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शहर में दो-दो रैन बसेरे, फिर भी फुटपाथ पर पॉलीथिन व कपड़े टांग रहने को विवश हैं लाचार

मुंगेर : मुंगेर शहर में गरीब, लाचार एवं असहाय के साथ ही भिखमंगों को रात बिताने के लिए रैन बसेरा एक मात्र स्थल है. जहां वे आराम से रात बिता सकते हैं. यह शब्द सुनने के बाद काफी राहत होती है कि हमारे शहर के गरीब को कम से कम रात बिताने के लिए यह […]

मुंगेर : मुंगेर शहर में गरीब, लाचार एवं असहाय के साथ ही भिखमंगों को रात बिताने के लिए रैन बसेरा एक मात्र स्थल है. जहां वे आराम से रात बिता सकते हैं. यह शब्द सुनने के बाद काफी राहत होती है कि हमारे शहर के गरीब को कम से कम रात बिताने के लिए यह सुविधा तो है. शहर में में दो-दो रैन बसेरे हैं. ताकि ठंड में गरीबों की रात ठीक से गुजर सके. लेकिन रैन बसेरा की बदहाल व्यवस्था गरीबों को अपनी ओर आकर्षित नहीं कर पा रहा है. आज भी साहबों की नगरी में सड़क किनारे गरीब व लाचार पॉलीथिन व कपड़ा डाल कर ठंड से ठिठुर रहे हैं.

प्रभात खबर की टीम ने सोमवार को कंपकंपाती ठंड में ठिठुरते हुए रात बिता रहे गरीबों और उनके लिए बने रैन बसेरे का जायजा लिया. व्यवस्था की पोल खुल कर सामने आ गयी कि आखिर गरीब रैन बसेरा तक लोग क्यों नहीं पहुंच रहे.
इस मामले में नगर आयुक्त कहते हैं कि कर्मचारी तैनात है और सभी व्यवस्था वहां उपलब्ध है. जबकि नगर मिशन प्रबंधक कहते हैं कि दो दिनों में वहां कर्मचारी रजिस्टर के साथ रहेंगे और सबकुछ दिखने लगेगा.
बस स्टैंड के रैन बसेरा में लटका ताला, व्यवस्था नदारद: लाखों रुपये की लागत से बने रैन बसेरा में जब प्रभात खबर की टीम पहुंची तो वहां दोनों गेट में ताला जड़ा हुआ था. अंदर जरूर 10 फोल्डिंग खाट पर गद्दा बिछा हुआ था. लेकिन अंदर व बाहर कोई नहीं था. पेयजल के लिए प्याऊ बना हुआ है. लेकिन वह चलता नहीं है. जबकि शौचालय में ताला लटका है.
रैन बसेरा के सामने गंदगी है और शौचालय के पास गैरेज वालों का कब्जा है. जो यह नहीं चाहता है कि यहां कोई रहने आये. कुछ देर रुक कर देखा कि कोई कर्मचारी वहां पहुंच जाये. लेकिन कोई नहीं पहुंचा. ऐसी परिस्थिति में अगर कोई गरीब व लाचार यहां रात बिताने आयेगा तो ताला लगा देख कर वापस लौट जायेगा.
कई लोगों से वहां पूछा गया कि किसी के पास चाबी है तो किसी ने कुछ नहीं बताया. सभी ने एक ही बात बतायी कि दो दिन पहले यहां खटिया बिछाने कुछ लोग आये थे. उसके बाद कोई नहीं आया. हां रात में कुछ गरीब तबके के लोग आते हैं और ताला लगा देखकर बोरिया-बिस्तर लेकर वापस लौट जाते हैं.
अस्पताल रोड के रैन बसेरे पर है अवैध कब्जा: अस्पताल रोड गोयनका धर्मशाला के समीप बना रैन बसेरा का भी हाल बदहाल है. जहां हर कमरे में ताला लगा हुआ है. जबकि परिसर में दो-तीन गाय बंधी थी और गोबर व गोयठा रखा हुआ था. रैन बसेरा के बरामदे पर गाय को खिलाने के लिए चारा रखा हुआ था. स्थिति देखने से साफ पता चलता था कि यह रैन बसेरा कम और गुहाल ज्यादा है. हां यहां प्याऊ जरूर चालू था.
जिसका प्रयोग यहां के आसपास रहने वाले अवैध कब्जाधारी लोग, दुकानदार एवं मवेशी पालने वाला लोग करते हैं. यहां दूर-दूर तक गरीब व लाचार का कोई अता-पता नहीं था. यहां शौचालय नहीं बना हुआ है. वहां मौजूद एक महिला एवं एक युवक से पूछने पर बताया कि दो दिन पूर्व कमरे में फोल्डिंग खाट व कुछ गद्दा रखा गया है.
चाबी के बारे में पूछने पर बताया कि हमलोगों को काई चाबी नहीं दिया गया है. गरीब, लाचार यहां रहने को आते हैं या नहीं इस पर उन्होंने बताया कि यहां कोई नहीं आता है. कोई कर्मचारी रहेगा तभी तो ताला खुलेगा और कोई यहां रहने आयेगा. कुल मिलाकर यह भी बेकार है.
कहते हैं नगर मिशन प्रबंधक : नगर मिशन प्रबंधक दीपक कुमार ने कहा कि दो दिनों के बाद सबकुछ दिखने लगेगा. बस स्टैंड रैन बसेरा में रजिस्टर के साथ कर्मचारी तैनात किया जायेगा. जबकि मछली तालाब के समीप रैन बसेरा से अतिक्रमण हटा कर वहां भी कर्मचारी को तैनात किया जायेगा. दो दिनों के बाद शहर में माइकिंग भी करायी जायेगी. दोनों जगह 25-25 लोगों के रहने की व्यवस्था की गयी है.
पॉलीथिन व कपड़े की झोपड़ी में रात बिताते हैं गरीब
शहर में भीखमंगे, लाचार व असहाय गरीबों की तादाद अधिक है. कुछ बेघर व अनाथ भी है. जिन्हें इस कपकपाती ठंड में रात काटने के लिए कोई स्थान नहीं है. इसमें अधिकांश लोग एससी-एसटी के ही हैं. प्रभात खबर की टीम सीधे साहबों की नगरी किला परिसर पहुंची.
कमिश्नरी के पीछे भवन निर्माण कार्यालय एवं जल आयोग कार्यालय के सामने सड़क किनारे चार-पांच पॉलीथिन व कपड़ा से बना झोपड़ी दिखा. एक जगह एक बुजुर्ग सोया हुआ था. जबकि एक दिव्यांग भीखमंगा कंपकपा रहा था. जब उन लोगों से पूछा गया कि यहां क्यों रहते हो तो उन्होंने बताया कि हमलोग यहीं रहते हैं. दिन भर भीख मांगते है और रात में आकर यहीं सो जाते हैं.
जब उससे कहा गया कि रैन बसेरा में क्यों नहीं जाकर रहते हो तो उसका सीधा जबाव था कि मछली तालाब के पास कोई रहने नहीं देता है. मार कर भगा दिया जाता है. जबकि बस स्टैंड में शराबी तंग करते हैं टैक्स (हिस्सा) मांगते हैं. कभी अगर मन किया कि वहां जाकर रहे तो कोई ताला खोलने वाला नहीं रहता है. हमलोग यहीं ठीक हैं.

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