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टीबी उन्मूलन में जनसहभागिता की जरूरत

टीबी उन्मूलन में जनसहभागिता की जरूरत

किशनगंज. टीबी यानी तपेदिक एक संक्रामक रोग है, लेकिन यह पूरी तरह से इलाज योग्य भी है. इसके बावजूद विश्व भर में हर साल लाखों लोगों की जान इससे चली जाती है. भारत सरकार ने वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया है, जो विश्व के अन्य देशों की तुलना में पाँच वर्ष पहले का लक्ष्य है. इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए केवल सरकार या स्वास्थ्य विभाग ही नहीं, बल्कि समाज के हर वर्ग की सामूहिक भागीदारी जरूरी है. किशनगंज जिला भी इस दिशा में पूर्ण प्रतिबद्धता के साथ कार्य कर रहा है, जिसमें टीबी रोगियों की समय पर पहचान, जागरूकता फैलाना और निःशुल्क इलाज मुहैया कराना मुख्य प्राथमिकता है.

हर साल 1 करोड़ लोग होते हैं टीबी से ग्रसित: डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट

किशनगंज के सिविल सर्जन डॉ. राज कुमार चौधरी ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, हर साल लगभग 1 करोड़ लोग टीबी की चपेट में आते हैं. जबकि इलाज संभव होने के बावजूद 1.5 लाख लोग अपनी जान गंवा बैठते हैं. खासकर एचआईवी पीड़ितों के लिए टीबी जानलेवा साबित होती है, जो इसे और गंभीर बनाता है.डॉ. चौधरी ने कहा कि सही समय पर टीबी की पहचान और दवा का पूरा कोर्स करने से यह रोग पूरी तरह ठीक हो सकता है. सरकार द्वारा सभी सरकारी अस्पतालों में टीबी की जांच और दवा बिल्कुल मुफ्त उपलब्ध कराई जा रही है.

तीन सप्ताह से अधिक खांसी या बुखार? तुरंत कराएं जांच

जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ. मंजर आलम ने बताया कि टीबी एक गंभीर बैक्टीरियल संक्रमण है जो मुख्यतः फेफड़ों को प्रभावित करता है, लेकिन यह शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकता है.डॉ. आलम ने कहा कि यदि किसी को तीन सप्ताह से अधिक खांसी, खून के साथ बलगम, लगातार बुखार, वजन का घटना, कमजोरी या रात में पसीना आने जैसे लक्षण हों, तो तुरंत सरकारी अस्पताल में जांच कराएं.जिले के हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर टीबी की निःशुल्क जांच सुविधा उपलब्ध है, जहां प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी जांच और उपचार के लिए तत्पर रहते हैं.

टीबी का अधूरा इलाज बना सकता है जानलेवा एमडीआर टीबी का कारण

डॉ. मंजर आलम ने टीबी की दवा अधूरी छोड़ने के खतरों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि इससे एमडीआर-टीबी (मल्टी ड्रग रेसिस्टेंट टीबी) होने का खतरा बढ़ जाता है.एमडीआर-टीबी सामान्य टीबी से अधिक खतरनाक होता है क्योंकि इसमें टीबी की सामान्य दवाएं असर करना बंद कर देती हैं. इलाज कठिन, लंबा और खर्चीला हो जाता है.जिले में सीबी-नेट और ट्रू-नेट जैसी आधुनिक मशीनें उपलब्ध हैं, जो कुछ ही मिनटों में टीबी की पुष्टि और एमडीआर टीबी की पहचान करने में सक्षम हैं. यह समय की बचत करते हुए इलाज की दिशा को तुरंत तय करने में मददगार साबित हो रही हैं.

स्वस्थ रहने के लिए बेहतर पोषण जरूरी: सरकार दे रही आर्थिक सहायता

टीबी के इलाज के दौरान मरीज के शरीर को बेहतर पोषण की आवश्यकता होती है. इसी उद्देश्य से सरकार द्वारा ‘निक्षय पोषण योजना’ चलाई जा रही है, जिसके अंतर्गत प्रत्येक टीबी रोगी को इलाज के दौरान हर महीने 1000 की आर्थिक सहायता दी जाती है.डॉ. मंजर आलम ने बताया कि यह राशि सीधे मरीज के बैंक खाते में भेजी जाती है, लेकिन इसके लिए मरीज का निक्षय पोर्टल पर पंजीकरण अनिवार्य है. इस योजना का लाभ उठाकर मरीज न सिर्फ जल्दी स्वस्थ हो सकते हैं, बल्कि इलाज में आने वाली पोषण संबंधी बाधाओं को भी दूर कर सकते हैं.

निजी चिकित्सकों और संस्थानों की भी ली जा रही है मदद

जिले में टीबी रोगियों की समय पर पहचान और निगरानी के लिए सिर्फ सरकारी नहीं, बल्कि निजी चिकित्सकों और अस्पतालों की भी सहायता ली जा रही है.स्वास्थ्य विभाग ने इन्हें निक्षय पोर्टल से जोड़ने का काम तेज कर दिया है ताकि कोई भी संदिग्ध केस न छूटे और उसे समय पर इलाज मिल सके.

टीबी से डरें नहीं, जागरूक हों, तभी होगा उन्मूलन संभव

टीबी एक इलाज योग्य रोग है, लेकिन यह तभी संभव है जब समाज में इससे जुड़ी भ्रांतियों को तोड़ा जाए और हर नागरिक अपनी जिम्मेदारी समझे.

जनभागीदारी और सामूहिक प्रयास से ही वर्ष 2025 तक भारत को टीबी मुक्त बनाने का सपना साकार हो सकता है.

हर व्यक्ति यदि एक संदिग्ध मरीज को जांच के लिए प्रेरित करे और एक मरीज को दवा का कोर्स पूरा कराने में मदद करे, तो टीबी को हराया जा सकता है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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