कलेंद्र प्रताप
बोधगया : ज्ञान व शांति की भूमि के रूप में दुनियाभर में परिचित बोधगया में कुत्तों की बढ़ती जनसंख्या एक बड़े सिरदर्द के समान है. क्या स्थानीय लोग और क्या बाहर से आये बौद्ध श्रद्धालु अथवा पर्यटक, कमोबेश सभी को इनका सामना करना पड़ता है.कौन कब किस कुत्ते की नाराजगी का शिकार हो जाये, कहना मुश्किल. इनके आतंक को देखते हुए एक एनजीओ की पहल पर पिछले तीन-चार वर्षों से इनकी संख्या को नियंत्रण में रखने की कोशिश हो रही है. इसी प्रयास के तहत वर्ष 2016-17 के लक्ष्य के हिसाब से अब तक 370 कुत्तों की नसबंदी की जा चुकी है. वैसे, वर्ष 2013 से चल रहे इस कार्यक्रम के तहत बोधगया में अब तक करीब 1500 कुत्तों की प्रजनन क्षमता को दबाया जा चुका है. काग्युपा इंटरनेशनल मोनलम ट्रस्ट के एनिमल केयर प्रोग्राम के तहत नसबंदी के साथ-साथ इन्हें एंटी रैबीज इंजेक्शन भी दिये जाते हैं.
पिछले करीब 10 दिनों में इस संस्था के सहयोग से 400 कुत्तों को एंटी रैबीज इंजेक्शन लगाये जा चुके हैं. इन्हें कृमि व अन्य रोगों से बचाने के लिए भी दवा-दारू देने की व्यवस्था की गयी.इस व्यवस्था के तहत 400 कुत्तों का अलग-अलग रोगों के लिए इलाज भी हुआ है. ट्रस्ट द्वारा पशुओं के लिए चलाये जा रहे चिकित्सीय कार्यक्रम की देखरेख कर रहे सिक्किम के पशु चिकित्सक डॉ ठिनले भुटिया के मुताबिक, ऊपरोक्त कुत्तों में अधिकतर स्ट्रीट डॉग्स हैं, जिन्हें बोधगया और आसपास के गांवों से पकड़ा गया था. उनके मुताबिक, पकड़े गये कुत्तों को नसबंदी और बीमारियों के इलाज के लिए शल्य चिकित्सा आदि के बाद करीब तीन दिनों तक विशेष मेडिकल कैंप में रखने के पश्चात पुन: आजाद कर दिया जाता है. यह सुनिश्चित करने के बाद कि अब इनके सामने बीमारियों का खतरा तो नहीं ही है, यह भी कि ये कुत्ते भी आम आदमी के लिए ज्यादा खतरनाक नहीं रहे.
भोजन अच्छा, तो प्रजनन भी अच्छा
प्रजनन क्षमता पर खान-पान का भी सीधा असर पड़ता है. बोधगया व आसपास में भटकनेवाले स्ट्रीट डॉग्स भी अपवाद नहीं हैं. इन्हें यहां खाने के लिए बढ़िया चीजें मिल जाती हैं.दरअसल, यहां पर्यटकों की आवाजाही के चलते कुत्तों को खाने के लिए पर्याप्त सामग्री मिलती है. कोई केक दे दिया, तो किसी ने फल, पावरोटी और बिस्कुट फेंक दिया. कोई बना-बनाया बढ़िया भोजन ही इनके सामने रख दिया. कहा जा सकता है कि बोधगया में भटकते कुत्ते आमतौर पर कभी खाली पेट नहीं रहते. उन्हें लगातार ठीक-ठाक भोजन मिलता है. इस वजह से इनकी प्रजनन क्षमता भी बढ़ी हुई होती है और नियंत्रित नहीं किये जाने की स्थिति में ये बड़ी संख्या में बार-बार पिल्लों को जन्म देते हैं. इनके ये बच्चे भविष्य के लिए बड़ी समस्या बन कर बड़े होते हैं और पहले से ही कुत्तों के चलते पैदा हुए सिरदर्द को और बढ़ा देते हैं. कुत्तों के आचार-आचरण की जानकारी रखनेवाले चिकित्सकों के मुताबिक, ज्यादा मांस आदि खानेवाले कु्त्ते आमतौर पर ज्यादा आक्रामक हो जाते हैं.
संवेदनशील व दयालु बनें, रहेंगे सुरक्षित
पशु चिकित्सक व कुत्तों के इलाज के लिए एक्सपर्ट माने जानेवाले डॉ भुटिया का कहना है कि कुत्ते भी आदमी की संवेदनशीलता और दया को परखते हैं.जो संवेदनशील व दयालु प्रवृतित् के लोग हैं, वे कुत्तों को नुकसान नहीं पहुंचाते. ऐसे लोगों को कुत्ते भी आमतौर पर नुकसान नहीं करते. वह बताते हैं कि कुत्ते खास-खास परिस्थितियों में ही मनुष्य पर हमले को आगे बढ़ते हैं. उनके मुताबिक, खाते या सोते वक्त कुत्तों को छेड़ना नहीं चाहिए. साथ ही तब भी, जब ये अपने बच्चों की देखभाल में जुटे हों. इनके सामने इनके बच्चों को भी छेड़ना खतरों से खेलने के समान है. अपने परामर्श में वह कहते हैं कि कुत्तों के सामने से कभी दौड़ कर या जल्दबाजी में तेजी के साथ नहीं भागना चाहिए. वह यह भी सलाह देते हैं कि कुत्तों की आंखों में आंखें डाल कर नहीं देखा जाये. अगर कोई कुत्ता घबराया हुआ या दौड़ते हुए सामने आ जाये, तब पेड़ की तरह हाथ नीचे कर खड़े हो जाना चाहिए और थोड़ी देर बाद पीछे हट जाना चाहिए.
यदि कोई कुत्ता भौंकता हुआ सामने आ जाये, तब भी ऐसा ही करना चाहिए. कुत्ता सूंघ कर वापस लौट जायेगा. अगर कुत्ता पालतू है, तो उसे स्वस्थ व खुश रखने की कोशिश करनी चाहिए. अगर कोई कुत्ता आक्रामक हो जाता है, तो पत्थर की तरह एक छोटे से ढोल के आकार में शरीर को मोड़ कर मुंह नीचे कर जमीन पर लेट जाना चाहिए. कुत्ता नुकसान नहीं पहुंचायेगा. इनके सबके बावजूद यदि किसी कुत्ते ने काट लिया, तो घाव को 10 मिनट तक साबुन से बहते हुए पानी से साफ कर व अस्पताल जाना चाहिए. इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि काटनेवाला कुत्ता पालतू है या स्ट्रीट डॉग. इससे इलाज के तौर-तरीके तय करने में सहूलियत होती है.
आस्ट्रेलिया व सिक्किम के डॉक्टरों ने किये ऑपरेशन : काग्युपा पैवेलियन में आयोजित पशु चिकित्सा कैंप में आस्ट्रेलिया के तीन व सिक्किम के पांच डॉक्टरों ने योगदान किया. जिला पशु चिकित्सा विभाग से भी दो चिकित्सकों ने भागीदारी की. इनके अलावा 15 एनिमल हैंडलर्स (डॉग कैचर्स) का भी साथ मिला. डॉ भूटिया के मुताबिक, पशु चिकित्सा कैंप के लिए फ्रांस की संस्था ब्रिजेट वाडोट फाउंडेशन के साथ ही काग्यू इंटरनेशनल मोनलम ट्रस्ट व सिक्किम सरकार से भी सहयोग मिल रहा है. इस बीच, गया के जिलाधिकारी व पशु चिकित्सा विभाग से भी बातें हुई हैं और उम्मीद है कि जल्द ही गया में भी कुत्तों को एंटी रैबीज इंजेक्शन देने के साथ ही इनके बंध्याकरण का काम भी शुरू होगा.
