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”संगच्छध्वं संवदध्वं” का एकता सूत्र सिखाता है मां महिषासुरमर्दिनी चरित्र

गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जो के शिष्य स्वामी रघुनंदना जी ने उपस्थित भक्तों को श्री गणेश उत्पत्ति व महिषासुरमर्दन की कथा को सुनाया.

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मननपुर में चल रहे श्री राम चरित्र मानस व गीता ज्ञान यज्ञ हुआ संपन्न

चानन. दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से मननपुर में चल रही श्री राम चरित्र मानस एवं गीता ज्ञान यज्ञ के अंतिम दिवस गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जो के शिष्य स्वामी रघुनंदना जी ने उपस्थित भक्तों को श्री गणेश उत्पत्ति व महिषासुरमर्दन की कथा को सुनाया. कथा व्यास जी ने देवी चरित्र की व्याख्या करते हुए बताया कि माता महिषासुरमर्दिनी का प्राकट्य तब हुआ जब समस्त देवगणों ने अपनी शक्तियों का ऐक्य किया. सभी के संगठित प्रयासों से ही वो शक्ति पुंज एकत्रित हुआ जिससे महिषासुर जैसे दुर्दांत दैत्य का अंत हुआ. आज भी यदि समाज से आतंक, भेदभाव, द्वेष, घृणा, व नफरत के महिषासुर का अंत करना है तो जरूरत उसी संगठन को स्थापित करने की है, जहां सबके मन एक हों, मत एक हों. जहां ”संगच्छध्वं संवदध्वं” की ध्वनि गुंजायमान हो और यह केवल ब्रह्मज्ञान द्वारा ही सम्भव है. यहीं संदेश तो महादेव भी अपने दिव्य चरित्र से जनमानस को प्रदान करते हैं. अगर हम शिव परिवार की झांकी देखें तो वहां विपरीत प्रकृति के जीव भी सामंजस्य का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करते नज़र आते हैं. मयूर का भोजन सांप है और सांप का भोजन मूषक. बैल सिंह का भोजन है, लेकिन शिव परिवार में सारे ही जीव एक साथ बिना किसी को हानि पहुंचाए समरस होकर रहते हैं क्योंकि वहां पर चैतन्य शिव प्रकट रूप में मौजूद हैं. यह ही है प्रेम व सौहार्द की अनुपम झांकी साकार करने का महासूत्र. आज अगर समाज में एकजुटता व प्रेम को प्रतिस्थापित करना है तो ब्रह्मज्ञान द्वारा उसी चैतन्य शिव को हर प्राणी के अंतर्घट में प्रकट करना होगा. जब व्यक्ति ब्रह्मज्ञान द्वारा अपने घट में शिव का साक्षात्कार करता है तो वह मन-बुद्धि के समस्त भेदों से ऊपर उठ समाज निर्माण में अपनी सशक्त भूमिका निभाता है. दिव्य गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी आज समाज में प्रत्येक व्यक्ति को यहीं ब्रह्मज्ञान प्रदान कर जन-जन में दैवीय गुणों यथा ऐक्य, शांति, प्रेम व सद्भावना का संचार कर रहे हैं. दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान इसी ब्रह्मज्ञान के लिए समाज के हर वर्ग का आह्वान करता है जिससे इस धरा को ही स्वर्ग बनाया जा सके, जहां हर दिन, हर पल, हर क्षण एक आनन्द उत्सव हो. इस अवसर पर कथा पंडाल में गरबा उत्सव भी खूब धूमधाम से मनाया गया. कार्यक्रम में कथा को सुना ही नहीं बल्कि ईश्वर का दर्शन लगभग 150 लोगों ने अपने घट के भीतर सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की कृपा से ब्रह्मज्ञान के द्वारा आत्म तत्व को जाना.

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