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जिस तालाब में नहाते थे विद्यापति उगना, उसमें एक बूंद पानी नहीं

लोगों ने ऐतिहासिक तालाब काकर लिया है अतिक्रमण 36 साल बाद भी नहीं हो सकामंच का पक्कीकरण मधुबनी : विद्यापति डीह को लेकर बाहरी लोगों में अटूट श्रद्धा है. इसके मिट्टी की पूजा करने को लोग आतुर रहते हैं. यह आज भी जारी है. बाहर से लोग आज भी इस डीह को देखने आते हैं. […]

लोगों ने ऐतिहासिक तालाब काकर लिया है अतिक्रमण

36 साल बाद भी नहीं हो सकामंच का पक्कीकरण
मधुबनी : विद्यापति डीह को लेकर बाहरी लोगों में अटूट श्रद्धा है. इसके मिट्टी की पूजा करने को लोग आतुर रहते हैं. यह आज भी जारी है. बाहर से लोग आज भी इस डीह को देखने आते हैं. लोगों में यह उम्मीद होती है कि जिस तालाब में कभी विद्यापति स्नान किया करते थे वह तालाब निश्चय ही पावन होगा. वे भी इस तालाब में श्रद्धा के द्य डुबकी लेंगे.
जिस जगह वे अपनी अमर रचना किया करते थे उस स्थल पर उस समय के कुछ ऐसा दिख जाये जिसे लोग पूजें. पर इस उम्मीद पर उस वक्त पानी फिर जाता है, जब लोग डीह पर आते हैं. न तो तालाब में पानी है न विद्यापति के पाठशाला पर शिक्षा से जुड़े कोई नामोनिशान. यह देख गांव के लोगों में भले ही कुछ खास असर नहीं पड़ता हो, पर दूर दराज से आने वाले लोगों को यह जरूर कचोटता है.
सूख गया तालाब : जिस तालाब में कभी निर्मल पानी हुआ करता था. खुद कवि कोकिल विद्यापति स्नान किया करते थे, किंवदंति के अनुसार देवाधिदेव महादेव शंकर भी उगना के रूप में स्नान किया करते थे, आज उस तालाब में एक बूंद पानी नहीं है. गांव के लोगों ने इस ऐतिहासिक तालाब का अतिक्रमण कुछ इस कदर किया है कि यह अब एक सूखा डबरा नजर आ रहा है.
पानी नहीं है, घास फूस जंगल का रूप ले लिया है. चारों ओर से घर बनाये जा चुके है. बेहतर घाट का निर्माण किया गया पर उस घाट तक जाने के लिये पक्की सड़क तक नहीं है. घाट पर लगाये गये टाईल्स उखड़ रहे हैं. यह हाल है इस ऐतिहासिक तालाब का. बात डीह की करें तो साल 1983 में इस परिसर के बीचोबीच विद्यापति सांस्कृतिक मंच का निर्माण किया गया. पर आज तक इस मंच का प्लास्टर नहीं हो सका.

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