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टीबी उन्मूलन के लिए की जा रही संभावित मरीजों की पहचान

जिले में स्वास्थ्य विभाग के सामने इस साल यक्ष्मा उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करने की बड़ी चुनौती है. निजी क्लिनिकों में इलाज करा रहे मरीजों को छोड़ दें.

हाजीपुर. जिले में स्वास्थ्य विभाग के सामने इस साल यक्ष्मा उन्मूलन का लक्ष्य हासिल करने की बड़ी चुनौती है. निजी क्लिनिकों में इलाज करा रहे मरीजों को छोड़ दें, तो जिले के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर सदर अस्पताल तक, लगभग साढ़े छह हजार टीबी मरीज अंडर ट्रीटमेंट हैं. विभाग की ओर से टीबी रोगियों की पहचान और अधिक से अधिक जांच पर जोर दिया गया है. जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉ सीताराम सिंह ने बताया कि टीबी उन्मूलन का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए जन समुदाय के बीच जाकर संभावित टीबी मरीजों की पहचान करना जरूरी है. इसलिए जिले के सभी प्रखंडों में आशा एवं आशा फैसिलिटेटरों के सहयोग से संभावित मरीजों की खोज की जा रही है. अत्याधुनिक ट्रू नेट मशीन से संभावित मरीजों की जांच की जा रही है. जिले में सदर अस्पताल तथा महुआ अनुमंडल अस्पताल में सीबी नेट उपलब्ध है, जबकि सभी पीएचसी में ट्रू नेट मशीन की व्यवस्था की गयी है. टीबी के संभावित मरीजों की खोज में खासकर स्लम बस्तियों और ऐसे इलाकों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है, जहां कुपोषण के शिकार लोगों की संख्या ज्यादा है.

नये रेजिमेन से एमडीआर टीबी का होगा इलाज : एमडीआर टीबी के मरीजों के इलाज के लिए राज्य में अब नये रेजिमेन बी पाल एम का कोर्स शुरू किया गया है. यह छह महीने का कोर्स है, जो 14 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों के लिए होगा. एमडीआर मरीजों के इलाज में यह नया रेजिमेन काफी असरदार है. बी पाल एम का कोर्स शुरू करने से पहले मरीज की अनेक तरह से जांच होती है, उसके बाद ही दवा दी जाती है. हालांकि वैशाली जिले में अभी नये रेजिमेन से एमडीआर टीबी का इलाज शुरू नहीं हो सका है. जिला यक्ष्मा केंद्र के सहायक शैलेंद्र प्रसाद ने बताया कि विभाग की ओर से अभी जिले को नये रेजिमेन की दवाएं उपलब्ध नहीं करायी गयी है.

एमडीआर टीबी रोग की खतरनाक अवस्था है, जो मरीज की जान ले सकती है : विशेषज्ञ बताते हैं कि टीबी के मरीज को यदि दवाओं का पूरा कोर्स नहीं मिले, तो टीबी के जीवाणु शेष रह जाते हैं. ऐसे में जीवाणुओं पर दवाओं का असर समाप्त हो जाता है. आगे चलकर यही टीबी जीवाणु मल्टी ड्रग रेसिस्टेंस (एमडीआर) टीबी फैलाते हैं. इसलिए यदि कोई व्यक्ति पहली बार यक्ष्मा रोग से ग्रसित होता है, तो उसके लिए जरूरी है कि वह दवाओं का पूरा कोर्स ले. कोई भी टीबी का मरीज यदि कुछ दिन दवा खाकर बीच में छोड़ दे, तो उसके दोबारा बीमारी की चपेट में आने की संभावना रहती है. ऐसे मरीज ही एमडीआर टीबी के शिकार होते हैं. ये मरीज अपने इर्द-गिर्द के लोगों को भी इसकी चपेट में लाते हैं. वे जहां-जहां विचरण करते हैं, इस रोग को फैलाते हैं. टीबी रोगियों के लिए यह हिदायत है कि डब्ल्यूएचओ और भारत सरकार की ओर से तैयार दवाओं का कोर्स वे हर हाल में पूरा करें. लेकिन, व्यवस्था और रोगी, दोनों स्तर पर बरती जा रही लापरवाही के कारण स्थिति खतरनाक होती जा रही है. इस साल में अभी तक 460 से अधिक एमडीआर टीबी के मरीज अंडर ट्रीटमेंट बताये गये.

न्यूट्रिशनल सपोर्ट देकर टीबी उन्मूलन में सहयोग कर रहे निक्षय मित्र : जिले में टीबी मरीजों को न्यूट्रिशनल सपोर्ट देकर निक्षयमित्र यक्ष्मा उन्मूलन में मददगार बन रहे हैं. यक्ष्मा रोगियों को गोद लेकर उनके पोषण में सहायता देने वाले निक्षयमित्रों में सिविल सर्जन, जिला संचारी रोग पदाधिकारी, गैरसंचारी रोग पदाधिकारी समेत अन्य चिकित्सा अधिकारी एवं जिला यक्ष्मा केंद्र के अनेक कर्मी शामिल हैं. हालांकि जिले में अभी टीबी मरीजों की तुलना में निक्षयमित्रों की संख्या काफी कम है. करीब ढ़ाई साल पहले शुरू हुई निक्षय पोषण योजना के तहत निक्षयमित्रों की ओर से टीबी मरीजों को लगातार छह माह तक दिये जाने वाले फूड बास्केट में एक माह की खाद्य सामग्री होती है. जिले में अभी 189 निक्षयमित्र हैं, जिनके माध्यम से 1006 टीबी मरीजों को छह माह तक फूड बास्केट दिये गये. जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉ सीताराम सिंह ने कहा कि ज्यादा से ज्यादा जनप्रतिनिधि, सामाजिक कार्यकर्ता और अन्य जागरूक लोग निक्षयमित्र बनकर जिले को टीबी मुक्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

क्या कहते हैं अधिकारी

टीबी उन्मूलन के लिए मिशन मोड में कार्य किया जा रहा है. रोगियों की पहचान के लिए जांच पर जोर दिया जा रहा है. हर महीने की 16 तारीख को निक्षय दिवस मनाया जाता है. इसके तहत जिले के सभी हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों पर कार्यक्रम आयोजित कर टीबी के प्रति लोगों को जागरूक किया जाता है. इससे संबंधित जांच, उपचार तथा निक्षय पोषण योजना आदि के बारे में जानकारी दी जाती है. टीबी मरीजों को गोद लेकर निक्षय मित्र उनके पोषण में मददगार बन रहे हैं. जितने ज्यादा लोग निक्षय मित्र बनेंगे, टीबी उन्मूलन का लक्ष्य उतना ही आसान होगा.

डॉ सीताराम सिंह, जिला संचारी रोग पदाधिकारी

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