बेनीपट्टी . प्रखंड कार्यालय से करीब छह किलोमीटर की दूरी पर अकौर गांव में अंकुरित भगवती मां भुवनेश्वरी स्वरूप में विराजमान हैं. जो तंत्र साधना की उपज मानी जाती है. बताया जा रहा है कि रामायण काल खंड में ही यहां अंकुरित होकर भगवती भुवनेश्वरी अवतरित हुई है और उक्त स्थल अब सिद्धपीठ में तब्दील हो चुका है. लोग बताते हैं कि भगवती के अंकुरण से पूर्व यहां घनघोर जंगल हुआ करता था और इसी घनघोर जंगल में ऋषि महर्षि तंत्र साधना कर सिद्धि प्राप्त किया करते थे. तंत्र साधना से सिद्ध होने के कारण ही यहां भगवती का अवतरण हो पाया. जनश्रुति के अनुसार यह क्षेत्र राजा जनक के वंशज शीर्ध्वज का राज्यांश था और अकौर महाराजा अकरूर की राजधानी हुआ करता था. मां के अवतरण के बाद रामायण काल से ही यहां हर साल पूजा अर्चना शुरु हो गयी थी और सिद्धस्थल के पास शुरुआत के दिनों में एक कुटिया थी, जिसे बाद में मिट्टी की दीवार से घेरकर मंदिर का आकार दिया गया था. वर्ष 2001 में मां भुवनेश्वरी मंदिर का निर्माण स्थानीय लोगों के सहयोग से किया गया था. समिति की देख रेख में कालांतर में भगवती के अंकुरण के बाद कई अन्य देवी देवताओं की भी प्रतिमा खेत, मुसमिट्टी और तालाब से निकला. सभी प्रतिमा को भगवती मंदिर परिसर में ही अलग-अलग मंदिर बनाकर स्थापित कराया गया है. बताते चलें कि इस मंदिर से जितनी दूरी पर कल्याणेश्वर महादेव स्थान है, ठीक उतनी ही दूरी पर डोकहर महादेव मंदिर, कपलेश्वर स्थान महादेव मंदिर, हरलाखी में मनोकामनानाथ महादेव और गिरिजास्थान मंदिर भी अवस्थित है. कुल मिलाकर चारों दिशाओं में महादेव मंदिर और बीच में भगवती भुवनेश्वरी मां विराजमान हैं. लोग बताते हैं कि शारदीय नवरात्र में अब भी तंत्र साधना के लिये भारत और नेपाल सहित देश के अन्य प्रदेशों से काफी संख्या में श्रद्धालुओं का आना-जाना लगा रहता है. स्थानीय लोग बताते हैं कि अंकुरित भगवती सबको सिद्धि प्रदान करतीं हैं और श्रद्धालु मनोवांक्षित वर प्राप्त कर अपना जीवन धन्य करते हैं. नियमित रुप से पूजा अर्चना के लिये तीन पुजारी पंडित अशोक झा, उग्रेश झा और नरेश झा नियुक्त हैं. पंडित अशोक झा बताते हैं कि वह आठवें पुश्त के रुप में इस मंदिर में बतौर पुजारी नियुक्त है. इससे पहले इनकी सात पीढियां भी इसी मंदिर में भगवती की पूजा अर्चना की जिम्मेदारी संभालते आये है. जहां दूर दराज से आने वाले श्रद्धालु विश्राम करते हैं. बिजली, पंखा और चापाकल की भी समुचित व्यवस्था मंदिर परिसर में उपलब्ध है. मंदिर परिसर में ही एक स्थायी मंच भी बना है. जहां सांस्कृतिक कार्यक्रम आदि का आयोजन होता है. वहीं समिति के सदस्यों ने बताया कि इस वर्ष भी 22 सितंबर से शुरु हुई शारदीय नवरात्र हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है.
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