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बांस की चटाई का रोजगार पड़ा मंदा

फोटो नं. 1 कैप्सन-बांस का समान तैयार करता कारीगर प्रतिनिधि, कटिहारबांस की चटाई का व्यवसाय धीरे-धीरे मंदा पड़ता जा रहा है. जबकि यह व्यवसाय पहले खूब फल-फूल रहा था. कटिहार क्षेत्र में बांस की चटाई का उपयोग घर बनाने, घेरा, गेट आदि के कार्य में बखूबी उपयोग किया जाता है. इसके लिए शहर तथा शहर […]

फोटो नं. 1 कैप्सन-बांस का समान तैयार करता कारीगर प्रतिनिधि, कटिहारबांस की चटाई का व्यवसाय धीरे-धीरे मंदा पड़ता जा रहा है. जबकि यह व्यवसाय पहले खूब फल-फूल रहा था. कटिहार क्षेत्र में बांस की चटाई का उपयोग घर बनाने, घेरा, गेट आदि के कार्य में बखूबी उपयोग किया जाता है. इसके लिए शहर तथा शहर के आसपास के इलाके में बड़े एवं छोटे अनेकों दुकानें चला करती थी. इसके लिए अन्य प्रांतों खास कर असम और बंगाल से चटाई बनाने का सामान मंगाया जाता और चटाई की बुनाई स्थानीय दुकानदार द्वारा बुनाई करा कर बेचा जाता है. लेकिन दिनों-दिन चटाई का विकल्प चदरा या टीन लेता जा रहा है. अर्थात लोग अब बांस की चटाई की जगह चदरा या टीना का उपयोग धड़ल्ले से करने लगे हैं. जिससे बांस की चटाई का बाजार मंदा पड़ता जा रहा है. इस मामले में जायसवाल इंटरप्राइजेज मिरचाईबाड़ी शंकर प्रसाद जायसवाल बताते हैं कि अब चटाई के व्यवसाय में पहले जैसा खरीददार नहीं रहे. क्योंकि चटाई से सस्ता अब चदरा या टीना पड़ने लगा है. लोगों का झुकाव उस ओर होने लगा है. उन्होंने चादर व टीना के उपयोग की खामियां भी बतायी कि गर्मी के मौसम में यह परेशानी का कारण भी बन सकता है. उन्होंने कहा कि बांस की चटाई से घर बनाने वालों के लिए वाटरप्रूफ चटाई का भी प्रचलन भी है. जो कई बरसात देख लेता है. बावजूद इसके आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के द्वारा बांस की चटाई की बजाय लोहे का चदरा व टीना का उपयोग करते हैं. अर्थात बाजार में हो रहे परिवर्तन के कारण चटाई उद्योग की स्थिति खराब होती जा रही है. ऐसे में सरकार को चटाई उद्योग को बढ़ावा देने के लिए सोचना चाहिए और उपाय ढूंढ़ना चाहिए.

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