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गलगलिया-अररिया रेल परियोजना के लिए ली गयी भूमि के रेयतों को नहीं मिला मुआवजा

इलाके की तस्वीर बदलने की माद्दा रखने वाले गलगलिया ( ठाकुरगंज )- अररिया रेलखंड में अपनी भूमि देने वाले दर्जनों किसानों को मुआवजा नहीं मिलने से दुखी हैं

ठाकुरगंज. इलाके की तस्वीर बदलने की माद्दा रखने वाले गलगलिया ( ठाकुरगंज )- अररिया रेलखंड में अपनी भूमि देने वाले दर्जनों किसानों को मुआवजा नहीं मिलने से दुखी हैं. जून वर्ष 2017 में राज्य सरकार ने भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना जारी की थी, जिसके बाद भूमि अधिग्रहण युद्ध स्तर पर हुआ. लेकिन ठाकुरगंज नगर से सटे कुछ भू – भाग का प्रशासनिक लापरवाही और दरों की विसंगतियों के चलते कई भू – स्वामी अब तक उचित मुआवजा पाने से वंचित हैं. इस मामले में भूस्वामी देव लाल गोसाई, रतन पंडित, उपेंद्र पंडित, सुजय पंडित, सुरेश पंडित, दुर्गेश पंडित, देव लाल पंडित, विप्लव गणेश, मनोज शर्मा, महबूब आलम, कृष्ण कुमार पंडित, शिव कुमार, बद्री नारायण गोसाई, जुबेर आलम, अब्दुल फजले रब्बानी, मासूम रेजा, तारनी पंडित, अजीत कुमार गणेश, जीवन पंडित समेत दर्जनों भू – स्वामियों ने रविवार को ठाकुरगंज रेलवे स्टेशन पर पहुँच कर मुआवजा नहीं मिलने का सारा दोष जिला प्रशासन पर डालते हुए आवाज बुलंद की और उचित मुआवजा राशि देने हेतु मांग को फिर से दोहराया. मौके पर मौजूद इन भू – स्वामियों ने बताया कि अधिग्रहण प्रक्रिया में जिला प्रशासन ने भूमि की वास्तविक प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की है. भू- स्वामियों ने बताया कि जिला भू–अर्जन कार्यालय किशनगंज द्वारा जारी नोटिस पर उनके द्वारा आपत्ति दर्ज कराई गई थी. जमीन का मूल्यांकन एमवीआर (न्यूनतम मूल्यांकन पंजी) से 5 से 10 गुना कम करके किया गयाथा . इन भू–स्वामियों ने निबंधन महानिरीक्षक, बिहार, पटना के पत्रांक-10/रा.वर्गीकरण-94/2015–5021 (दिनांक 18 दिसंबर 2017) का हवाला देते हुए कहा कि जहां गांव बसा हो, वहां से 200 मीटर की परिधि तक की भूमि को आवासीय भूमि माना जाना चाहिए. लेकिन जिला प्रशासन ने इस विभागीय आदेश की अनदेखी कर भूमि को कृषि योग्य मानते हुए मुआवजा तय किया.

कार्यालयों के चक्कर काट रहे भू-स्वामी

प्रशासन की दोहरे मापदंड के कारण ठाकुरगंज प्रखंड के तीन दर्जन से अधिक भू-स्वामियों को अब तक मुआवजा नहीं मिल पाया है. विवादों और आपत्तियों को लेकर भू-स्वामी प्राधिकार पूर्णिया और अन्य उच्च स्तरीय कार्यालयों के चक्कर काट रहे हैं. लेकिन आठ वर्षों के लंबे इंतज़ार के बाद भी उन्हें न्याय नहीं मिल सका है. भू–स्वामियों का आरोप है कि प्रशासन जानबूझकर उदासीन रवैया अपनाए हुए है और उनकी शिकायतों को अनसुना कर रहा है. भू-स्वामियों का कहना है कि यदि सरकार विकास परियोजनाओं के लिए भूमि लेना चाहती है, तो उसे वास्तविक बाजार मूल्य के आधार पर पारदर्शी और न्यायपूर्ण मुआवजा देना चाहिए. प्रशासनिक लापरवाही से न केवल परियोजना की गति प्रभावित हुई है, बल्कि आम लोग भी असुरक्षा और अन्याय की भावना से गुजर रहे हैं.

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