख किसान लगभग 35,357 हेक्टेयर क्षेत्र में धान की खेती की. लेकिन सहकारिता विभाग के आंकड़ों पर गौर करें तो स्थिति की गंभीरता स्पष्ट होती है. जिले में धान बिक्री के लिए कुल 2500 किसानों को ही निबंधित किया गया. सरकार ने 1 नवंबर से 2369 रूपये प्रति क्विंटल की दर से धान खरीदारी शुरू करने का लक्ष्य रखा था. मगर, सरकारी तंत्र की सुस्ती के कारण गुरूवार तक 71 समितियों के माध्यम से मात्र 175 किसानों से 1567 एमटी ही धान की खरीदारी हो पाई है. इनमें भी केवल 96 किसानों को ही अभी तक उनके धान की राशि का भुगतान किया गया है. यह बेहद धीमी प्रगति धान की बिक्री के लिए इंतजार कर रहे शेष किसानों को बिचौलियों के चंगुल में धकेल रही है.

धान के बदले चावल की राशि नहीं मिलने से हुई समस्या

विडंबना है कि एक तरफ सरकार किसानों की आय दोगुनी करने की बात करती है, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय सरकारी तंत्र की निष्क्रियता के चलते किसान अपनी उपज का लागत मूल्य भी ठीक से नहीं निकाल पा रहे हैं. सरकार ने तो एक नवंबर से किसानों से समर्थन मूल्य पर धान की खरीदगी का फरमान जारी कर दिया. लेकिन धान के बदल चावल (धान के बदल चावल ) की राशि व्यापार मंडल और पैक्सों को उपलब्ध नहीं कराया. राशि के अभाव में धान खरीदगी के लिये चयनित समितियां सक्रिय नहीं हो सकी. इससे धान की खरीदारी पूरी तरह से ठप हो गयी.

आर्थिक संकट के आगे किसान विवश

रबी फसल की बुआई की तैयारी और अन्य दैनिक खर्चों के लिए तत्काल नकदी की आवश्यकता ने किसानों को इन बिचौलियों का शिकार बनने पर विवश कर दिया है. किसान सरकारी समर्थन मूल्य 2369 रुपये के बजाय 1200 से 1400 रुपये प्रति क्विंटल के घाटे के सौदे पर धान बेचने को मजबूर हैं. मुजफ्फरपुर से प्रतिदिन डेढ़ सौ से दो सौ टन धान का इस तरह दूसरे राज्यों में ‘पलायन’ न सिर्फ राजस्व की हानि है, बल्कि स्थानीय किसानों के शोषण का स्पष्ट प्रमाण भी है. स्थानीय जनप्रतिनिधियों और किसानों ने स्थानीय प्रशासन और सहकारिता विभाग से अविलंब धान खरीदारी में तेजी लाने और भुगतान सुनिश्चित करने की मांग की है, ताकि वे इस शोषण से बच सकें और अपनी मेहनत का उचित मूल्य पा सकें. अन्यथा, यह पलायन जारी रहा तो जिले के धान किसान पूरी तरह से बर्बादी की कगार पर पहुंच जाएंगे.

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Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने के लिए प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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