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मिथिला विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय को नामांकन लेने की अनुमति की जगी आस

मिथिला विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में साल 2020 से छात्र-छात्राओं के नामांकन पर लगा ग्रहण छंट सकता है.

प्रवीण कुमार चौधरी, दरभंगा. मिथिला विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में साल 2020 से छात्र-छात्राओं के नामांकन पर लगा ग्रहण छंट सकता है. यूजीसी डेब ने बी प्लस प्लस (2.82 सीजीपीए अंक) ग्रेड वाले पश्चिम बंगाल के स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ नार्थ बंगाल को जनवरी 2024 से दूरस्थ शिक्षा में नामांकन की अनुमति दे दी है. इससे पहले नैक से ए ग्रेड धारी विश्वविद्यालय को ही दूरस्थ शिक्षा पाठ्यक्रम संचालन की अनुमति यूजीसी देता था. इस कसौटी पर खरा नहीं उतरने के कारण मिथिला विश्वविद्यालय के दूरस्थ शिक्षा विभाग में चार साल से नामांकन पर रोक लगी है. अब जबकि यूजीसी ने बी प्लस प्लस ग्रेड वाले बंगाल के विश्वविद्यालय को दूरस्थ शिक्षा में नामांकन की अनुमति दे दी है तो लग रहा है कि मिथिला विवि पहल करे तो इसका दूरस्थ शिक्षा निदेशालय पुनर्जीवित हो सकेगा. जानकारी के अनुसार बंगाल के विवि ने नैक मूल्यांकन में प्राप्त ग्रेड के सर्टिफिकेट के साथ यूजीसी डेब को दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में बंद नामांकन को चालू कराने को लेकर आवेदन दिया था. उसके आग्रह पर यूजीसी डेब ने इस वर्ष 19 मार्च को नामांकन की अनुमति से संबंधित पत्र जारी कर दिया है. जिस मानक पर यूजीसी डेब ने उस विवि के दूरस्थ शिक्षा निदेशालय को नामांकन की अनुमति दी है, वह अर्हता लनामिवि को भी दिसंबर 2023 में नैक मूल्यांकन से बी प्लस प्लस ग्रेड प्राप्त होने के साथ मिल चुका है. ऐसी स्थिति में लनामिवि भी यूजीसी डेब में सक्षम प्रयास करे, तो नामांकन की अनुमति मिल सकती है. इसका कारण यह बताया जाता है कि पूरे देश में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय संचालित करने को लेकर यूजीसी डेब ने एक कोटि के विवि के लिए एक मानक तय कर रखा है. लनामिवि भी स्टेट यूनिवर्सिटी बंगाल की तरह ही ड्वेल मोड यूनिवर्सिटी के रूप में संचालित है. बताया जाता है कि वर्ष 2020 में लनामिवि की ओर से ससमय नैक मूल्यांकन के लिए आवेदन जमा नहीं करने के कारण ही तब यूजीसी डेब ने दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में नामांकन पर रोक लगा दी थी. इसकी मार डीडीई अब तक झेल रहा है. प्रतिवर्ष करीब 80 हजार यानी चार वर्षों में करीब तीन लाख 20 हजार छात्र- छात्रा यहां पढ़ाई से वंचित हो चुके हैं. राज्य का सकल नामांकन अनुपात एवं राष्ट्रीय शिक्षा नीति का लक्ष्य भी इससे काफी हद तक प्रभावित हो रहा है. जानकारी के अनुसार निदेशालय में नामांकन की अनुमति कैसे मिले, इसकी संभावना तलाशने को लेकर कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी की अध्यक्षता में सिंडिकेट की बैठक में चर्चा की गयी थी. वित्तीय परामर्शी डॉ दिलीप कुमार को यूजीसी डेब दिल्ली से संपर्क स्थापित कर समस्या का निदान निकालने के लिए अधिकृत किया गया. बताया जाता है कि वित्तीय परामर्शी इस मसले काे लेकर दो बार यूजीसी डेब गये. इसका क्या फलाफल क्या निकला यह रिपोर्ट अब तक आम नहीं हुआ है. कुलपति प्रो. संजय कुमार चौधरी ने योगदान के साथ ही दूरस्थ शिक्षा निदेशालय की समस्या को गंभीरता से लिया. प्रो. चौधरी ने डीडीइ के सुचारू संचालन को लेकर निदेशक प्रो. हरेकृष्ण सिंह को कई दिशा-निर्देश दिये थे. अब संस्थान के शिक्षाकर्मियों एवं छात्र-छात्राओं की निगाहें कुलपति एवं निदेशक पर टिकी है. यूजीसी डेब के नये नियम का जितना जल्द फायदा उठाया जायेगा संस्थान सहित क्षेत्र को इसका उतना जल्दी लाभ मिल सकेगा. डीडीइ्के निदेशक प्रो. हरेकृष्ण सिंह ने बताया कि कुलपति के दिशा-निर्देश पर डीडीइ की बेहतरी के लिए काम किया जा रहा है. नामांकन चालू कराने के लिए यूजीसी में पक्ष रखने को लेकर अधिकृत पदाधिकारी को अभिलेख आदि उपलब्ध करा रखा गया है. नामांकन शुरू करने की दिशा में डीडीइ प्रयासरत है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

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