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बलिराजगढ़ में मिला था मौर्यकाल का अवशेष

मधुबनीः बलिराजगढ़ मधुबनी अनुमंडल से 35 किमी की दूरी पर अवस्थित है. इस के उत्तर में बलिराजगढ़ दक्षिण में खोडर पश्चिम में रमणीपट्टी एवं पूरब में फुलवरिया है. बलिराजगढ़ का क्षेत्रफल पुरातत्व विभाग के अनुसार 175 एकड़ है. बलिराजगढ़ के इतिहास पर अगर नजर डाले तो राजा बली नामक राजा की चर्चा है. बलिराजगढ़ की […]

मधुबनीः बलिराजगढ़ मधुबनी अनुमंडल से 35 किमी की दूरी पर अवस्थित है. इस के उत्तर में बलिराजगढ़ दक्षिण में खोडर पश्चिम में रमणीपट्टी एवं पूरब में फुलवरिया है. बलिराजगढ़ का क्षेत्रफल पुरातत्व विभाग के अनुसार 175 एकड़ है. बलिराजगढ़ के इतिहास पर अगर नजर डाले तो राजा बली नामक राजा की चर्चा है.

बलिराजगढ़ की स्थल चौड़ी चहारदीवारी अब खंडहर बन चुकी है. तटबंध से दिखने वाली इसकी परिसीमा गढ़ के प्रत्येक कोने से मीनार सी लगती है. इतिहास कारों का कहना है कि जितना मीनार है वह तो अब बरबाद हो चुका है. लेकिन उसके आकार से ऐसा लगता है कि पहरेदारी के लिए बना होगा. यहां पर जो ईंट का प्रयोग किया गया है वह सामान्य ईंट से दो गुणा लंबा चौड़ा है. यहां पर लगे ईंट की चौड़ाई 1-1.50 फिट की है. जबकि मोटाई चार इंच है.

इतिहास कार का कहना है कि इस स्थान पर से जो भी वस्तु मिलती है उससे पता चलता है कि मौर्य काल में ही इस गढ़ का निर्माण हुआ था. क्योंकि श्याम परिमाजिर्त मृण पात्र मौर्य काल में ही था. गढ़ की रचना कण्व शुंगकाल से पूर्व हुई होगी. गढ़ के अंदर से मिलने वाला मिट्टी के वर्तन कृष्ण माजिर्त है. क्योंकि अभी भी उसमें चमक स्पष्ट दिखाई देता है. चमकीली मिट्टी के वर्तन को तोड़ने पर टूकड़ों की बाहरी सतह पर खूब चमकीली ललाई लिए हुए घुंसर रंग झलकता है. इस तरह की उपलब्ध वर्तमान पुरा सामग्री मौर्यकाल का संकेत देती है.

मौर्य काल में मृण्यकाल मीन पात्र कला काफी विकसित था. उत्तरी श्याम परिमाजिर्त वर्तन में अविकसित तकनीक का चलन मौर्य काल में ही हुआ था. इस समय में बनने वाला वर्तन में सतह पर लाल और भूरे रंग का चमक रहता था. तथा उसका उपयोग तश्तकरी कटोरे के रूप में होता था. इससे पूर्व हुए खुदाई में मिट्टी के वर्तन का अवशेष मिले. उस बरतन एवं मिट्टी के खिलौने पर भगA मूर्ति कलश को देखने से ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय यह सामग्री यही बनता था. बलिराजगढ़ अति प्राचीन है. इतिहास का इसे राजा विरोचन के पुत्र राजा बली का गढ़ समझते है.प्राचीन इतिहास संस्कृति के विद्वान सहदेव झा का माने तो ईसा पूर्व प्रथम शदी में विक्रमादित्य के छोटे भाई शाकादित्य का राज मिथिला में था. शाकादित्य का जेष्ठ पुत्र बोध हो गया. तथा मिथिला आकर यहां का राजा हो गया. ग्यारवीं शताब्दी में सेन वसियें राजा बल्लासेन की यहां राजधानी थी. भागवत पुराण में भी राजा बली का वर्णन है. जो प्रथम ईसा पूर्व राज करता था.

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