Darbhanga News: दरभंगा. लनामिवि के पीजी अंग्रेजी विभाग में डॉ प्रभात दास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इंडियन थॉट्स इन इंग्लिश पोएट्री विषयक संगोष्ठी में डॉ संकेत कुमार झा ने कहा कि जब यूरोपीय कवियों ने भारत का जिक्र पहली बार किया, वे केवल एक भूगोल नहीं देख रहे थे, बल्कि एक सभ्यता से परिचित हो रहे थे. धर्म, कर्म, माया, आत्मा और मोक्ष जैसे शब्दों ने उन्हें आत्मा और चेतना को समझने का नया आधार दिया. बीसवीं शताब्दी तक आते-आते यह संवाद पूर्णतः दार्शनिक बन गया है. डब्ल्यूबी यीट्स ने गीता और उपनिषदों को आत्मिक विकास का आधार बनाया. अपनी कविताओं में पुनर्जन्म, चक्र और माया जैसे सिद्धांतों को प्रतिपादित किया.
भारतीय चिंतन बना वैश्विक काव्य भाषा का हिस्सा
मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो. मंजू राय ने कहा कि स्वतंत्र भारत में तोरु दत्त, सरोजिनी नायडू, रामानुजन, महापात्रा और कमला दास जैसे कवियों ने भारतीय संवेदना को आधुनिक अंग्रेजी काव्य चेतना में रूपांतरित किया. उनके लिए दर्शन पुस्तक का विषय नहीं, बल्कि जीवन का अनुभव था. दूसरी ओर गिन्सबर्ग, गैरी स्नेयडर और ऑक्टावियो पाज जैसे पश्चिमी कवियों ने भारत में उस आध्यात्मिक ऊर्जा को खोजा, जिसकी कमी आधुनिक पश्चिमी दुनिया में महसूस की जा रही थी.
टैगोर ने दी अंग्रेजी में भारतीय आध्यात्मिकता को संगीत सी सरलता
अध्यक्षता करते हुए अंग्रेजी विभागाध्यक्ष प्रो. पुनीता झा ने कहा कि टैगोर ने अंग्रेजी में भारतीय आध्यात्मिकता को संगीत सी सरलता दी. टीएस इलियट ने “द वेस्ट लैंड ” के अंत में “दत्त, दया, दम” और “शांति” का प्रयोग कर भारतीय उपनिषदों को आधुनिकतावादी कविता की नैतिक दिशा बना दिया. महर्षि अरविंद ने महाकाव्य “सावित्री ” में अंग्रेजी कविता को योग और साधना का माध्यम बना इस संबंध को पूर्ण चक्र में पहुंचाया.
समय के साथ भारत के प्रति बदलती गयी दृष्टि
इससे पूर्व डॉ शांभवी ने कहा कि सोलहवीं-सत्रहवीं शताब्दी में भारत, अंग्रेजी कविता में चमत्कार और वैभव के प्रतीक के रूप में उभरा. स्पेंसर ने इसे “रिच एंड स्टेटिली इंड ” में कहा और शेक्सपियर ने भारतीय रत्नों, मसालों और तटों का बार-बार जिक्र किया. मिल्टन और मार्वेल के लिए भारत दूरस्थ, विलासी और विस्मयकारी था. 18वीं शताब्दी में सर विलियम जोन्स ने संस्कृत और उपनिषदों का अध्ययन कर पहली बार भारत को ज्ञान और दर्शन के स्रोत के रूप में प्रस्तुत किया. 19वीं शताब्दी तक आते-आते रोमांटिक और विक्टोरियन कवियों ने भारत को आध्यात्मिक प्रतीक के रूप में अपनाया. शेली की करुणा, वर्ड्सवर्थ की एकात्म-चेतना और कोलरिज के विष्णु-रूपक यह दिखाते हैं कि भारत चिंतन का साधन बन चुका था. डॉ तनिमा, डॉ आर्यिका पॉल, डॉ ज्योस्ना कुमारी, रिसर्च स्कॉलर शिवानी झा, चैती चंद्र श्री, केशव मिश्रा, साक्षी, सुरभि रंजन, शैलजा, अपराजिता, गौतम आचार्या आदि ने भी विचार रखे. धन्यवाद ज्ञापन करते हुए फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने कहा कि रविन्द्र नाथ टैगोर अपनी कविता में वेस्ट एंड भारतीय के मिलन की सार्थकता को सुंदरतम रूप दिया. मौके पर अनिल कुमार सिंह, नचारी कुमार, राजेश कुमार, लालबाबू आदि मौजूद थे.
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