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मॉनसून की बेदर्दी : धान के बिचड़ों को बचाने के लिए किसान जला रहे हैं खून और बहा रहे पसीना

मॉनसून की बेदर्दी : एक लाख 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में होनी है धान की रोपनी 11 हजार 500 हेक्टेयर क्षेत्र में डाले गये हैं बिचड़े अब तक जिले में दर्ज की गयी है मात्र 116 मिमी वर्षा भभुआ : जिले में खरीफ फसलों में मुख्य माने जाने वाले धान के खेती के बिचड़ों को […]

मॉनसून की बेदर्दी : एक लाख 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में होनी है धान की रोपनी
11 हजार 500 हेक्टेयर क्षेत्र में डाले गये हैं
बिचड़े
अब तक जिले में दर्ज की गयी है मात्र 116 मिमी वर्षा
भभुआ : जिले में खरीफ फसलों में मुख्य माने जाने वाले धान के खेती के बिचड़ों को बचाने में किसानों कड़ी धूप में खून जलाने से लेकर पसीना बहाना पड़ रहा है.
धान के खेती के लिए कृषि विभाग द्वारा एक लाख 11 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में रोपनी का लक्ष्य निर्धारित किया गया है जिसे लेकर 11 हजार 500 हेक्टेयर में बीज का अाच्छादन हुआ है. जून और जुलाई माह में अब तक जिले में मात्र 116 मिमी वर्षा रिकॉर्ड की गयी है.
दरअसल, जिले में मॉनसून के बेरुखी से खरीफ फसल की खेती पर संकट के बादल गहराने लगे हैं. बरसात नहीं होने के कारण जिले की मुख्य सिंचाई परियोजना दुर्गावती जलाशय के ठप होने से लेकर नहर और वितरणियों में भी पानी की आपूर्ति महज खानापूर्ति बन कर रह गयी है.
नतीजा है धान के इस कटोरे में लगभग तीन सप्ताह से लेकर चार सप्ताह पूर्व में डाले गये धान के बिचड़ों को बचाने के लिए किसानों को इस कड़ी धूप में अपना खून जलाने के साथ पसीना भी बहाना पड़ रहा है.
किसानों की माने तो अगर एक पखवाड़े अगर पर्याप्त पानी नहीं बरसता है तो या तो फिर धान के बिचड़े मर जायेंगे या तो फिर बिचड़े इतने बड़े हो जायेंगे कि अगर उनसे रोपाई करायी गयी तो उपज सिमट कर आधी हो जायेगी. हालांकि प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी श्याम बिहारी सिंह का कहना है कि धान की रोपाई अभी जुलाई माह तक किया जा सकता है. वैसे जिले में रोपनी का कार्य 15 अगस्त तक भी पूर्व में चलता पाया गया है. आज-कल में वर्षा हो जाती है तो धान की खेती अपने पुराने रंगत में लौट आयेगी.
उन्होंने बताया कि इस वर्ष धान के रोपाई का लक्ष्य एक लाख 11 हजार हेक्टेयर में है. जिसको लेकर 11 हजार 500 हेक्टेयर में बीज का अाच्छादन कराया गया है. अभी बिचड़ों के मरने की सूचना कहीं से प्राप्त नहीं है. साधन संपन्न किसानों द्वारा चांद प्रखंड सहित कुछ अन्य प्रखंडों में धान की रोपनी भी शुरू करा दी गयी है. लेकिन जिले में धान की रोपनी दो से तीन प्रतिशत के बीच में कही जा सकती है.
सामुदायिक नर्सरी से भी किसानों को मिलेंगे बिचड़े : जिले में अगर किसानों के धान के बिचड़े मर जाते हैं तो उन्हें धान की रोपनी के लिए सामुदायिक नर्सरी से भी धान के बिचड़े उपलब्ध कराये जायेंगे. इस संबंध में जानकारी देते हुए प्रभारी डीएओ ने बताया कि जिले के सभी प्रखंडों में 10 एकड़ क्षेत्र में कृषि विभाग द्वारा सामुदायिक नर्सरी में बीज का अाच्छादन कराया जाना था लेकिन, अब तक किसानों द्वारा खेत नहीं उपलब्ध कराये जाने के कारण कुछ प्रखंडों में ही सामुदायिक नर्सरी के तहत बीजारोपण कराया गया है. जिसमें अधौरा, चांद, मोहनिया, चैनपुर तथा भगवानपुर प्रखंड शामिल हैं. जहां से बीज उत्पादक साधन संपन्न किसान के नर्सरी से अन्य किसान निर्धारित शुल्क देकर बिचड़े प्राप्त कर सकते हैं.
औसत वर्षा से काफी कम हुई है बािरश : जिले में मॉनसून की वर्षा अभी तक मात्र 116 मिमी रिकॉर्ड की गयी है. जो औसत वर्षपात से काफी कम बतायी जाती है.
इस संबंध में कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जून माह में औसत वर्षपात लगभग 108 मिमी होनी चाहिए थी लेकिन जून माह में जिले में सामान्य वर्षपात का आंकड़ा 91 मिमी ही दर्ज किया गया. इसी तरह जुलाई माह में 11 जुलाई तक जिले में मात्र 26 मिमी वर्षा दर्ज किया गया है. जबकि जुलाई माह का सामान्य वर्ष पात लगभग 175 मिमी होना चाहिए. गौरतलब है कि जिले में सामान्यत: मॉनसून की बौछारें जून के अंतिम सप्ताह तक अपने रंग में आ जाती थी जो इस बार नहीं दिखाई दे रहा है.
खेती पिछड़ने का विकल्प है आकस्मिक फसल योजना
जिले में अगर खरीफ फसल की खेती मार खाती है तो फिर आकस्मिक फसल योजना लागू की जा सकती है. इस संबंध में जानकारी देते हुए प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि आकस्मिक फसल योजना का प्लान सरकार स्तर से वैज्ञानिकों के सलाह पर बनाया जाता है. जिसमें कम पानी और कम समय में पैदा होने वाले धान के बीजों जैसे साकेत, तुरंता आदि की रोपाई की जाती है.
लेकिन, अब तक सरकार स्तर से आकस्मिक फसल योजना प्लान का कोई निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है. गौरतलब है कि इस योजना के तहत किसानों को फिर से नया बीज डालना पड़ेगा और रोपाई लायक होने तक उनका इंतजार करना पड़ेगा. जो मॉनसून का झटका खा चुके किसानों के लिए दूर का कौड़ी ही साबित होने वाला होगा.
दलहनी और तेलहनी फसलों की खेती भी लक्ष्य से काफी पीछे
खरीफ फसलों में माने जाने वाले दलहनी और तेलहनी फसलों की खेती भी जिले में लक्ष्य से काफी पीछे चल रही है. कृषि विभाग से मिली जानकारी के अनुसार जिले में 1500 हेक्टेयर लक्ष्य के आलोक में मक्का की खेती मात्र 271 हेक्टेयर, 3000 हेक्टेयर के लक्ष्य में अरहर की खेती 1079 हेक्टेयर में की गयी है. इसी तरह मूंग, तिल, मूंगफली आदि की खेती भी लक्ष्य के कहीं आसपास नहीं है.
हालांकि, उड़द की खेती में जिले में लक्ष्य के अनुरूप शत प्रतिशत की गयी है. दलहन और तेलहन की अधिकांश फसलों की खेती भी जिले के कुछ पहाड़ी प्रखंडों अधौरा आदि में ही की गयी है. फिर भी मिला जुला कर देखें तो खरीफ फसलों के इस समूह में अगर धान की रोपनी पिछड़ जाती है. तो कैमूर जिले को सूखे के भीषण चपेट के दौर में जाने से बचाया नहीं जा सकता है.

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