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बंगाली समाज. बंगाली समुदाय के शहर में 400 परिवार, 115 साल से जीवंत रखी है परंपरा

मुजफ्फरपुर : लीची की मिठास के लिये दुनियाभर में मशहूर मुजफ्फरपुर की एक और पहचान है. जी हां, यहां के लोगों का समरस स्वभाव. तभी तो शहर में रहने वाले बंगाली समुदाय के लोग 115 साल से बिना किसी रुकावट के अपनी परंपराओं को जीवंत रखे हुए हैं. कभी उन्हें इस बात का एहसास नहीं […]

मुजफ्फरपुर : लीची की मिठास के लिये दुनियाभर में मशहूर मुजफ्फरपुर की एक और पहचान है. जी हां, यहां के लोगों का समरस स्वभाव. तभी तो शहर में रहने वाले बंगाली समुदाय के लोग 115 साल से बिना किसी रुकावट के अपनी परंपराओं को जीवंत रखे हुए हैं. कभी उन्हें इस बात का एहसास नहीं हुआ कि वे यहां ‘माइनॉरिटी’ में है. यह बातें खुद बंगाली परिवार के बुजुर्ग स्वीकार करते हैं. दरअसल, कुछ साल पहले तक शहर में एक हजार से अधिक परिवार रहते थे. संख्या अधिक थी, तो बंगाली पर्व-त्योहारों पर चहल-पहल भी अधिक होती थी. समय की मार पड़ी तो ये परिवार सिमटने लगे. अब इनकी संख्या करीब 400 है. फिर भी यहां के लोगों के मिलनसार स्वभाव के चलते कभी बेगानापन महसूस नहीं हुआ.

हरिभक्ति प्रदायिनी सभा के अध्यक्ष डॉ देवेंद्र कुमार दास का कहना है कि दुर्गा पूजा जैसे खास आयोजन में सभी वर्ग के लोग पूरा सहयोग करते हैं. मुजफ्फरपुर बंगाली परिवारों के लिए संगम स्थल हो जाता है. बाहर रहने वाले लोग पूजा के नाम पर छुट्टी लेकर घर आते हैं. सभी परिवारों में खुशी का माहौल रहता है.
बिना किसी पद के आयोजन में अपना पूरा समय देने वाले गोपाल चंद्र रॉय कहते हैं, कभी मुजफ्फरपुर में बंगाली परिवारों की अच्छी-खासी संख्या थी. वक्त के थपेड़ों ने सबको तितर-बितर कर दिया. यहां रोजगार नहीं मिला तो बच्चे बाहर निकल गये. कुछ साल बाद पीछे से बुजुर्ग भी चले गये. अब तो गिनती के ही लोग बचे हैं. कुछ लोग बंगाल में शिफ्ट हो गये. इसके बाद भी यहां से लगाव अब तक कम नहीं हुआ है. उपाध्यक्ष अरबिंदो भट्टाचार्य का कहना बिहार जितनी समरसता शायद कहीं नहीं है. यहां तक कि बंगाल में रह रहे बंगाली परिवारों के बीच भी वैसे माहौल नहीं है. हर मौके पर लोग साथ खड़े मिलते हैं.
सचिव अमरनाथ चटर्जी का कहना है कि सभी लोगों के सहयोग के चलते ही हम आज तक अपनी परंपराओं को जीवंत रख सके हैं. काफी अच्छा लगता है ऐसे आयोजन का हिस्सा बनकर, जिसमें सभी लोगों का साथ होता है. कभी किसी की कमी नहीं खटकती. जयंत कुमार डे ने पूजा सहित अन्य आयोजनों को एकता बढ़ाने वाला बताया. कहा कि इस दौरान बाहर रहने वाले अपने लोग भी छुट्टी लेकर घर आते हैं. इसी बहाने सबसे मुलाकात हो जाती है, वरना आज किसी को इतनी भी फुर्सत नहीं कि अपनों की खोज-खबर लें.
अनिंदे चटर्जी भी इस बात से खुश दिखे कि बिहार के शहर में रहकर सबके सहयोग से दुर्गा पूजा का आयोजन बंगाली परंपरा के अनुसार हो रहा है. कहा कि युवाओं के लिये इससे बड़ा संदेश क्या हो सकता है कि हम आज भी अपनी परंपरा को जिंदा रखे हैं.
Prabhat Khabar Digital Desk
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