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शहर के विभिन्न चौक-चौराहों पर सुबह होते ही लगता है मजदूरों का जमावड़ा

जिले के ग्रामीण इलाकों से ट्रेन व अन्य वाहनों से इन चौराहों पर प्रतिदिन रोजगार की तलाश में सैकड़ों की संख्या में अहले सुबह ही मजदूर पहुंच जाते हैं. चौक-चौराहों पर पहुंचे मजदूर काम पर बुलावे का इंतजार करते रहते हैं.

जहानाबाद नगर. पेट की आग बुझाने की मुहिम सुबह से ही शहर में दिखने लगता है. शहर के सभी प्रमुख चौक-चौराहों पर मजदूरों की टोली दिखाई देने लगती हैं. जिले के ग्रामीण इलाकों से ट्रेन व अन्य वाहनों से इन चौराहों पर प्रतिदिन रोजगार की तलाश में सैकड़ों की संख्या में अहले सुबह ही मजदूर पहुंच जाते हैं. चौक-चौराहों पर पहुंचे मजदूर काम पर बुलावे का इंतजार करते रहते हैं. चाहे कोई भी मौसम हो, उन्हें अपने पेट की आग बुझाने की चिंता रहती है. सुबह होते ही मजदूरों की टोली चौराहों पर जमावड़ा लगाये काम देने वालों का इंतजार करते रहती है. जैसे ही काम देने वाला कोई व्यक्ति मजदूर की तलाश में वहां पहुंचता है तो एक साथ कई मजदूर उससे काम के बारे में पूछने लगते हैं. हालांकि किसी एक-दो मजदूर को ही वह व्यक्ति काम दे पाता है. जबकि अन्य मजदूरों को किसी और काम देने वाले का इंतजार करना पड़ता है. सुबह के समय शहरी क्षेत्र के अरवल मोड़, आंबेडकर चौक, मलहचक मोड़, काको मोड़ जैसे प्रमुख चौराहों पर मजदूरों का जमावड़ा लग जाता है. काम की तलाश में दूर-दराज के गांवों से पहुंचने वाले मजदूर जब तक काम नहीं मिल जाती, तब तक एक-दूसरे से सटकर गप्पे लड़ाते दिखते हैं.

काम मिलने पर ही जलता है घर का चूल्हा : ग्रामीण इलाकों से आने वाले मजदूरों में कई ऐसे होते हैं जिन्हें काम मिलने के बाद ही उनके घर का चूल्हा जलता है. काम की तलाश में पहुंचने वाले मजदूर कई बार कम काम होने पर मजदूरी को लेकर बारगेनिंग के भी शिकार होते हैं. कम मजदूरी में भी वे काम करने के लिए राजी हो जाते हैं ताकि उनके घर का चूल्हा जल सके. जिस दिन उन्हें काम नहीं मिल पाता, उस दिन वे निराश व हताश होकर दोपहर तक काम के इंतजार में बैठे रहते हैं. उसके बाद ही वे अपने घर जाते हैं. मजदूरों की टोली वैसे ठेकेदारों के भी संपर्क में रहते हैं जो उन्हें काम उपलब्ध कराता है. हालांकि ठेकेदारों द्वारा उनकी मजदूरी में कुछ कटौती भी किया जाता है फिर भी वे काम करने को राजी हो जाते हैं ताकि घर-परिवार के लोगों को भोजन मिल सके.

चौराहों पर नहीं हैं मजदूरों के लिए बुनियादी सुविधाएं : शहरी क्षेत्र के जिन चौक-चौराहों पर मजदूरों का जमावड़ा लगता है, वहां उनके लिए कोई सुविधा उपलब्ध नहीं हैं. न तो पेयजल की व्यवस्था है और न ही शौचालय की व्यवस्था है जिससे उन्हें परेशानी का सामना करना पड़ता है. हद तो यह है कि हर मौसम में उन्हें खुले में काम की तलाश में समय बिताना पड़ता है, चाहे सर्दी हो या बरसात, गर्मी हो गया चिलचिल्लाती धूप हर मौसम में वे काम की तलाश में चौक-चौराहों पर खड़े रहते हैं ताकि उन्हें काम मिले और उससे मिलने वाली मजदूरी से उनके घर का चूल्हा-चौका जले.

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