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जिले में खेल संसाधनों का घोर अभाव, इधर स्कूली खेल सिर पर

KAIMUR NEWS.जिले में 23 से 28 सितंबर तक जिलास्तरीय स्कूली खेलकूद प्रतियोगिता शुरू होने की घोषणा हो चुकी है. विभिन्न स्कूलों के खिलाड़ी प्रतियोगिता की तैयारी में जुट हैं या जुटने वाले हैं. लेकिन, उनके लिए खेल मैदान, संसाधन और योग्य प्रशिक्षक का घोर अभाव है.

23 सितंबर से शुरू होनी है जिलास्तरीय विद्यालय खेल-कूद प्रतियोगिता

प्रतिनिधि, भभुआ सदर.

जिले में 23 से 28 सितंबर तक जिलास्तरीय स्कूली खेलकूद प्रतियोगिता शुरू होने की घोषणा हो चुकी है. विभिन्न स्कूलों के खिलाड़ी प्रतियोगिता की तैयारी में जुट हैं या जुटने वाले हैं. लेकिन, उनके लिए खेल मैदान, संसाधन और योग्य प्रशिक्षक का घोर अभाव है. कई ऐसे विद्यालय हैं, जहां आज भी खेल का मैदान नहीं है. कहीं अगर मैदान है, तो संसाधन उपलब्ध नहीं है. इस स्थिति में बालक – बालिका सहित महिला खिलाड़ियों को काफी दिक्कतें आती है, उन्हें न तो अभ्यास का पूरा मौका मिलता है और न ही उनमें टीम भावना ही जग पाती है. हालांकि, सरकार व विभागीय स्तर पर प्रतिभाओं को निखारने और उन्हें उचित संसाधन मुहैया कराने को लेकर इस वर्ष भी कई घोषणाएं हुई, लेकिन इस पर अमल का अभाव रहा है. जिले में खेल मैदान और संसाधनों का समुचित विकास अभी भी नहीं हो पाया है. हालांकि, जिले के खिलाड़ियों ने राज्य स्तर की प्रतियोगिताओं में कई मेडल जीते हैं. इसके अलावा कई अन्य प्रतियोगिताओं में भी यहां के खिलाड़ियों ने अपने बलबूते लोहा मनवाया है.

खेल मैदान की कमी से प्रतिभाएं तोड़ रही दम

शहरी क्षेत्रों में लोगोें की उपेक्षा के चलते खिलाड़ी विभिन्न खेलों से विमुख तो हो ही रहे हैं. लेकिन, ग्रामीण क्षेत्रों में अब भी कोई न कोई खेलकूद प्रतियोगिता होती रही है. पहले फुटबाल, कबड्डी, वॉलीबॉल, क्रिकेट सहित कई अन्य खेल प्रतियोगिताएं आयोजित होती थी, लेकिन घटते खेल मैदान व रोजी-रोटी के लिए जद्दोजहद ने ग्रामीण क्षेत्रों में भी परंपरागत खेलों को लीलना शुरू कर दिया है. ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालयों से भी धीरे-धीरे खेलकूद की संस्कृति विलुप्त होती जा रही हैं. शिक्षा व खेलों में बिहार सरकार द्वारा मध्य विद्यालय से लेकर उच्च विद्यालयों तक क्रीड़ा शिक्षकों की नियुक्ति करते हुए खेल संसाधन की व्यवस्था की गयी है. साथ ही तमाम विद्यालयों में खेलकूद की सामग्रियों की भी सुविधा है, लेकिन विद्यालयों में जिम से लेकर खेलकूद का सामान कमरों में बंद पड़ा है या खराब हो चुका है. विद्यालयों में खेल का मैदान या तो सिकुड़ गया है या फिर अन्य किसी तरह के शिकार हो गये है. इन स्कूलों में क्रीड़ा शिक्षक नियुक्त हैं, पर, वहां भी नियमित रूप से खेलकूद की कक्षाएं आयोजित नहीं हो रही है.

खेल मैदान से लेकर संसाधनों तक में सुधार की जरूरत

खेल एवं खिलाड़ियों के विकास में संसाधन की कमी सबसे बड़ी बाधा है. जिले के अधिकतर विद्यालयों में खेल मैदान का अभाव है, तो कई विद्यालय में खेल सामग्री का, कई विद्यालयों में तो खेल प्रशिक्षक ही नहीं है. ऐसे में बच्चों को खेल के प्रति प्रेरित करने और उन्हें जिला व राज्य स्तर के प्रतियोगिता के लिए दक्ष बनाने की कवायद बस खानापूर्ति भर साबित हो रही है. जिन विद्यालयों में खेल प्रशिक्षक हैं, वहां भी विरले ही बच्चों को प्रशिक्षण दिया जा रहा है. जिले के अधिकतर पूर्व खिलाड़ियों का कहना है कि महज प्रतियोगिता आयोजन के समय ही बच्चों को कुछ दिनों तक स्कूलों में अभ्यास कराया जाता है. खेल प्रतियोगिता को लेकर प्रखंड से लेकर जिला स्तर पर बच्चों का चयन किया जाता है और ये राज्य स्तर पर प्रतियोगिता में हिस्सा भी लेते हैं. लेकिन, बिना प्रशिक्षण और संसाधन के यह भी कारगर साबित नहीं हो पाता. मजबूरन खिलाड़ी स्वयं या फिर वरिष्ठ खिलाड़ियों से खेल की कला पाकर जिले का नाम रौशन कर रहे हैं.

क्या कहते हैं डीएसओ

इस संबंध में जिला खेल पदाधिकारी ओमप्रकाश ने बताया कि जिलाधिकारी स्तर से जिले के खिलाड़ियों को संसाधन मुहैया कराया जा चुका है. उनका कहना था कि कुछ कमियां हैं, उसे भी जल्द दूर कर लिया जायेगा.

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