अधिग्रहण न होने से अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा उच्च विद्यालय चुरली
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सरकार की नजरें हो इनायत, तो बदले चुरली विद्यालय सूरत
अधिग्रहण न होने से अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा उच्च विद्यालय चुरली भवन जजर्र, विद्यालय की भूमि पर दबंगों के कब्जे में ठाकुरगंज : जहां सूबे के मुखिया हर पंचायत में एक उच्च विद्यालय खोलने की बात कहते नहीं थकते. वहीं ठाकुरगंज प्रखंड में एक ऐसा उच्च विद्यालय भी है जहां पर अध्ययनरत […]
भवन जजर्र, विद्यालय की भूमि पर दबंगों के कब्जे में
ठाकुरगंज : जहां सूबे के मुखिया हर पंचायत में एक उच्च विद्यालय खोलने की बात कहते नहीं थकते. वहीं ठाकुरगंज प्रखंड में एक ऐसा उच्च विद्यालय भी है जहां पर अध्ययनरत 400 छात्र छात्राओं को शिक्षक अपने पेट पर कपड़ा बांध कर पढ़ा रहे हैं. बात उच्च विद्यालय चुरली की हो रही है. चुरली में जहां करोड़ों की लागत से आईटीआई का निर्माण पूर्ण हो चुका है और पॉलीटेक्निक कॉलेज का आलीशान भवन भी बन रहा है. पर वहां की आम जनता एक अधिग्रहित उच्च विद्यालय के लिए तरस रही है. हालांकि 45 वर्ष पूर्व 15 जनवरी 1971 को चुरली में हाई स्कूल की स्थापना तो हुई परन्तु इस विद्यालय का सारे मापदंड पूर्ण करने के बाबजूद अधिग्रहण नहीं हुआ है.
विद्यालय की भूमि को दबंगों ने किया अतिक्रमित : आज से चार दशक पूर्व इस उच्च विद्यालय से इलाके के बच्चे शिक्षा प्राप्त करें इसी सोच के साथ इलाके के कई संपन्न लोगों ने विद्यालय को भूमि दान में दी. हालांकि ये भूमि विद्यालय से थोड़ी दूर थी पर उस वक्त लोगों में यह धारणा रही की दान मिली भूमि पर खेती करके विद्यालय का सफल संचालन किया जाएगा. परन्तु विद्यालय अधिग्रहित नहीं होने का फायदा दबंगों ने उठाया और विद्यालय की साढ़े आठ एकड़ जमीन अतिक्रमण का शिकार हो गयी. सरकार द्वारा अनुदानित इस विद्यालय में क्लास 9 में 199 तो 10 में 201 छात्र छात्राए अध्ययरत है. और तो और 400 छात्रों में 260 छात्राएं पढ़ती है.
जर्जर भवन में पढ़ने को विवश 400 छात्र-छात्राएं : जर्जर भवन में पढ़ने को बाध्य छात्र छात्राओ को कभी भी भवन ढहने का खतरा बना रहता है. विद्यालय में संसाधन का इतना अभाव है कि 400 छात्रों के बीच 2 शौचालय है. वो भी 2 वर्ष पूर्व एसएसबी द्वारा बनवाया गया था. जहां सरकार हर पंचायत में एक उच्च विद्यालय खोलने का दावा करती है वही जिन पंचायतों में ये पहले से है तो जरुर केवल अधिग्रहित नहीं है उनकी उपेक्षा भी करती है.
इस मामले में वर्षो से विद्यालय के अधिग्रहण के लिए इसकी लड़ाई लड़ रहे विद्यालय के पूर्व प्रध्यानाध्यापक ननी गोपाल घोष के अनुसार सन 1980 में ठाकुरगंज प्रखंड में मात्र तीन हाई स्कूल ही थे जिनमे ठाकुरगंज हाई स्कुल, पौआखाली हाई स्कूल और चुरली हाई स्कुल. उस दौरान सरकार के एक आदेश के बाद 3300 उच्च विद्यालयों का अधिग्रहण हुआ. परन्तु इस विद्यालय अधिग्रहण नहीं हुआ. जिसका प्रतिकूल असर अब तक इलाके के बच्चे भुगत रहे है.
श्री घोष की माने तो 1984 में हाई कोर्ट ने 117 विद्यालयों को अधिग्रहित करने का आदेश बिहार सरकार को दिया था. उन 117 विद्यालयों में चुरली उच्च विद्यालय 104 नंबर पर था. परन्तु हाईकोर्ट के आदेश के बाद तत्कालीन सरकार ने 1985 में एक आदेश जारी किया जिसे पंचम शिक्षा संशोधन कहा गया. इस आदेश की धारा तीन के तहत सरकार ने घोषणा कर दी की सरकार बाध्य नहीं है की किसी गैर सरकारी स्कूल को सरकारी करण किया जाए. जिसके बाद इस विद्यालय के अधिग्रहण की उम्मीद खत्म हो गई. वही स्थानीय ग्रामीणों की माने तो इसी के बाद विद्यालय की जमीन अतिक्रमण का शिकार होने लगी.
ग्रामीणों की यदि माने तो सन 1980 में चमक टुडू ने हाथीडुबा में 7 एकड़ जमीन स्कूल को दान दी. वीरेंद्र सिंह ने बेसरबाटी में 52 डिसमिल जमीन दान दी. वही नेपाली रविदास ने 95 डिसमिल जमीन चुरली चौक पर दान दी .आज ये सब जमीन अतिक्रमण का शिकार होकर अवैध कब्जे में है. विद्यालय बिहार सरकार की जमीन पर संचालित हो रहा है. दान दाताओं ने विद्यालय के सफल संचालन के लिए जो भूमि दान दी वह आज अतिक्रमणकारियों के कब्जे में है और प्रशासन पूरे मामले में चुप्पी साधे बैठा है.
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