कोढ़ा कोढ़ा प्रखंड के खेतों में इन दिनों सरसों की फसल लहलहा रही है. पीले फूलों से सजे खेत न केवल इलाके की खूबसूरती बढ़ा रहे हैं. बल्कि किसानों के चेहरों पर भी मुस्कान बिखेर रहे हैं. कभी इस क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सरसों की खेती होती थी. बाजार में बाहरी तेलों की बढ़ती आमद के कारण समय के साथ इसकी खेती में कमी आयी है. कोढ़ा के किसानों ने अपनी पारंपरिक खेती को पूरी तरह समाप्त नहीं होने दिया. आज भी कई किसान सरसों की खेती कर अपनी परंपरा और आत्मनिर्भरता को संजोए हुए हैं. किसानों का कहना है कि सरसों केवल एक फसल नहीं, बल्कि उनके जीवन और संस्कृति का हिस्सा है. सरसों की खेती का दोहरा महत्व है. एक ओर इससे शुद्ध और स्वास्थ्यवर्धक तेल प्राप्त होता है, तो दूसरी ओर सरसों को मसाले के रूप में भी उपयोग किया जाता है. सीमित क्षेत्र में ही सही, लेकिन कोढ़ा के खेतों में आज भी सरसों की सुनहरी फसल देखने को मिलती है. कुल मिलाकर, बदलते दौर और बाजार के दबाव के बीच कोढ़ा के किसान सरसों की खेती कर यह संदेश दे रहे हैं कि परंपरा और मेहनत से ही गांवों की असली पहचान बनी रहती है.
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