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होली विशेष : जानिए बिहार की आठवीं पास इस महिला प्रतिभा को, रंगों से बना ली अपनी जिंदगी रंगीन

IIरचना प्रियदर्शिनीII बचपन से ही रंगों में अस्तित्व की तलाश करनेवाली जमालपुर, मुंगेर निवासी साधना देवी ने काफी पहले तय कर लिया था कि इन रंगों से ही अपनी पहचान बनानी है. कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से उच्च शिक्षा प्राप्त करने या पेंटिंग का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर नहीं मिल पाया, पर […]

IIरचना प्रियदर्शिनीII
बचपन से ही रंगों में अस्तित्व की तलाश करनेवाली जमालपुर, मुंगेर निवासी साधना देवी ने काफी पहले तय कर लिया था कि इन रंगों से ही अपनी पहचान बनानी है.
कमजोर आर्थिक स्थिति की वजह से उच्च शिक्षा प्राप्त करने या पेंटिंग का विधिवत प्रशिक्षण प्राप्त करने का अवसर नहीं मिल पाया, पर कहते हैं न ‘प्रतिभा प्रशिक्षण की मोहताज नहीं होती.’ साधना बताती हैं-‘बचपन में रंग खरीदने के भी पैसे नहीं थे. फूल-पत्तियों, ईंट के चूरे, हल्दी आदि चीजों का उपयोग करके अपनी कलात्मक भूख मिटाती रहती थी. आठवीं पास करते ही मां-बाप ने 17 बरस की उम्र में शादी कर दी.’
शादी के बाद भी रंगों से रहा मोह
शादी के बाद साधना समस्तीपुर आ गयीं, जो कि मिथिलांचल क्षेत्र में आता है. वहां लगभग हर घर में मधुबनी पेंटिंग की जाती है और सदियों से यह कला एक से दूसरी पीढ़ी हस्तांतरित होती आ रही है.
साधना ने भी यहां आने के बाद यह कला सीखी. फिर धीरे-धीरे निरंतर अभ्यास से वह इसमें निपुण होती गयीं. इसी बीच उनके पति की नौकरी पटना के दानापुर कैंट स्थिति केंद्रीय विद्यालय में हो गयी. तब वर्ष 2010 में वह सपरिवार पटना आ गयीं.
पटना आने पर साधना एक संस्थान से जुड़ कर बच्चों को पेंटिंग सिखाने लगी. करीब आठ वर्षों तक सिखाया. वर्तमान में एक अनाथाश्रम के करीब 80 बच्चों को पेंटिंग सिखाती हैं. साधना बताती हैं कि- ‘वैसे तो मधुबनी पेंटिंग नेचुरल कलर्स उपयोग होता है, लेकिन उसमें चूंकि चमक कम होती है, इसलिए अब इसमें फैब्रिक कलर्स यूज होने लगे हैं. ये दिखने में भी अच्छे लगते हैं. धोने पर मिटते भी नहीं हैं. इसके अलावा, पारंपरिक राम-सीता, राधा-कृष्ण आदि भगवान की छवियों से इतर आज की युवा पीढी अब इसमें नित नये प्रयोग कर रही हैं.’
कई जगह लगा चुकी हैं अपनी पेंटिग की प्रदर्शनी
साधना बोर्ड पर पेंटिंग करने के अलावा कपड़ों और लकड़ी पर भी अपने कूची के रंग बिखेरती है. पेपर मेशी वर्क भी करती है. अब तक पटना में उद्यमिता विकास संस्थान द्वारा आयोजित मेले के अलावा, गया, राजगीर, भागलपुर, रोसड़ा सहित बिहार के कई जिलों में अपनी पेंटिंग की प्रदर्शनी लगा चुकी हैं.
हालांकि पैसों के अभाव में अब तक कभी सरस मेले में स्टॉल लगाने का अवसर नहीं मिल पाया है.मधुबनी कला में उनके योगदान को देखते हुए बिहार सरकार द्वारा उन्हें ‘सीता देवी युवा पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है. साधना कहती हैं कि-‘सालाना 10 से 20 हजार रुपयों का निवेश करके मैं अपने इस शौक से 70-80 हजार रुपयों तक कमा लेती हूं. ‘
Prabhat Khabar Digital Desk
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