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hajipur news. डॉ आंबेडकर के विचारों को अपनाकर ही समाप्त होगी समाज से ऊंच-नीच की भावना

राज नारायण महाविद्यालय में अंबेडकर जयंती पर हुआ वेबिनार का आयोजन, सामाजिक समावेश और समानता विषय पर वक्ताओं ने रखे विचार

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हाजीपुर. राज नारायण महाविद्यालय, हाजीपुर में सोमवार को बाबा साहेब डॉ भीम राव अंबेडकर जयंती के अवसर पर ””डॉ बीआर अंबेडकर और भारत में सामाजिक समावेश और समानता”” विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया. इसका आयोजन महाविद्यालय की आइक्यूएसी के तत्वावधान में राजनीति विज्ञान और अंग्रेजी विभाग के सहयोग से किया गया. यह कार्यक्रम पीएम-उषा योजना की लैंगिक समावेश और समानता पहल के तहत महाविद्यालय द्वारा प्रस्तावित गतिविधियों के अंतर्गत आयोजित किया गया. वेबिनार के मुख्य वक्ताओं में आइआइपीए की बिहार क्षेत्रीय शाखा के सचिव डॉ आरके वर्मा, पटना विश्वविद्यालय में अंबेडकर अध्ययन विभाग की अध्यक्ष डॉ सीमा प्रसाद, और एलएनटी कॉलेज, मुजफ्फरपुर के प्राचार्य डॉ अभय कुमार सिंह शामिल थे. अध्यक्षता करते हुए कॉलेज के प्राचार्य डॉ रवि कुमार सिन्हा ने कहा कि डॉ अंबेडकर के राजनीतिक और सामाजिक विचारों का केंद्र जातिगत शोषण और दमनकारी सामाजिक प्रथाओं को शिक्षा और सशक्तिकरण के माध्यम से समाप्त करना है, जिससे स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के संवैधानिक मूल्यों पर आधारित समतावादी समाज की स्थापना हो सके. उन्होंने डॉ अंबेडकर के प्रसिद्ध नारे शिक्षित बनो, आंदोलन करो, संगठित हो का उल्लेख करते हुए इसे सामाजिक न्याय की नींव बताया. वहीं, विषय प्रवेश कराते हुए डॉ खालिद हुसैन सिद्दीकी ने कहा कि संविधान को जीवंत दस्तावेज बनाने में डॉ अंबेडकर का योगदान ऐतिहासिक रहा है. उन्होंने समानता सुनिश्चित करने के लिए एक कल्याणकारी समाज की परिकल्पना की थी. डॉ अमिय आनंद ने बाबा साहेब के अनुभवों और ऐतिहासिक परिस्थितियों का उल्लेख किया, जिन्होंने उन्हें जाति आधारित भेदभाव के खिलाफ कानून के साथ-साथ सामाजिक हस्तक्षेप का पक्षधर बनाया.

बाबा साहेब ने कही थी सामाजिक इंजीनियरिंग की बात

पटना विश्वविद्यालय की डॉ सीमा प्रसाद ने डॉ अंबेडकर के विचारों को बहुआयामी बताते हुए कहा कि उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी पहलुओं को प्रभावित किया. उन्होंने सोशल मीडिया और प्रौद्योगिकी के माध्यम से भेदभाव खत्म करने के लिए जमीनी स्तर पर सामाजिक आंदोलनों की आवश्यकता पर बल दिया. डॉ आरके वर्मा ने आधुनिक भारत में अंबेडकर की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए कहा कि आजादी के 75 वर्षों के बाद भी देश अपने लक्ष्यों को पूरी तरह प्राप्त नहीं कर पाया है. उन्होंने दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों से तुलना करते हुए कहा कि अंबेडकर ने सामाजिक विखंडन को दूर करने के लिए सामाजिक इंजीनियरिंग की बात कही थी.

संकाय और छात्रों की सक्रिय भागीदारी

वेबिनार की परिचर्चा में डॉ सुमन सिन्हा, डॉ खालिद हुसैन सिद्दीकी, डॉ अर्चना कुमारी, डॉ पीके यादव, डॉ अमिय आनंद, डॉ पवन कुमार, कुमार देवेश, डॉ बबीता जायसवाल, डॉ अमृता समेत कई संकाय सदस्यों ने भाग लिया. धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुमन सिन्हा द्वारा प्रस्तुत किया गया. वहीं प्रिया सिंह, अभिषेक, दीप, शौर्य, शिवम कुमार, तनु, तनुष्का, ध्रुवस्वामिनी, प्रेरणा, निशा, ऋषिकेश, किंजल, अंजू, राहुल, नीतीश, भानु प्रकाश, चिंकी, रिया, शिवम, रिशव, रतन राज और नीतीश कुमार आदि छात्र-छात्राओं ने भी परिचर्चा में भाग लिया.

छात्रों ने समाज में फैली विषमताओं और युवाओं के समक्ष चुनौतियों की चर्चा की. उन्होंने माना कि डॉ. अंबेडकर के विचारों को अपनाकर ही भारतीय समाज से ऊंच-नीच की भावना को समाप्त किया जा सकता है.

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