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डीजल,डीएपी,यूरिया और पोटाश ने अन्नदाताओं की बढ़ायी परेशानी

खरीफ की फसलों की कटाई के बाद तेजी से किसानों द्वारा रबी की फसलों की तैयारी में जुट गए हैं.लेकिन इस वर्ष रबी की खेती किसानों की जेब पर भारी पड़ रही है.

पिछले सीजन के तुलना में सब कुछ महंगायूरिया ने बिगाड़ा किसानों का बजटकर्ज लेने के बाद भी समय पर नही हो रही बोआईफसल के नही मिल रहे वाजिब कीमतकिशनगंज.

मत मारो महंगाई से मुझे मैं पहले से एक दुखी इंसान हूं

तिल-तिल मर रहा हूं मैं क्योंकि पेशे से एक किसान हूं.

किसी शायर ने हमारे अन्नदाताओं यानी किसानों के वर्तमान हालात का इन पंक्तियों के माध्यम से बखूबी चित्रण किया है.क्योंकि खरीफ की फसलों की कटाई के बाद तेजी से किसानों द्वारा रबी की फसलों की तैयारी में जुट गए हैं.लेकिन इस वर्ष रबी की खेती किसानों की जेब पर भारी पड़ रही है.खेती के उपयोग में आवश्यक साधन की बढ़ती कीमतों के साथ किसानों की कृषि लागत काफी ज्यादा बढ़ गयी है. जिससे इन अन्नदाताओं के पेशानी पर बल साफ दिख जातें हैं.जिले भर में किसानों द्वारा मुख्य रूप से खरीफ एवं रबी की खेती की जाती है.और वर्तमान में मकई और गेहूं की बोआई एवं पटवन चल रही है.लेकिन रबी की खेती में लागत सबसे महत्वपूर्ण पहलु होता है.खरीफ की अपेक्षा रबी की खेती में अतिरिक्त लागत की मार किसानों को झेलनी पड़ती है.फसलों की बुआई के लिए डीएपी, पोटाश, सिंचाई और यूरिया महत्वपूर्ण होती है.लेकिन इनकी बढ़ती कीमतों ने किसानों की चिंताएं बढ़ा दी है. वद्धि के चलते किसान अब पारंपरिक खेती तक छोड़ने की बात कह रहे हैं.एक ओर जहां कृषि उपयोगी साधनों की कीमतों में वृद्धि लगातार जारी है.लिहाजा उत्पादन प्रभावित होगा तो किसान लाभ से भी वंचित रह सकते हैं.

बढ़ी डीएपी, पोटाश की कीमतें, किसानों पर बढ़ेगा भार

रबी की फसलों की बुआई के लिए डीएपी खाद महत्वपूर्ण होता है.कभी-कभी तो डीएपी खाद की कमी के कारण मारामारी बढ़ जाती है. लेकिन अब इस वर्ष भी डीएपी की कीमतों में वृद्धि देखी जा रही है.खेती में उपयोग होने वाली तमाम वस्तुएं जैसे ट्रैक्टर से जुताई,खाद,बीज,जिंक,मजदूर सभी महंगे हो गए हैं.

खाद ने बढ़ाई परेशानी

किसानों को एक एकड़ में मकई की बुआई के लिए न्यूनतम एक बोरी डीएपी उपयोग में लगाई जाती है.वहीं कुछ किसान प्रति एकड़ 2 बोरी डीएपी भी डालते हैं.वहीं इतनी की मात्रा में पोटाश की आवश्यकता होती है.ऐसी स्थिति में यहां किसानों की लागत खासी बढ़ जाएगी.जबकि अप्रत्याशित रूप से खाद के महंगे दाम से किसान चिंतिंत है.

जिसका सीधा असर जिले में मक्के की उत्पादन पर भी पड़ेगा.सिंचाई के लिए डीजल का बड़ी मात्रा में किसानों द्वारा उपयोग किया जाता है.जिले की पूरी खेती और सिंचाई तक डीजल इंजिनों से ही होती है.क्योंकि अधिकांश खेतों में बिजली नहीं है,जहां सिंचाई के लिए डीजल इंजन का ही उपयेाग किया जाता है.

दलहन और तिलहन की खेती करना विवशता

डीजल से सिंचाई आधरित खेती करने वाले किसान अपनी पारंपरिक खेती छोड़ने पर मजबूर हो रहें हैं. ऐसे में बढ़ी हुई कीमतों के बाद लागत में निश्चित तौर पर वृद्धि होती है. अतिरिक्त लागत से बचने के लिए किसानों द्वारा मकई,गेंहू की बजाय दलहन और तिलहन की खेती किसानों को ज्यादा उपयुक्त लगती है.कृषको ने बताया कि गेहूं की अपेक्षा दलहन और तिलहन फसल में कम सिंचाई की आवश्यकता पड़ती है.जिससे कुछ राहत मिलती है.डीजल से सिंचाई कर खेती करना अब किसानों की ईच्छाशक्ति से बाहर हो रहा है.ऐसी स्थिति में खेती कार्य करने के लिए किसानों के लिए डीजल की खेती करना अब किसानों के लिए असंभव बनता जा रहा है. बिजली विहीन खेतों में किसानों को डीजल की खेती करने के लिए भी मजबूर होना उनकी नियति बन चुकी है.

बोले किसान:-क्या करें कुछ समझ में नही आता है

महंगे खाद, बीज और डीजल से खेती की लागत बढ़ गई है. वर्तमान सीजन में मकई और गेहूं के बुआई में किसानों को प्रति एकड़ 3500 से 4000 रुपये अतिरिक्त ज्यादा खर्च करने पड़ रहे हैं. किसान मो ओहाब, कलाम ने बताया कि गेहूं की बुवाई से पहले खेत की तीन बार जुताई करनी पड़ती है. डीजल भी महंगा हैं. इसीलिए जुताई,बुवाई और सिंचाई का खर्च ज्यादा बढ़ गया है. उन्होंने बताया कि सिंचाई का खर्च अलग से इसके अलावा कीटनाशकों के दाम भी बढ़ गए हैं.डीएपी,यूरिया और पोटाश की कीमत तो आसमान छू रहें हैं.वहीं मकई के बीज भी काफी महंगे बिक रहें हैं.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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