गया जी. शहर भर के शनि मंदिरों में मंगलवार को भगवान शनि की जयंती श्रद्धा, भक्ति और आस्था के साथ धूमधाम से मनायी गयी. रामसागर तालाब परिसर, पितामहेश्वर मुहल्ला, बाटामोड़ और अन्य क्षेत्रों में स्थित शनि मंदिरों में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ पड़ी. इस अवसर पर मंदिरों को रंग-बिरंगे बल्बों, फूल-मालाओं और पारंपरिक सजावट से भव्य रूप से सजाया गया था. भगवान शनि का विशेष पूजन, शृंगार और आरती की गयी. मंदिरों के पुजारियों द्वारा मंत्रोच्चारण और शनि आराधना के विशेष अनुष्ठान कराये गये, जिसके बाद श्रद्धालुओं के बीच प्रसाद का वितरण किया गया. श्रद्धालुओं ने शनि देव की पूजा कर अपने व अपने परिवार की सुख-समृद्धि और खुशहाली की कामना की. महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों सहित सभी वर्गों की भागीदारी उल्लेखनीय रही.
शनि जयंती का पौराणिक महत्व
भारतीय विद्वत परिषद के अध्यक्ष आचार्य लाल भूषण मिश्र ने बताया कि शनि देव का जन्म सूर्योदय कालीन अमावस्या तिथि को हुआ था. वे सूर्य भगवान और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं. इस तिथि को ही शनैश्चर जयंती के रूप में मनाया जाता है. उन्होंने बताया कि इस दिन शनि मंत्र का जप, पाठ और हवन विशेष फलदायी माना जाता है, जिससे शनि ग्रह की शांति शीघ्रता से होती है. शनि जयंती के दिन की गयी आराधना, व्रत, हवन और दान पुण्य से व्यक्ति को जीवन में आने वाले बाधाओं से मुक्ति मिलती है और यह कर्मों के फल देने वाले इस ग्रह की कृपा प्राप्त करने का श्रेष्ठ अवसर होता है.
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