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समस्तीपुर के सुधीर व कौशल काठमांडू गये थे घूमने
मधुबनी/हरलाखी : बलिया के सुधीर व कौशल काठमांडू घूमने गये थे. शनिवार को आये भूकंप की त्रसदी के दौरान वह होटल में छुट्टी मना रहे थे. जब भूकंप आया तो दोनों होटल से निकल नहीं सके. 24 घंटे बाद बचाव दल ने उन्हें बचाया. बताते हैं सर, कौशल होटल के बाथरूम में नहा रहा था […]
मधुबनी/हरलाखी : बलिया के सुधीर व कौशल काठमांडू घूमने गये थे. शनिवार को आये भूकंप की त्रसदी के दौरान वह होटल में छुट्टी मना रहे थे. जब भूकंप आया तो दोनों होटल से निकल नहीं सके. 24 घंटे बाद बचाव दल ने उन्हें बचाया.
बताते हैं सर, कौशल होटल के बाथरूम में नहा रहा था और वह नाश्ता के साथ टीवी देख रहे थे. सब कुछ सामान्य था. अचानक होटल का पलंग हिलने लगा. हमें लगा कि हम इधर उधर होते हैं इसी से हिलता है. तभी होटल के नीचे चीखने-चिल्लाने की शोर सुनकर खिड़की से झांका तो देखा कि सभी बेतहाशा भाग रहे हैं. हमने कौशल को आवाज लगायी, लेकिन उसको कुछ पता नहीं चला.
तभी कमरे के बाहर भूकंप-भूकंप की आवाज सुनायी पड़ी. तब समझ में आया कि भूकंप आया है. घबराकर बाथरूम में नहा रहे कौशल को आवाज लगायी और गेट को जोर धक्का दिया. इसी क्रम में होटल के आगे वाला मकान जमींदोज हो गया. हमलोग होटल ब्लू स्टार की दूसरे मंजिल पर थे.
अचानक होटल दायीं ओर झुक गया. हम दोनों बदहवास होकर चिल्लाने लगे, लेकिन तब कौन सुतना, सब अपनी जान बचाने में जुटे थे. हमलोग कपड़ा वाला बैग लिए और कौशल भींगे शरीर ही गमछा पहन कर नीचे उतरने लगे. अभी पहली मंजिल पर आये ही थे कि होटल का मकान पूरी तरह से दायां झुक गया. हमलोग सरक कर खुले कमरे में जा गिरे. वहीं, होटल की सीढ़ी टूटकर ध्वस्त हो चुकी थी.
हमारे नीचे उतरने के सभी रास्ते बंद हो गये थे. दोनों को अब लगने लगा था कि अब उनकी मौत निश्चित है. धरती रह-रहकर कांप रही थी और मकान उतना ही झुकता जा रहा था. मौत का मंजर सामने था. आंखें जो देख रही थी उसे कभी कल्पना में भी नहीं सोचा था.
धड़ाधड़ बड़े-बड़े आलीशान मकान जमींदोज हो रहे थे. लोग जान बचाने को ऊंचे ऊंचे मकान से छलांग लगा रहे थे. खुद को मौत के हवाले मान चुके हम दोनों फटी आंख से हर मंजर देख रहे थे. कैसे शनिवार का दिन बीता और रात हुई, पता नही चला. रविवार को दिन के डेढ़ बजे बचाव टीम ने खिड़की तोड़कर सीढ़ी से नीचे उतारा.
दास्तां कहते-कहते दोनों की आंखे नम हो गयी. बताया सोने की चेन, घड़ी व अन्य को बेचकर 10-10 हजार देकर एक मैजिक से जनकपुर पहुंचे. अब जटही के रास्ते गांव जायेंगे. बताया माता-पिता पहले तो मृत मान चुके थे.
फिर संपर्क हुआ. कहते हैं अब जीवन में कभी काठमांडू घूमने नहीं जाऊंगा. भगवान की कृपा से इस बार जान बच गयी. वरना चांस नहीं था. हम तो खुद को मरा मान ही चुके थे, लेकिन भगवान ने बचा लिया. इतना कतहे ही वह बस में जाकर बैठ गये.
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