परबत्ता. शनिवार को चैत माह की पहली किरण से “डोरा “पूजा श्रद्धा भक्ति के साथ प्रारंभ हो चुकी है. यह पूजा बैसाख में सम्पन्न होगी. दो माह तक चलने वाली पूजा सप्ताह में एक दिन रविवार को होती हैं. पूजा करने वाली महिलाएं कहती हैं कि पौराणिक दंत कथा के अनुसार एक राजा की रानी ने डोरा पूजा किया था. राजा अहंकार बस उस डोरे के पवित्र धागे को जला दिया. उस कारण से राजा एवं रानी को काफी कष्ट भुगतना पड़ा. पुनः एक दिन नदी के किनारे महिलाएं की एक टोली को डोरा पूजा करते हुए राजा ने देखा. जहां राजा ने अपने अहंकार को त्याग कर पूजा में शामिल होकर प्रसाद ग्रहण किया. इस डोरा पूजा में सूर्य भगवान एवं सप्ता माता की पूजा होती हैं. प्रत्येक रविवार को पूजा के समय एक महिला सप्ता माता की कथा सुनाती हैं. तथा सूर्य भगवान को दूध एवं गंगाजल से अर्घ्य दिया जाता है. संसारपुर गांव निवासी पंडित अजय कांत ठाकुर, खजरैठा निवासी पंडित मनोज कुंवर, जानकीचक निवासी पंडित कृष्ण कांत झा ने बताया कि डोरा पूजा महिलाएं अपने पति एवं पुत्र की दीर्घायु के लिए करती है. इस पूजा को लेकर प्रत्येक गांव में भक्ति का माहौल देखा जा रहा है. डोरा पूजा के समय महिलाएं अपने अपने दाएं हाथ के बांह में डोरा यानी धागे बांध कर कथा श्रवण करती है. डोरा पूजा में इस पवित्र धागे का बड़ा महत्व है.
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