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भक्तों की मन्नतें को पूरा करती हैं सरौन वाली मां काली

बिहार झारखंड की सीमा पर चकाई के सरौन बाजार में अवस्थित मां सरौन काली मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है. जो भी श्रद्धालु मां काली के मंदिर में आकर अपनी अरदास लगाते हैं मां उसकी मन्नत अवश्य पूरी करती हैं.

जयकुमार शुक्ला, चकाई

बिहार झारखंड की सीमा पर चकाई के सरौन बाजार में अवस्थित मां सरौन काली मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र रहा है. जो भी श्रद्धालु मां काली के मंदिर में आकर अपनी अरदास लगाते हैं मां उसकी मन्नत अवश्य पूरी करती हैं. कोई भी इनके दरबार से कभी खाली हाथ नही लौटा है.

200 साल पूर्व हुई थी मां काली मंदिर की स्थापना

स्थानीय लोगों के बीच मंदिर को लेकर यह मान्यता है कि लगभग दो सौ साल पूर्व अमावस्या कृष्ण पक्ष तिथि की घनघोर काली रात को सरौन बाजार के पास स्थित अजय नदी के उदगम स्थल बड़का आहर के पास घने जंगल में मध्य रात्रि को ग्रामीणों ने एक तेज बिस्फोट की आवाज़ सुनी. आवाज़ से पूरा इलाका गूंज उठा. वहीं जब स्थानीय ग्रामीण आवाज़ का पता लगाने उस दिशा की और बढ़े तो देखा कि वहां कि जमीन फट कर लंबी दरार में परिवर्तित हो चुकी थी. वहीं उस दरार में मौजूद चार फीट लंबी सिंदूर लिपटी एक काले पत्थर की पिंडी दिखाई दे रही थी.यह देख लोग भयभीत हो उठे. वहीं दूसरी रात यानि शुक्ल पक्ष की परिवा को मां काली ने स्वप्न देकर यह आदेश दिया कि जहां पिंडी का जमीन से प्रादुर्भाव हुआ है वहीं भक्ति भाव से पिंडी स्थापित कर मेरी पूजा अर्चना करो सबका कल्याण होगा.सबकी मन्नत पूरी होगी.स्वप्न की बात जानकर सरौन चरघरा के तत्कालिन जमींदार प्रहलाद सिंह ने स्थानीय ग्रामीणों के सहयोग से उक्त स्थान पर पुरे नियम, भक्ति भाव एवं वैदिक रीति रिवाज के साथ मां काली की सिंदूर लिपटी पिंडी को स्थापित कर मां की. पूजा अर्चना शुरू की जो अब भी जारी है.

पूजा समिति ने कराया भव्य मंदिर का निर्माण

वहीं कालांतर में मंदिर निर्माण एवं विकास हेतु एक पूजा समिति बनाया गया. वहीं पूजा समिति के सदस्यों हरि किशोर चौधरी, जयदेव चौधरी, बंगटु यादव आदि द्वारा एवं आस पास के दस गांव के ग्रामीणों के सहयोग से उक्त पिंडी पर एक भब्य काली मंदिर का निर्माण कराया गया जो सरौन काली मंदिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ.वहीं मंदिर प्रांगण में श्रद्धालुओं के ठहरने हेतु धर्मशाला के साथ साथ कुआं, चापाकल आदि भी बनाये गये. साथ ही. पुरे मंदिर प्रांगण को चहारदीवारी से घेरा गया.

प्रत्येक साल वार्षिक पूजा में होता है भव्य आयोजन

हर साल आषाढ़ मास के किसी भी पुण्य तिथि पर मंगलवार के दिन मां काली की वार्षिक पूजा का आयोजन किया जाता है. विद्वान पंडितों द्वारा इस पावन मौके पर एक सप्ताह पूर्व से ही मंदिर में मां का पाठ आरम्भ कर दिया जाता है. पूजा के दिन पंडितों द्वारा पुरे नियम, विधान एवं वैदिक रीति रिवाज के साथ मां काली की. पूजा अर्चना की जाती है. इसके उपरांत भक्तों द्वारा लाये गए ध्वज को मंदिर प्रांगण में निरोपित किया जाता है.इसके बाद ब्राह्मण एवं कुंवारी कन्या के ज्योनार के बाद मंदिर प्रांगण में बकरे की बलि शुरू हो जाती है जो शाम तक चलती है.स्थानीय लोगों की माने तो लगभग 10 हजार से भी अधिक बकरे की बलि हर वर्ष मन्नत पूरा होने की ख़ुशी में श्रद्धालु चढ़ाते हैं.

पूजा के मौके पर भब्य दो दिवसीय मेले का होता है आयोजन

सरौन काली मंदिर के प्रांगण में वार्षिक पूजा के मौके पर हर वर्ष भब्य दो दिवसीय मेले का आयोजन होता रहा है.इस पावन अवसर पर केवल चकाई प्रखंड से ही नही बल्कि बिहार, झारखंड एवं बंगाल के सुदूरवर्ति इलाके से बड़ी संख्या में श्रद्धालु मां काली की वार्षिक पूजा में भाग लेकर मां की पूजा अर्चना के उपरांत मंदिर परिसर में आयोजित मेले का आनंद उठाते हैं. इस मौके पर मेले को आकर्षक बनाने हेतु पूजा समिति द्वारा तरह तरह के खेल जैसे बिजली चलित तारामाची, कठघोड़वा, नाव, कठपुतली का नृत्य, ब्रेक डांस आदि मेला परिसर में लगाए जाते हैं जिसका श्रद्धालु जम कर लुफ्त उठाते हैं. वहीं इस मौके पर लगभग 25 हजार के आस पास भक्तों की भीड़ मां सरौन वाली काली की पूजा अर्चना हेतु वार्षिक पूजा में आती है तथा मां के दर्शन एवं पूजा के बाद मेले का लुफ्त उठाती हैं.वहीं इस मौके पर पुलिस प्रशासन द्वारा वार्षिक पूजा सम्पन्न कराने हेतु कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की जाती है.

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