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बिहार की नदियों से विलुप्त हो रही मछलियां, जानें रिवर रैंचिंग से कैसे बचायी जायेंगी खास प्रजातियां

नदियों में प्रदूषण और जल की गुणवत्ता ठीक नहीं रहने की वजह से मछलियों की संख्या लगातार घट रही है. इससे मत्स्य उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है. सदियों से नदियां ही मानव सभ्यता का पालना रही हैं. मनुष्य सभ्यता के विकास में जल संपदा का अहम योगदान रहा है.

पटना. देशभर में कई संगठन और विशेषज्ञ पर्यावरण संतुलन की बात करते हैं. प्रकृति प्रदत्त जानवरों के संरक्षण के लिए कई कार्यशालाएं और योजनाएं लागू की जाती हैं, फिर भी गंगा नदी में मछलियों की संख्या लगातार कम हो रही है. वर्तमान समय में प्रमुख मछलियां भी विलुप्त होती जा रही हैं. वजह है गंगा नदी में बढ़ता प्रदूषण. इस संबंध में पटना जिला कृषि पदाधिकारी ने कहा कि अनावश्यक मछुआरे भी बिना किसी जानकारी के मछली पकड़ रहे हैं. इससे गर्भवती मादा मछलियां भी उनके जाल में फंस जाती हैं. यही वजह है कि नई मछलियां पैदा होने से पहले ही मर जाती हैं. साथ ही नदियों में कूड़ा-कचरा डालने से भी प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है. इसे देखते हुए बिहार सरकार ने नदियों से विलुप्त हो रही मछलियों को बचाने के लिए बड़ी पहल के लिए निर्णय लिया है.

रिवर रैंचिंग की होगी शुरुआत

बता दें कि नदियों में प्रदूषण और जल की गुणवत्ता ठीक नहीं रहने की वजह से मछली की संख्या लगातार घट रही है. इससे मत्स्य उत्पादन भी प्रभावित हो रहा है. जबकि सदियों से नदियां ही मानव सभ्यता का पालना रहा है. मनुष्य सभ्यता के विकास में जल संपदा का अहम योगदान रहा है. फिर भी बढ़ते शहरीकरण और मानव-जनित क्रियाकलापों के कारण नदियों में जीवों की संख्या लगातार घटती जा रही है. इसे देखते हुए मुख्यमंत्री मत्स्य संपदा योजना के अंतर्गत रिवर रैंचिंग कार्यक्रम की शुरूआत की गई है. इसके लिए राज्य सरकार की ओर से तीन वर्षों में 14 करोड़ 76 रुपये रुपये खर्च करने का निर्णय लिया गया है. बता दें कि वर्ष 2022-23 से 2024-25 तक के लिए स्वीकृति मिली है.

गंगा नदी में चार लाख रैंचिंग

रिवर रैंचिंग कार्यक्रम के तहत गंगा नदी में चार लाख रैंचिंग किया जाना है. इसमें प्रमुख तौर पर चार प्रजाति की मछलियां रहेंगी. इसमें आइएमसी, रोहू, कतला व मिरगल शामिल हैं. रिवर रैंचिंग अर्थात पुनर्स्थापन. दरअसल, गंगा नदी में बहते विशेष मछलियों को कृत्रिम प्रजनन के द्वारा बीज उत्पादन कर उसी नदी में तहत पुर्नस्थापन किया जायेगा. इसमें गंगा में घटती आबादी को पुनर्स्थापित किया जायेगा. कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य नदियों में मेजर कार्प मछलियों की आबादी बढ़ाना है, जिससे मत्स्य-जैव विविधता कायम होगी. इससे मछुआरों को रोजगार मिलने का भी अनुमान है.

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महानंदा में विलुप्त हो रही मछली की प्रजाति को आबाद करने की तैयारी

दरअसल, महानंदा नदी में विलुप्त हो रही मछलियों को आबाद करने को लेकर सरकार की तैयारी चल रही है. आनेवाले दिनों में महानंदा नदी से देसी मछलियों की प्रजाति रोहु और कतला का भी उत्पादन होगा. रिवर रैंचिंग योजना से किशनगंज से कटिहार तक बह रही महानंदा नदी की पहचान वाली मछलियों की प्रजातियों का विकास किया जाएगा. योजना के तहत किशनगंज में महानंदा नदी से मत्स्य विभाग के अधिकारियों की मौजूदगी में रोहु व कतला के ब्रुडर्सका कलेक्शन किया गया है. मत्स्य हैचरी में इसकी ब्रीडिंग कराई जाएगी. जहां फिंगर लिंग्स तैयार होने के बाद इसे महानंदा नदी में छोड़ा जाएगा, ताकि अच्छी मछलियों की प्रजाति नदी में तैयार हो सके.

रिवर रैंचिंग से मत्स्य पालन में होगी बढ़ोतरी

मुजफ्फरपुर प्रखंड के रतवारा में बूढ़ी गंडक के घाट पर पिछले दिनों बिहार सरकार के पशु एवं मत्स्य संसाधन विभाग की ओर से रिवर रैंचिंग कार्यक्रम आयोजित की गई. इसमें स्थल निरीक्षण व बुडर संग्रहण कार्यक्रम के दौरान मछुआरों के द्वारा नदी से स्थानीय प्रजनक मछलियों का संग्रह किया गया. कार्यक्रम की शुरुआत कराते हुए जिला मत्स्य पदाधिकारी ने बताया कि रिवर रैंचिंग कार्यक्रम से नदियों में मत्स्य उत्पादन में अभिवृद्धि होगी. मछुआरों के आर्थिक उत्थान के साथ साथ नदियों में स्थानीय मछलियों के प्रजातियों का जैव विविधता में संतुलन एवं संरक्षण हो सकेगा. इसके लिए नदी से संग्रह किए गए स्थानीय प्रजनक मछलियों को मतलुपुर के बाबा मत्स्य हैचरी में रखकर आधुनिक तरीके से प्रजनन कराई जाएगी. उसके बाद पुनः नदी में पुनर्स्थापना किया जाएगा.

Ashish Jha
Ashish Jha
डिजिटल पत्रकारिता के क्षेत्र में 10 वर्षों का अनुभव. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश. वर्तमान में पटना में कार्यरत. बिहार की सामाजिक-राजनीतिक नब्ज को टटोलने के लिए प्रयासरत. देश-विदेश की घटनाओं और किस्से-कहानियों में विशेष रुचि. डिजिटल मीडिया के नए ट्रेंड्स, टूल्स और नैरेटिव स्टाइल्स को सीखने की चाहत.

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