Darbhanga News: दरभंगा. मैथिली के लिए सर्वमान्य, प्रमाणिक और सार्वजनीन वर्तनी का निर्धारण निहायत जरूरी है. इसी से मैथिली भाषा-साहित्य का वास्तविक उत्कर्ष संभव है. यह बात प्रख्यात भाषाविद डॉ रामावतार यादव ने कही. वे साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली के सभागार में मैथिली भाषा शोध परिषद की ओर से आयोजित विमर्श-गोष्ठी में अध्यक्ष पद से बोल रहे थे. गोष्ठी में नेपाल के काठमांडू से पधारे डॉ यादव ने कहा कि लिखित और उच्चरित भाषा में काफी भिन्नता होती है. मिथिला में कोई भी व्यक्ति भाषा नहीं उपभाषा ही बोलते हैं. इसे व्यक्ति-भाषा भी कहते हैं. कथ्य-ध्वनि को दृष्टिगत करने वाला सर्वमान्य एवं स्थिर लेख्य-समूह वर्तनी है. साहित्य अकादमी में मैथिली के प्रतिनिधि एवं चर्चित भाषाशास्त्री डॉ उदय नारायण सिंह नचिकेता ने कहा कि वर्तनी का निर्धारण कठिन कार्य तो है ही, इसके लिए समय भी देना होगा. कहा कि इस कार्य को करने के लिए मैथिली शोध परिषद ने जो कदम बढ़ाए हैं, वह काफी प्रशंसनीय है. डॉ रामानंद झा रमण, आरसी चौधरी, डॉ संजीत कुमार झा सरस ने भी विचार रखा. मणिकांत झा के संचालन में महाकवि विद्यापति रचित जय-जय भैरवी के गायन से शुरू कार्यक्रम में विजयचंद्र झा व कामेश्वर चौधरी की सक्रिय सहभागिता रही. परिवर्तन भाषा का अनिवार्य व अपरिहार्य गुण- डॉ भीमनाथ झा डॉ भीमनाथ झा ने ऑडियो-विजुअल माध्यम से कहा कि वर्तनी-निर्धारण एक प्रक्रिया है. परिवर्तन भाषा का अनिवार्य व अपरिहार्य गुण है. यह जीवंत भाषा का लक्षण भी है. कहा कि आज के दौर में साहित्येतर लेखन के लिए सर्वस्वीकार्य मान्य लेखन-विधान पर मंथन की आवश्यकता है. पूर्व कुलपति डॉ शशिनाथ झा ने भी अपने विचार ऑडियो-विजुअल माध्यम से रखे. परिषद के निदेशक हीरेंद्र कुमार झा ने संस्था की गतिविधियों से परिचित कराया. मौके पर डॉ गंगेश गुंजन, डॉ अमलेन्दु शेखर पाठक, वंदना झा, आभा झा समेत बड़ी तादाद में शिक्षाविद, साहित्यकार व बुद्धिजीवियों की सक्रिय सहभागिता रही.
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