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पक्षी प्रेमियों के लिए जन्नत है बिहार का कैमूर अभयारण्य, यहां मौजूद हैं रंग-बिरंगे पक्षियों की 176 प्रजातियां

पूर्व डीएफओ विकास अहलावत द्वारा तैयार करायी गयी कैमूर अभ्यारण्य में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों की सर्वे रिपोर्ट से पता चला है कि कैमूर के वन्यप्राणी आश्रयणी क्षेत्र में 176 प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा है.

उमेश सिंह केशर, भभुआ: दिलकश पहाड़ी वादियों और प्रकृति के अनुपम दृश्यों से भरे कैमूर के वन्यप्राणी आश्रयणी क्षेत्र में 176 प्रजातियों के पक्षियों का बसेरा है. इनमें जमीन पर दाना चुनने वालों से लेकर शिकारी पक्षियों के भी झुंड शामिल हैं. ये तथ्य पूर्व डीएफओ विकास अहलावत द्वारा तैयार करायी गयी कैमूर अभ्यारण्य में पक्षियों की विभिन्न प्रजातियों की सर्वे रिपोर्ट में आये हैं. कैमूर वन प्रमंडल का अभ्यारण्य क्षेत्र है, जहां झरने और झीलें भी हैं. बाघ, तेंदुआ, हिरण, चीतल, जंगली सूअर, सांभर, भालू और चौसिंगा सहित रंग-बिरंगे पक्षियों के झुंड भी यहां पंख फैला कर विचरण करते हैं.

176 प्रजातियों के पक्षियों की तस्वीरें सामने आयी थीं

रिपोर्ट के अनुसार, कैमूर अभ्यारण्य के जंगलों में बसेरा करने वाले 176 प्रजातियों के पक्षियों की तस्वीरें सामने आयी थीं. इस अभ्यारण्य में मजबूत पंजे, नुकीले चोंच और पैनी नजर वाले शिकारी पक्षी यानी कपासी चील, खैरमुतिया, शहबाज और डोंगर भी हैं, जो छोटे जानवरों और अन्य पक्षियों का शिकार कर उनका मांस खाते हैं. वहीं, मांसाहारी पक्षियों में अबाबील वर्ग के पक्षी अपनी तेज रफ्तार से चट्टानों के ऊपर उड़ते कीट-पतंगों को हवा में ही अपना शिकार बना लेते हैं. दूसरी तरफ जमीन पर दाना चुगने वाले रंग-बिरंगे तीतरों से लेकर चर्चरी पक्षी भी पाये गये हैं, जो खुले जंगली मैदानों में जमीन पर चलने वाले कीटों को खाते हैं.

जलीय और दलदलीय क्षेत्र भी भरपूर

इसी तरह वन प्रक्षेत्र के जलीय और दलदलीय क्षेत्र में बगुला, सफेद किलकिला व टिटहरी पक्षियों का समूह निवास करता है. कैमूर अभ्यारण्य के बाग-बगीचे में रहने वाले पक्षी तोता, मैना, बुलबुल जंगली फलों को अपना आहार बनाते हैं. जंगल के तनों और पत्तियों पर बैठे कीटों को खाने वाले कहुक, पीलक व कठफोड़वा सहित हवा से झीलों और झरनों में गोता मार कर मछलियों को खाने वाले भुजंगा व पतरंगा पक्षी भी पाये जाते हैं. वहीं, जंगली फूलों का रस पीने के लिए कैमूर अभ्यारण्य में शक्करखोर चिड़िया का भी बसेरा है.

लुप्त प्राय: वनस्पतियों और जीवों का भी घर

सहायक वन संरक्षक राजकुमार शर्मा के अनुसार, 1500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला कैमूर अभ्यारण्य राज्य का सबसे बड़ा वन्यप्राणी आश्रयणी है. कैमूर के पठारी क्षेत्र विंध्य पर्वत की शृंखलाएं हैं. इनका फैलाव झारखंड, उत्तर प्रदेश सहित पुराने मध्य प्रदेश तक है. यहां दुर्लभ और लुप्त प्राय वनस्पतियों और जीवों का भी घर है.

राजकुमार शर्मा ने बताया कि विश्व में पक्षियों की तीन हजार प्रजातियां पायी जाती हैं. इनमें कैमूर अभ्यारण्य में 176 तरह के पक्षियों की प्रजाति पायी गयी है. जो वन प्रमंडल के सघन क्षेत्र करकटगढ़, तेलहाड़कुंड, कजरादह, मकरीखोह आदि के जंगलों में निवास करते हैं. गौरतलब है कि राज्य सरकार ने कैमूर वन अभ्यारण्य को वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व (वीटीआर) के बाद राज्य का दूसरा टाइगर रिजर्व भी घोषित किया है. यहां जल्द ही वन्यजीवों की गणना भी शुरू करायी जाने वाली है. गणना की ट्रांजिट लाइन खींची जा चुकी है.

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प्रवासी पक्षियों का भी हैं अस्थायी बसेरा

कैमूर के जंगल ही नहीं, बल्कि जलाशय और पोखर भी प्रवासी पक्षियों का अस्थायी बसेरा बनते जा रहे हैं. मुख्य रूप से जिले के सबसे बड़ी दुर्गावती जलाशय परियोजना और लगभग 40 एकड़ जल क्षेत्र में फैला दरौली पोखर प्रवासी पक्षियों की पसंद बनते जा रहे हैं. जहां हजारों मिल की यात्रा कर मेहमान परिंदे दुर्गावती जलाशय और दरौली पोखर पहुंचते हैं. जलाशय का यह लंबा-चौड़ा जल संग्रहण क्षेत्र आज अपनी पूरे बाजुओं को खोल कर मेहमान परिंदों का स्वागत करता है.

जलाशय का विशाल जल संग्रहण क्षेत्र प्रवासी पक्षियों के लिए आदर्श और अनुकूल स्थल बन चुका है. जल संग्रहण क्षेत्र के बीच- बीच में निकली पहाड़ी चट्टानें और पानी में निकली बड़ी- बड़ी झाड़ियां इनके अंडा देने के लिए मुफीद स्थान हैं. जल क्षेत्र विहंग करने के बाद ये प्रवासी मेहमान चट्टानों पर गुनगुनी धूप का आनंद लेते हैं और शाम होते ही जलाशय में उगी झाड़ियां इनका बसेरा बन जाती हैं.

कई मादा प्रवासी पक्षी अपना अंडा देने के लिए इन झाड़ियों में अपना घरौंदा भी बनाती हैं. सहायक वन संरक्षक राजकुमार शर्मा बताते हैं कि दरौली पोखर पर भी सर्दियों में प्रवासी पक्षी पहुंचते हैं. इन मेहमान परिंदों में चकवा, लालशर, घाटो, साइबेरियन हंस, हिलसा आदि पक्षी शामिल होते हैं.

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