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रुक-रुक कर हो रही गोलीबारी

दहशत. जमीन पर कब्जे को लेकर पांच दिनों से सलारपुर दियारा में तनाव बीते एक सप्ताह से रुक रुक कर हो रही है गोलीबारी . यहां विभिन्न गुटों के बीच समय समय पर जमीन हथियाने को लेकर संघर्ष होता रहता है़ भोले भाले ग्रामीण हर वक्त डरे सहमे रहते हैं व अपने खेतों पर जाने […]

दहशत. जमीन पर कब्जे को लेकर पांच दिनों से सलारपुर दियारा में तनाव

बीते एक सप्ताह से रुक रुक कर हो रही है गोलीबारी . यहां विभिन्न गुटों के बीच समय समय पर जमीन हथियाने को लेकर संघर्ष होता रहता है़ भोले भाले ग्रामीण हर वक्त डरे सहमे रहते हैं व अपने खेतों पर जाने से भी डरते हैं.
खगड़िया : जिले के परबत्ता प्रखंड के दो पंचायत भरसो तथा कुल्हरिया तक फैले सलारपुर गांव के किसान व मजदूर बीते एक सप्ताह से डरे सहमें हैं. भयभीत किसान पटवन का समय पूरा हो जाने के बावजूद वे अपने फसलों का पटवन नहीं कर पा रहे हैं. जबकि जिन खेतों में खाद दिया जाना है उन खेतों में मजदूरों ने जाने से इनकार कर दिया है. इसका कारण बीते एक सप्ताह से दियारा में दो पक्षों के बीच चल रही गोलियां हैं. जिसने किसानों और मजदूरों को खेतों से दूर रहने पर मजबूर कर दिया है. हालांकि दोनों पक्षों के बीच चलने वाली इन गोलियों से अब तक कोई हताहत नहीं हुआ है. लेकिन यह फायरिंग कब तक हवाई रह पायेगा यह कहना मुश्किल है.
कहते हैं किसान
परबत्ता प्रखंड अंतर्गत सलारपुर के किसान महेन्द्र यादव का कहना है कि उक्त मौजे की जमीन वर्ष 1951 से 1971 तक गंगा में डूबा हुआ था. इसलिए 1960 में जमीन के सर्वे को वैधानिक माना नहीं जा सकता है. पहले का नक्शा भी किसान की दलील को पुख्ता करता है. 1964 में प्रकाशित सर्वे को लेकर बिशौनी निवासी तथा मधेपुरा जिला के आलमनगर विधानसभा क्षेत्र के पहले विधायक यदुनंदन झा ने विधानसभा में मामला उठाया. सर्वे की रिपोर्ट को निरस्त करने की मांग को गंभीरता से लेते हुए बिहार सरकार के राजस्व विभाग ने 24 नवम्बर 1965 को अधिसूचना( अधिसूचना संख्या एम/एस 102/65/127) जारी कर डीएम के द्वारा कराए गए सर्वे को संक्षिप्त सामंजन क्रिया बताते हुए न केवल शीघ्र व्यापक सर्वे कराने की आवश्यकता पर बल दिया, बल्कि शांति व्यवस्था बनाए रखने के बावत आवश्यक दिशा – निर्देश भी दिया था. इस अधिसूचना की प्रति( मेमो नम्बर 1024सी दिनांक 2/3 दिसम्बर 1965) बिहपुर के अंचल अधिकारी तथा नवगछिया के एसपी को भी दिया गया था. 20 जनवरी 1966 को भागलपुर के अपर समाहर्ता ने रिविजन वाद 14/1964-65, 15/1964-65 तथा 16/1964-65 की सुनवाई करते हुए कहा कि पूर्व में ही राज्य सरकार के द्वारा इस मौजे की जमीन का सर्वे निरस्त किया जा चुका है. इसलिए सुनवाई बंद की जाती है. वहीं 3 अगस्त 1979 को बिहार सरकार के राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग में सरकार के उपसचिव सच्चिदानंद प्रसाद ने सभी आयुक्तों तथा समाहर्ता के नाम प्रेषित पत्र (संख्या-17 सर्वे 02-149/79-3956 रा0) में स्पष्ट कहा कि गंगा बरार होने के बाद यदि जमीन की पहचान समाप्त नहीं होती है तो बिहार काश्तकार अधिनियम की धारा 52 ए के अनुसार ऐसी जमीन पुराने रैयतों की ही मानी जाएगी. उपरोक्त तथ्यों के आलोक में 150 किसान जमीन की लगान रसीद कटाने लगे. लेकिन वर्ष 2008 में बिहपुर के अंचल अधिकारी ने यह कहकर 150 किसानों के नाम रसीद काटने से मना कर दिया कि 1960 में हुए सर्वे के आधार पर आलमनगर के पूर्व विधायक यदुनंदन झा के पुत्र उमेश चन्द्र झा सहित 11 भूधारियों के नाम दाखिल-खारिज कर लगान रसीद निर्गत कर दिया गया है. इस तरह वर्षों से लगान रसीद कटाकर खेती करने वाले 150 किसान और 1960 के सर्वे के आधार दाखिल-खारिज का रसीद कटाकर 11 बड़े भूधारी आमने-सामने आ गये. इस 750 एकड़ भूमि पर दखल को लेकर कई बार छिटपुट रूप से हिंसा हो चुकी है.
पुन: सर्वे का मिला था आदेश
इस बीच भागलपुर के अपर समाहर्ता ने अपने पत्रांक (2440/रा0 दिनांक 09.11.09) द्वारा 150 किसानों के पक्ष में आदेश देते हुए यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया. भागलपुर के समाहर्ता द्वारा नए सर्वे की मांग पर भू अभिलेख विभाग के निदेशक ने अपने पत्रांक (17 भू0 सर्वे0(भागलपुर) 7/2004 467 दिनांक 21.05.10) द्वारा कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा आधुनिक तकनीक से सर्वे कराने के कार्य की प्रक्रिया जारी है. इतना ही नहीं इसके लिए सर्वे करने के मामले में दक्ष एजेंसी का चयन किया जा रहा है. तब तक रिविजनल सर्वे के अभिलेख से काम चलाया जाय. जबकि किसानों का कहना है कि इस इलाके में रिविजनल सर्वे हुआ ही नहीं.
झगड़े की पृष्ठभूमि तैयार
बहरहाल, इलाके की 750 एकड़ जमीन के अलग-अलग दावेदार एक दूसरे से गुत्थम गुत्थी का ताना बाना बुनने में लगे हैं. एक पक्ष के किसान 1954 से 2008 तक की लगान रसीद लेकर दूसरे पक्ष से भिड़ने को तैयार हैं तो दूसरे पक्ष के नाम पर 1975 से लगान रसीद काटकर पदाधिकारियों ने झगङे की पृष्ठभूमि तैयार कर दी है. एक पक्ष जमीन पर अपना अधिकार जताता है. जबकि दूसरे पक्ष के लोगों का कहना है कि यदि उनलोगों को जमीन से बेदखल करने की कोशिश की गयी तो विवाद बढ़ना तय है.
क्या है मामला
नदियों की कोख से निकली जमीन पर मालिकाना हक जताने के एवज में वैसे तो कोसी और फरकिया की धरती पर वर्षों से खून की होली खेली जाती रही है. लेकिन इस झंझट की बुनियाद भागलपुर के तत्कालीन समाहर्ता के द्वारा ही तैयार की गयी है. दरअसल गंगा के गर्भ में समाए सात सौ पचास एकड़ जमीन का भागलपुर के तत्कालीन समाहर्ता द्वारा न केवल गलत तरीके से सर्वे कर दिया गया. बल्कि दो अलग-अलग पक्ष के किसानों के नाम लगान रसीद भी काट दिया गया. खगड़िया जिले के दक्षिणी छोड़ पर तीन ओर से गंगा नदी से घिरे परबत्ता प्रखंड अंतर्गत कुल्हड़िया, भरसों तथा लगार पंचायत के सैकड़ों किसान इस झंझट की आग में तप रहे हैं. चिंता का मुख्य कारण तीनों पंचायत की सीमा से सटे भागलपुर के थाना बिहपुर स्थित मौजा शंकरपुर गोसायंदास की 750 एकड़ जमीन पर कब्जे को लेकर उत्पन्न हुआ अंदरूनी तनाव बताया जा रहा है. जानकार लोगों ने बताया कि 1906 ई. में जब पूरे बिहार में जमीन का सर्वे किया जा रहा था तब यहां की भौगोलिक बनावट और गंगा नदी में इस मौजे की जमीन के डूबे रहने के कारण यहां का सर्वे नहीं हो पाया. 1909 ई. की कबूलियत के आधार पर किसान इस जमीन पर जोत आवाद करने लगे. जमीन्दारी उन्मूलन के बाद भागलपुर के तत्कालीन समाहर्ता ने 1959 – 1960 में अपने स्तर से जमीन का सर्वे कराया. 1964 ई. में प्रकाशित इस सर्वे में कई प्रकार की गड़बड़िया इसलिए सामने आई क्योंकि जमीनी स्तर पर सर्वे कराने के बजाय समाहर्ता के टेबुल पर ही जमीन का सर्वे करा लिया गया.
कहते हैं थानाध्यक्ष
इस संबंध में बिहपुर के थानाध्यक्ष राजेश शरण ने बताया कि मौजा शंकरपुर गोसांयदास की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि वह भागलपुर जिले के बिहपुर थानाक्षेत्र में रहने के बावजूद खगङिया जिले के परबत्ता प्रखंड के नजदीक है. इस फायरिंग के बारे में अब तक कोई सूचना नहीं मिली है. ऐसी सभी घटनाओं के सभी पक्षकार परबत्ता थानाक्षेत्र के रहने वाले हैं. परबत्ता पुलिस की सक्रियता से इस पर नियंत्रण किया जा सकता है.
कहते हैं परबत्ता थानाध्यक्ष
परबत्ता थानाध्यक्ष प्रमोद कुमार ने बताया कि यह मामला भागलपुर जिला के बिहपुर थाना क्षेत्र का है इसलिए उन्हें कोई जानकारी नहीं है.
बिहपुर थाने में भी दर्ज हो चुके हैं कई मामले
बिहपुर थाना कांड संख्या 150/08 तथा 450/08 सहित कई अन्य मामले भी दर्ज हो चुके हैं. 150 किसानों में अरूण कुमार सिंह के द्वारा मुख्यमंत्री को दिये गये आवेदन के आधार पर मामले की जांचकर भागलपुर के बंदोबस्त पदाधिकारी ने अपने पत्रांक (96-1 दिनांक 07.04.2008) के द्वारा राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग को प्रेषित प्रतिवेदन में कहा कि भूमि सुधार विभाग द्वारा पुनरीक्षण सर्वे नहीं किये जाने के कारण दियारा क्षेत्र में विधि व्यवस्था खराब होने की समस्या बन रही है. बार-बार स्थिति बिगड़ती देख अरूण कुमार सिंह, सूर्यनारायण यादव, अशोक यादव, राधा यादव तथा हनुमान पासवान ने पटना उच्च न्यायालय में सीडब्लूजेसी (5620/2008) दायर कर भागलपुर के तत्कालीन समाहर्ता द्वारा 1960 में किये गये मिनी सर्वे को चुनौती दी. न्यायाधीश के द्वारा 1960 में किये गये मिनी सर्वे को अवैध करार देते हुए याचिकाकर्ता को पूर्ण सर्वे के लिए उचित स्तर पर आवेदन देने को कहा गया. भागलपुर के समाहर्ता ने राजस्व एवं भूमि सुधार विभाग के सचिव को प्रेषित अपने पत्र (पत्रांक184 रा0 दिनांक 26.10.2009) में कहा कि वर्तमान में उक्त मौजे की जमीन पर जमींदारी उन्मूलन के बाद तैयार की गई जमाबंदी से रसीद काटना बंद कर दिया गया है तथा 1964 में प्रकाशित सर्वे की रिपोर्ट के आधार पर तैयार खतियान के आधार पर मालगुजारी रसीद काटा जा रहा है. नतीजतन भूमि विवाद होने की आशंका बन आयी है. अतः भागलपुर के गंगा दियारा क्षेत्र का वृहत सर्वेक्षण के बावत कार्रवाई करने का आदेश दिया जाय.

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