अफसरों पर नहीं दिखता आरटीआइ कानून का असर
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खुलासा. गोपालगंज जिले में 11 साल में एक भी अफसर ने नहीं जमा किये जुर्माने के 25 हजार
अफसरों पर नहीं दिखता आरटीआइ कानून का असर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और काम में पारदर्शिता लाने के लिए केंद्र सरकार ने 2005 में जन सूचना अधिकार कानून लागू किया. इस कानून को लागू हुए 11 साल हो गये, मगर अफसरों पर इस कानून का असर नहीं है. वे इस कानून के तहत मांगी गयी […]
भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और काम में पारदर्शिता लाने के लिए केंद्र सरकार ने 2005 में जन सूचना अधिकार कानून लागू किया. इस कानून को लागू हुए 11 साल हो गये, मगर अफसरों पर इस कानून का असर नहीं है. वे इस कानून के तहत मांगी गयी सूचना जल्दी उपलब्ध नहीं कराते हैं.
गोपालगंज : जिले में पिछले 11 सालों में 58 से अधिक अफसरों पर समय से सूचना नहीं देने पर राज्य सूचना आयोग जुर्माना लगा चुका है. मगर, आज तक एक भी अधिकारी ने जुर्माना राशि जमा नहीं की है. वहीं, किसी भी आवेदक को समय से सूचना नहीं मिलने पर आयोग द्वारा निर्धारित हर्जाना भी आज तक नहीं मिला है. यह खुलासा वित्त विभाग से जन सूचना अधिकार के तहत मांगी गयी सूचना में हुआ है.
दरअसल आरटीआइ कार्यकर्ता अरुण कुमार मिश्र ने महालेखाकार पटना से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी थी कि राज्य में लोक सूचना पदाधिकारी से सूचना न देने के उपलक्ष्य में अब तक कितनी धनराशि जुर्माने के रूप में जमा करायी गयी है. इसका वर्षवार और जिलावार सूचना उपलब्ध करायी जाये. उन्होंने अब तक आवेदकों को क्षतिपूर्ति के रूप में दी गयी धनराशि का भी वितरण मांगा था. वहां से उन्हें सूचना दी गयी कि अभी तक वित्त विभाग द्वारा संबंधित कोड में एक भी रुपये जमा नहीं कराया गया है.
राज्य सूचना आयोग नहीं देता सूचना : दरअसल अरुण कुमार मिश्र ने पहले राज्य सूचना आयोग से ही यह सूचना मांगी थी. मगर, राज्य सूचना आयोग से उन्हें लिखित जवाब दे दिया गया कि मांगी गयी सूचना देने से राज्य सूचना आयोग के कार्यकलापों में वितरीत प्रभाव होने की संभावना है. इसलिए सूचना के अधिकार के तहत सूचना उपलब्ध नहीं करायी जा सकती है.
यह है प्रक्रिया : सूचना का अधिकार के तहत मांगी गयी जानकारी के लिए संबंधित विभाग में 10 रुपये फीस देकर आवेदन किया जा सकता है. आवेदन मिलने के 30 दिनों के भीतर संबंधित लोक सूचना अधिकारी द्वारा जानकारी देनी होती है. संबंधित अधिकारी द्वारा ऐसा नहीं करने पर अपीलीय अधिकारी के पास जानकारी जानकारी के लिए अपील की जा सकती है. इसमें भी आवेदन मिलने के 45 दिनों के अंदर ही आवेदक को जानकारी मुहैया करायी जानी है. अगर इस पर भी आवेदक को जानकारी न मिले, तो सूचना आयोग में मामले की शिकायत अथवा द्वितीय अपील की जा सकती है.
अधिकारी उड़ा रहे मखौल : सूचना का अधिकार कानून का कई विभागों में अधिकारी मखौल उड़ा रहे हैं. वे न तो सूचना देते हैं और न ही जुर्माना भरते हैं. हालांकि जुर्माना भरने के बाद भी जानकारी देने से बचा नहीं जा सकता है. केंद्रीय सूचना आयोग ने तो जानकारी उपलब्ध न कराने पर एफआइआर कराने का निर्देश भी दिया है.
लेकिन, अब तक राज्य सूचना आयोग ने ऐसी कोई नजीर पेश नहीं की है. सूचना का अधिकार नामक हथियार का इस्तेमाल करनेवाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि जब तक आयोग एफआइआर दर्ज कराने का फरमान नहीं देगा, तब तक न तो जानकारी मुहैया कराने की गति तेज होगी और न ही जन सूचना अधिकार कानून का खौफ होगा.
आसान नहीं होगा जुर्माना वसूलना : अफसरों से जुर्माना वसूलना आसान नहीं होगा. क्योंकि कई अधिकारी अब या तो अपना कार्यकाल पूरा कर सेवानिवृत्त हो चुके हैं या दूसरी जगहों पर स्थानांतरित हो चुके हैं. सूत्रों की मानें, तो राज्य सूचना आयोग अपने निर्णय के साथ दोषी अधिकारी से अर्थदंड वसूलने के लिए जिलाधिकारी और ट्रेजरी को लिखता है. अर्थदंड की वसूली इन्हीं दोनों का काम है. आयोग का नहीं.
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