लखीसराय/ पिपरिया : मकई के फसल में दाना नहीं आने से किसानों की चिंता बढ़ गयी है. प्रकृति के प्रकोप को लेकर मकई के खेती करने वाले किसान भगवान को कोस रहे हैं. इसके अलावे किसानों के पास कोई दूसरा रास्ता भी नहीं है. मकई के बाली में दाना आने की बात सिर्फ लखीसराय ही नहीं बल्कि अन्य जिला मुजफ्फरपुर, पटना, बेगूसराय के देहाती क्षेत्रों में भी इस तरह की समस्या बनी हुई है. जो यह साबित करता है कि बीज में कोई खराबी नहीं है. बल्कि इन फसलों पर प्रकृति का असर है.
जिला में मकई की खेती सूर्यगढ़ा एवं पिपरिया के दियारा क्षेत्र में अधिक मात्रा में किया जाता है. जहां लगभग 700 एकड़ में इसकी खेती की जाती है. 300 एकड़ से अधिक सूर्यगढ़ा एवं 200 एकड़ के आसपास पिपरिया क्षेत्र में इसकी खेती की जाती है. वर्ष 2002 में भी मकई की खेती में दाना नहीं आया था. 15 वर्ष बाद एक बार फिर मकई की खेती करने वाले किसान बदहाली की दहलीज पर आ खड़े हैं. करारी पिपरिया के किसान रामचंद्र यादव ने बताया कि वे 3 बीघा में मकई की खेती किये है.
अभी तक बाली में दाना नहीं आया. इसके लिये चिंतित हैं. पिपरिया के हरेराम यादव ने बताया कि उनके द्वारा 15 बीघा में मकई लगाया गया है. काफी पैसा भी खर्च हुआ लेकिन पूंजी भी आने की संभावना नहीं है. वलीपुर के पारो सिंह ने बताया कि मकई खेती करने के लिये अब किसान छोड़ देंगे. कृषि िकसविभाग से भी कोई सहायता नहीं मिलता है. पूर्व मुखिया व मोहन भगत का कहना है कि किसान को मकई की खेती के लिये तीन बार जुताई, पांच से सात बार पानी के अलावे खाद एवं दवा खरीदना पड़ता है. लेकिन इस बार मकई की खेती मार खाने से किसान बेहाल हो जायेंगे.
मकई की खेती करने वाले किसान बदहाल
बोले डीएओ
जिला कृषि पदाधिकारी महेंद्र प्रताप सिंह ने कहा कि मकई फसल को लेकर प्रत्येक बीएओ को किसान का नाम व रकबा के साथ अन्य विवरणी लेकर सूची बनाने का निर्देश दिया जायेगा. जिसके बाद किसानों को क्षतिपूर्ति के लिये मुआवजे की राशि की मांग की जायेगी.
बोले उप निदेशक
पौधा संरक्षण के उप निदेशक अरुण कुमार ने कहा कि मकई के बाली में दाना नहीं आने को लेकर लखीसराय ही नहीं अन्य जिले से भी शिकायत मिल रही है. इसका मूल कारण है कि क्लाइमेट. यह प्राकृतिक आपदा है. इसका उचित मुआवजा िकसानो को मिलेगा.