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त्याग व तपस्या की प्रतिमूर्ति थे स्वतंत्रता सेनानी हीरा जी – गौरीशंकर

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं शिक्षा प्रेमी कालिका प्रसाद सिंह उर्फ हीरा जी की 130वीं जयंती की पूर्व संध्या पर केकेएम कॉलेज, जमुई में एक संगोष्ठी आयोजित की गयी.

जमुई . स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं शिक्षा प्रेमी कालिका प्रसाद सिंह उर्फ हीरा जी की 130वीं जयंती की पूर्व संध्या पर केकेएम कॉलेज, जमुई में एक संगोष्ठी आयोजित की गयी. इस अवसर पर अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ गौरीशंकर पासवान ने हीरा जी के योगदान को स्मरण करते हुए उन्हें त्याग और तपस्या की प्रतिमूर्ति बताया. उन्होंने कहा कि हीरा जी न केवल स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय सिपाही थे, बल्कि शिक्षा और सेवा के क्षेत्र में भी उनका योगदान अविस्मरणीय रहा है. उन्होंने कहा कि हीरा जी साहस के सुमेरु, संकल्प के गिरिराज और युगपुरुष थे. उनका जीवन संघर्ष, सेवा और शिक्षा का अद्भुत संगम था. हीरा जी का जन्म 4 सितंबर 1895 को गिद्धौर के महाराजा राव महेश्वरी जी के आंगन में हुआ था. उन्होंने महात्मा गांधी के तीनों प्रमुख आंदोलनों असहयोग आंदोलन (1920), नमक सत्याग्रह (1930) और भारत छोड़ो आंदोलन (1942) में सक्रिय भूमिका निभाई थी. स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी और योगदान अमूल्य रही.

समावेशी समाज व शिक्षा के पक्षधर थे हीरा जी

हीरा जी का दृष्टिकोण समावेशी था. वे मानते थे कि समाज का समुचित विकास तभी संभव है जब निचले तबके को आगे लाया जाये. उन्होंने कहा कि हीरा जी शिक्षा को सामाजिक-आर्थिक विकास का मुख्य माध्यम मानते थे और समाज के सभी वर्गों को समान अवसर देने की वकालत करते थे. हीरा जी 1927 में बिहार विधान परिषद के सदस्य तथा 1937 और 1946 में बिहार विधानसभा के सदस्य रहे. उन्होंने जनसेवा को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया था और सत्ता-सुख को त्यागकर वनझूलिया आश्रम से आजादी की लड़ाई लड़ी. लेकिन इतने महान पुरुष का नाम आज इतिहास के पन्नों और जनमानस से मिटता जा रहा है. उन्होंने कहा कि वह अपने ही घर में बेगाने हो गए हैं. हीरा जी न केवल व्यक्ति थे बल्कि एक संस्कृति थे, जिनके विचार और आदर्श आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रकाश स्तंभ की तरह हैं.

10 सितंबर 1953 को हुआ था निधन

हीरा जी का निधन 10 सितंबर 1953 को हुआ, लेकिन उनके विचार और आदर्श आज भी जीवंत हैं. प्रो पासवान ने कहा कि उनके कार्यों से प्रेरणा लेकर ही एक समतामूलक और प्रगतिशील समाज की स्थापना की जा सकती है. कार्यक्रम के अंत में उपस्थित जनों ने हीरा जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर उन्हें श्रद्धांजलि दी. कॉलेज प्रशासन और छात्र-छात्राओं ने भी उनके विचारों को आत्मसात करने की बात कही.

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