Darbhanga News: दरभंगा. लनामिवि के पीजी भूगोल विभाग एवं डॉ प्रभात दास फाउंडेशन की ओर से “अरावली घेराबंदी में विकास और संरक्षण के बीच संतुलन ” विषय पर सेमिनार हुआ. अध्यक्षता करते हुए विभागाध्यक्ष प्रो. अनुरंजन ने कहा कि अरावली पर्वतमाला मात्र भू-वैज्ञानिक संरचना नहीं, बल्कि उत्तर-पश्चिमी भारत के लिए जीवन समर्थन तंत्र है. इसका क्षरण जलवायु स्थिरता और आजीविका के लिए गंभीर खतरा उत्पन्न करता है. इसलिए अरावली पर्वत का संरक्षण, पुनर्स्थापन पारिस्थितिक, आर्थिक तथा सभ्यतागत अनिवार्यता है. इसके लिए परिदृश्य स्तरीय संरक्षण एवं समुदाय आधारित पुनर्स्थापन आवश्यक है. कहा कि पहले केवल राजस्थान राज्य का अरावली क्षेत्र खनन के लिये अधिसूचित था. वर्ष 2002 की राज्य समिति की रिपोर्ट पर यह आधारित था. इसमें अमेरिकी विशेषज्ञ रिचर्ड मर्फी के स्थलरूप वर्गीकरण का उपयोग किया गया था. इसके अनुसार 100 मीटर ऊंचाई तक के रूप को पहाड़ी माना गया. पहाड़ियों तथा उनके सहायक ढ़ालों पर खनन को प्रतिबंधित किया गया. परंतु, इससे काफी नुकसान की संभावना है. भारतीय फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया के अनुसार इसे 30 मीटर किया जाना चाहिए, ताकि अरावली पर्वत शृखला को विस्तृत रूप से संरक्षित किया जा सके. प्रो. अनुरंजन ने कहा कि भू- वैज्ञानिक उत्पत्ति और विकास के अनुसार अरावली श्रृंखला विश्व की सबसे पुरानी पर्वत प्रणालियों में से एक और भारत की सबसे पुरानी पर्वत शृखला है. यह लगभग 2000 मिलियन वर्ष पूर्व प्री-कैम्ब्रियन युग में अस्तित्व में आई थी. पूर्ण या समग्र प्रतिबंध अवैध खनन को करता प्रोत्साहित डॉ मनुराज शर्मा ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि पूर्ण या समग्र प्रतिबंध कई बार अवैध खनन को प्रोत्साहित करता है. इसी कारण उसने एक संतुलित और विवेकपूर्ण नीति अपनायी. इसके तहत मौजूदा वैध खनन गतिविधियों को कड़े नियामक प्रावधानों के तहत सीमित रूप से जारी रखने, नए खनन कार्यों पर रोक तथा पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों को स्थायी संरक्षण प्रदान करने पर बल दिया गया है. विकास बनाम संरक्षण की बहस तेज इससे पूर्व विषय प्रवेश करते हुए डॉ सुनील कुमार सिंह ने कहा कि अरावली पर्वतमाला संकट में है. सुप्रीम कोर्ट के नये 100 मीटर के नियम ने कई निचली पहाड़ियों को संरक्षण से बाहर कर दिया है. इससे विकास बनाम संरक्षण की बहस तेज हो गई है. पर्यावरणविद इसे विनाशकारी मानते हैं. यह भू-जल और जलवायु को प्रभावित करेगा. जबकि सरकारें संतुलन और सख्त निगरानी का दावा करती है. इससे खनन, रियल एस्टेट और अवैध अतिक्रमण से अरावली के भविष्य पर प्रश्नचिह्न लग गया है. सेमिनार में डॉ राजन कुमार गुप्त, अमर पासवान, धर्मेंद्र कुमार, संध्या शर्मा, राज लक्ष्मी, अंजली सिंह आदि ने भी विचार रखा. संचालन डॉ रश्मि शिखा तथा धन्यवाद ज्ञापन फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने किया. सेमिनार में अनिल कुमार सिंह, उदय कुमार, रणधीर प्रसाद और रिजवान आदि मौजूद थे.
डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

