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Darbhanga News: मोक्ष को परम पुरुषार्थ के रूप में स्वीकार करती भारतीय दर्शन की परंपरा

Darbhanga News:श्रीलाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. महानंद झा ने भारतीय दर्शन में मोक्ष-संविचार के विविध स्वरूपों पर विस्तार से प्रकाश डाला.

Darbhanga News: दरभंगा. कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय में तीन दिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी के दूसरे दिन श्रीलाल बहादुर शास्त्री संस्कृत विश्वविद्यालय के प्रो. महानंद झा ने भारतीय दर्शन में मोक्ष-संविचार के विविध स्वरूपों पर विस्तार से प्रकाश डाला. कहा कि भारतीय दार्शनिक परंपरा मोक्ष को परम पुरुषार्थ के रूप में स्वीकार करती है. पीआरओ निशिकांत ने बताया कि मुख्य अतिथि डॉ रवींद्र नाथ भट्टाचार्य ने वेदों के अध्ययन पर जोर दिया. कहा कि वेदांगों सहित वेदों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए. वेद अनादि एवं अपौरुषेय है. इसका महत्व सनातन है. शांति निकेतन, कोलकाता के प्रो. अरुण रंजन मिश्र ने योग दर्शन दृष्टि से वैदिक मंत्रों की चर्चा शुद्धता व पवित्रता पर की. प्रो. धर्मदत्त चतुर्वेदी ने छन्दोबद्ध शैली में वैदिक मंत्रों का दार्शनिक विवेचन किया. डॉ छबिलाल न्यौपाने ने कहा कि भारतीय दर्शन में प्रतिपादित पदार्थों का स्वरूप वेदों में वर्णित पदार्थ-स्वरूप के पूर्णतया अनुकूल है.

वेद के निरंतर अध्ययन से मनुष्य में ब्रह्मत्व का होता उदय- प्रो. देवनारायण

अध्यक्षता करते हुए पूर्व कुलपति प्रो. देवनारायण झा ने कहा कि मूलतः वेद के आठ अर्थ बताए जाते हैं. भारतीय दर्शन में वेद को पौरुषेय तथा अपौरुषेय दोनों रूपों में माना गया है. अद्वैत दर्शन को छोड़कर अन्य सभी दर्शनों में द्वैतवाद की प्रधानता है. कहा कि वेद के निरंतर अध्ययन से मनुष्य में ब्रह्मत्व का उदय होता है. सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के डॉ दिव्यचेतन स्वरूप शास्त्री ने व्याकरण शास्त्र की दृष्टि से वैदिक मंत्रों का दार्शनिक विवेचन किया. अध्यक्षता व्याकरण विभागाध्यक्ष डॉ दयानाथ झा तथा अध्यक्षता पूर्व कुलपति डॉ रामचन्द्र झा ने की. प्रो. बौआनंद झा ने कहा कि सभी शास्त्रों की जड़ वेद है. प्रो. माधव जनार्दन रटाटे ने कहा कि मन्त्र का लक्षण नहीं किया जाता. मीमांसा में वर्णित विधि के चार भागों की चर्चा की. कार्यक्रम में कुलपति प्रो. लक्ष्मी निवास पाण्डेय, प्रो. अभिराज राजेन्द्र मिश्र, प्रो. दिलीप कुमार झा, प्रो. विनय कुमार झा, प्रो. पुरेन्द्र वारिक, डॉ रामसेवक झा, डॉ शम्भुशरण तिवारी, डॉ संजीत कुमार झा, डॉ विपिन कुमार झा, श्रवण कुमार, डॉ त्रिलोक झा, डॉ निशा आदि मौजूद थे.

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